विज्ञापन
This Article is From Jul 17, 2020

दुश्मन का दुश्मन दोस्त, राजस्थान में राम राम सा...

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 17, 2020 19:52 pm IST
    • Published On जुलाई 17, 2020 19:52 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 17, 2020 19:52 pm IST

राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सत्ता का संघर्ष कई स्तरों पर चल रहा है. एक लड़ाई जयपुर में लड़ी जा रही है जहां जयपुर से तीस किलोमीटर दूर एक रिसॉर्ट में कांग्रेस के विधायक जमे हुए हैं तो दूसरी तरफ गुड़गांव के एक रिसॉर्ट में सचिन के सर्मथक विधायक डटे हुए हैं. वहीं एक लड़ाई अदालत में भी लड़ी जा रही है जहां भारत के सबसे नामी गिरामी वकील जैसे हरीश साल्वे, मुकुल रोहतगी और अभिषेक मनु सिंघवी एक-दूसरे से भिड़ रहे हैं. मगर इस सबके बीच राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया नदारद हैं..वे अपने गृह क्षेत्र झालावाड़ में हैं और जयपुर तक आने को राजी नहीं हैं. ऐसे में राजस्थान के राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल का एक ट्‌वीट काफी चर्चा में है.

तो क्या राजस्थान में दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. कुछ ऐसी बातें हुई हैं जिससे लगता है कि राजस्थान में बीजेपी को जितनी हरकत में इस राजनैतिक संकट के समय आना चाहिए था वो कहीं दिखाई नहीं दे रहा है. कांग्रेस में सचिन पायलट के विद्रोह के बाद यह कहा गया कि बीजेपी इस राजनैतिक संकट पर करीबी नजर बनाए हुए है और जल्द ही बीजेपी की बैठक जयपुर में होगी. मगर वसुंधरा राजे ने जयपुर आने से साफ मना कर दिया. इसके बाद बीजेपी की मीटिंग ही टल गई. कई राजनैतिक जानकार मानते हैं कि कायदे से बीजेपी को राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र के पास शिष्टमंडल के रूप में जाकर इस राजनैतिक संकट को लेकर उनसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बहुमत साबित करने की मांग करनी चाहिए थी, मगर ऐसा कुछ नहीं हो रहा. बीजेपी चुप बैठी है जैसे राज्य में कोई राजनैतिक संकट ही नहीं हो. मतलब अशोक गहलोत खुद बहुमत साबित करें तो ठीक न करें तो और भी ठीक.

राजनीति के जानकार मानते हैं कि अभी राजस्थान में सचिन पायलट असली विपक्ष की भूमिका में हैं. राजस्थान की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकारों का मानना है कि गजेंद्र सिंह शेखावत और सचिन पायलट के गठजोड़ ने अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे की राजनीति को एक कर दिया..दोनों को लगा कि उनके रास्ते का एक बड़ा कांटा निकल गया. अशोक गहलोत के लिए सचिन पायलट और वसुंधरा राजे के लिए शेखावत. 

वसुंधरा के पास बीजेपी के 72 में से 45 विधायक उनके खेमे के माने जाते हैं. और वे अपने दिल में राजस्थान का तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए हुए हैं. यही नहीं बीजेपी में गुलाबचंद कटारिया, सतीश पुनिया,ओम माथुर ,राजवर्धन सिंह राठौर जैसे नेता भी खुश बताए जाते हैं कि अब उनके लिए भी रास्ता खुल गया है. इसलिए जिस ढंग से बीजेपी को सक्रिय होना चाहिए, वो कहीं दिख नहीं रहा. यह भी कहा जाता है कि 10 जनपथ और वसुंधरा राजे भले ही राजनैतिक विरोधी हों मगर सामाजिक रिश्ते उनके अच्छे हैं. 

वसुंधरा के चुप रहने के पीछे राजनीति के जानकार यह भी तर्क दे रहे हैं कि उन्हें अपने बेटे दुष्यंत के राजनैतिक भविष्य की भी चिंता है. वे दुष्यंत को राजस्थान की राजनीति में स्थापित करना चाहती हैं. दुष्यंत अभी 46 साल के हैं और झालावाड़ से चार बार के सांसद है. वसुंधरा नहीं चाहेंगी कि इसी उम्र का कोई और नेता खासकर सचिन पायलट बीजेपी में आए या राजस्थान की राजनीति में काफी ऊपर तक जाए. आपको क्या ये नहीं लगता है कि राजस्थान की राजनीति में दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली कहावत सही साबित हो रही है..

(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com