2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सहयोगी बन रहे हैं बीजेपी के लिये सिरदर्द

यही वजह है कि बिहार में महज 2 सांसदों वाली जेडीयू भी सीटों के मामले में बराबर का बंटवारा चाहती है. बिहार से खराब हालात तो महाराष्ट्र में है जहां पालघाट का उपचुनाव शिवसेना अपने सहयोगी बीजेपी के खिलाफ ही लड़ लिया.

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सहयोगी बन रहे हैं बीजेपी के लिये सिरदर्द

उपचुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन के बाद अब उसके सहयोगी दल अपनी ताकत दिखाने में लग गए हैं. एक तरफ बिहार में जेडीयू ने इसकी शुरूआत कर दी है. जेडीयू के नेता नीतीश कुमार को गठबंधन का बड़ा भाई बता रहे हैं जबकि बिहार में जेडीयू के पास केवल 2 सांसद हैं और बीजेपी के पास 22 सांसद. अब यह गठबंधन कैसे होगा ये अमित शाह और नीतीश कुमार ही बता सकते हैं. उधर उत्तर प्रदेश में नए राजनीतिक धुव्रीकरण के बाद बीजेपी तेजी से हरकत में आई है अब वह अपने सभी सहयोगी दलों से मिलकर समझाने बुझाने की कोशिश में जुटने वाली है. दरअसल बीजेपी के सहयोगी दलों को लगता है कि कर्नाटक में सरकार न बना पाने और कोई सहयोगी दल न ढूंढ पाने और अब उपचुनाव में हार के बाद बीजेपी बैकफुट पर है और यही मौका है कि उससे तगड़ी सौदेबाजी की जाए.

आज के उपचुनाव से विपक्ष और बीजेपी के लिए हैं ये सबक

यही वजह है कि बिहार में महज 2 सांसदों वाली जेडीयू भी सीटों के मामले में बराबर का बंटवारा चाहती है. बिहार से खराब हालात तो महाराष्ट्र में है जहां पालघाट का उपचुनाव शिवसेना अपने सहयोगी बीजेपी के खिलाफ ही लड़ लिया. हालांकि शिवसेना चुनाव हार गई मगर दोनों को बीच की खाई साफ नजर आई. शिवसेना महाराष्ट्र सरकार का हिस्सा होते हुए भी एक तरह से विपक्ष के तरह व्यवहार करती रही है. 

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अब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सभी सहयोगियों को भरोसे में लेने की कवायद शुरू कर दी है वो एक-एक करके सभी घटक दलों से मुलाकात करेंगे. नए सहयोगी दलों की तलाश जारी है आंध्रप्रदेश में तेगलु देशम के एनडीए से अलग होने के बाद बीजेपी अब जगन मोहन रेड्डी पर डोरे डाल रही है. बीजेपी को मालूम है कि चंद्रबाबू नायडू दुबारा बीजेपी के पाले में नहीं आएंगे और न ही जगन कांग्रेस के साथ जाएंगे. ऐसे में बीजेपी के लिए जगन के साथ जाना सबसे मुनासिब लगता है. उसी तरह तमिलनाडु में भी बीजेपी को एक सहयोगी चाहिए इसके लिए उसके पास दोनों विकल्प हैं एआईडीएमके और डीएमके.  फिलहाल एआईडीएमके बीजेपी के काफी नजदीक दिख रहा है क्योंकि लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद बीजेपी ने एआईडीएमके के थम्बी दुरैई को दिया हुआ है. मगर 2019 तक बीजेपी यह तय करेगी कि तमिलनाडु में तब तक कौन अधिक ताकतवर है. डीएमके पहले भी एनडीए का हिस्सा रह चुकी है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री पिछले दिनों जब तमिलनाडु के दौरे पर गए थे तो करूणानिधि और स्टालिन से भी मुलाकात की थी. 

कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के मायने

मगर तमिलनाडु की राजनीतिक हालात अभी तक साफ नहीं हुए हैं क्योंकि वहां कमल हासन और रजनीकांत क्या करने वाले हैं. उसी तरह ओडिशा में भी बीजेपी की सीधी टक्कर बीजू जनता दल से होनी तय है लेकिन बीजेपी के लिए सबसे बड़ा सवाल है कि क्या वह अपना सबसे बड़ा गढ़ उत्तर प्रदेश बचा सकती है या नहीं. उत्तर प्रदेश की 70 सीटों ने ही यह तय किया था कि लोकसभा में बीजेपी कितनी बड़ी पार्टी होगी क्योंकि बाकी छोटे-छोटे राज्य बचते हैं जहां सीट बहुत अधिक नहीं हैं जैसे हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर या उत्त पूर्व के राज्य. फिर राजस्थान और मध्य प्रदेश को लेकर बीजेपी की चिंता जायज है जहां पुराना प्रर्दशन दोहराना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.



मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...

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