दिल्ली का दंगल अब दिलचस्प होता जा रहा है, कहीं नसीबवाले और बदनसीब वाले पर बहस छिड़ी हुई है तो कहीं विज्ञापनों को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। एक पान दूकान पर दो बुर्जुग चर्चा कर रहे थे कि भाई नसीब तो सबका अपना अपना है। इस पर किसी का कोई वश नहीं होता ऐसे में किसी को बदनसीब कहना कितना उचित है।
बहस जारी है चुनावी चाय की चुस्की के साथ। अब बात कुछ विज्ञापनों की... पहला विवाद तब हुआ जब एक विज्ञापन में अन्ना के तस्वीर को माला पहना दी गई थी। अब जो ताजा विवाद हुआ है उसमें अरविंद केजरीवाल को आंदोलनकारी और उपद्रवी ग्रोत्र का बताया गया है। केजरीवाल ने भी इस मौके को जाने नहीं दिया और इस उपद्रवी गोत्र को अपनी जाति से जोड़ दिया।
केजरीवाल भी अब राजनीति समझ गए हैं। उनको मालूम है कि उनकी जाति यानि बनिया परंपरागत तौर पर बीजेपी के सर्मथक माने जाते हैं। ऐसे में अपने ऊपर किए गए हमले को बनिया जाति के अपमान से जोड़ दिया जाए और पूरी बनिया समाज से माफी मांगने की बात कही जाए तो राजनीति गरमा सकती है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर बीजेपी को ऐसे विवादित विज्ञापनों का सहारा क्यों लेना पड रहा है। क्या पार्टी नर्वस है या बीजेपी को लगता है कि बहुमत के आंकड़े से वह दूर है। रोज दो केंद्रीय मंत्रियों की प्रेस कांफ्रेंस... रोज केजरीवाल से पांच सवाल, 70 विधानसभा के लिए 120 सांसद यानि बीजेपी ने सारी ताकत झोंक दी है। उधर केजरीवाल रोज किरण बेदी को ललकार रहे हैं कि आओ और मुझसे बहस करो।
बीजेपी की इस सेना से टीम केजरीवाल पिली पड़ी है और यही वजह है कि दिल्ली का यह दंगल लोकसभा चुनाव से भी दिलचस्प हो गया है। हाल के दिनों में यह देश में लड़ा जाने वाला सबसे चर्चित चुनाव होगा, अगले चार पांच दिनों में यह महामुकाबला और भी मजेदार होगा।
आम आदमी का कार्यकत्ता जोश से भरा है, युवा है, गरीब है। वहीं बीजेपी को अपने संगठन, मध्यम वर्ग और संघ के कैडरों के साथ साथ प्रधानमंत्री के करिश्मे और अमित शाह के कार्यकौशल पर भरोसा है। जैसा कि बीजेपी के विज्ञापन में प्रधानमंत्री कहते हैं कि जो देश के दिल में होता है, वही दिल्ली के दिल में होता है। इस सब के बीच कांग्रेस यह उम्मीद लगाए बैठी है कि एक बार फिर त्रिशंकु विधानसभा हो और वह फिर चर्चा में बने रहें।
अभी प्रधानमंत्री की दो रैलियां और होनी हैं। लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो बीजेपी को इस चुनाव में 60 सीटें आनी चाहिए। मगर उतनी बड़ी लहर इस बार दिख नहीं रही। आम आदमी पार्टी लोकसभा के आकड़ों के अनुसार केवल 10 सीटों पर आगे थी, मगर अब ऐसा नहीं है। पार्टी एक दम टक्कर दे रही है। मगर सच्चाई तो यह है कि जो पार्टी चुनाव के दिन अपने वोटरों को बूथ तक खींच लाया गया, वही विजेता होगा।
This Article is From Feb 02, 2015
बाबा की कलम से : दिल्ली के दंगल में विज्ञापन पर बवाल
Manoranjan Bharti, Saad Bin Omer
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Updated:फ़रवरी 02, 2015 18:51 pm IST
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Published On फ़रवरी 02, 2015 18:46 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 02, 2015 18:51 pm IST
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