क्या नीतीश होंगे विपक्षी एकता के चाणक्य?

विपक्षी नेताओं की रणनीति है कि भले ही कांग्रेस देशव्यापी दल होने के नाते इस गठबंधन का नेतृत्व करे मगर अभी नेता को लेकर बात ना कि जाए.

क्या नीतीश होंगे विपक्षी एकता के चाणक्य?

नई दिल्ली:

दिल्ली में विपक्ष की एकता के लिए बैठकों का दौर शुरू हो गया है. अभी तक विपक्षी दलों की जो भी बैठक होती रही है वह संसद में एकजुटता दिखाने के लिए या उसके लिए रणनीति बनाने के लिए की गई थी. मगर अब संसद का पूरा सत्र ना चलने के बाद राजनीतिक दल इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं और इसी कड़ी में पहली मुलाकात कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हुई, जिसमें राहुल गांधी और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी थे.

बैठक के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि हमें साथ आने की जरूरत है और सभी समान विचारधारा वाले दलों को हम साथ लाएंगे. वैसे बिहार में अब जेडीयू,आरजेडी और कांग्रेस महागठबंधन में साथ हैं. इस बैठक में नीतीश कुमार को जिम्मेदारी दी गई कि वे ममता बनर्जी, बीआरएस के चंद्रशेखर राव और अरविंद केजरीवाल से बात करेंगे. इसी के तहत दिल्ली में नीतीश कुमार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री से मुलाकात भी की. जबकि केसीआर नीतीश कुमार के साथ पिछले साल मुलाकात कर चुके हैं और पटना में साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी.

यह साफ है कि ये तीनों दल कांग्रेस के खिलाफ अपने राज्यों में लड़ते रहे हैं और बीजेपी के खिलाफ एक गैर कांग्रेस, गैर बीजेपी मोर्चा की वकालत करते हैं. वहीं, तेजस्वी यादव को सपा नेता अखिलेश यादव से बात करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. 

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा पहले साथ आ चुके हैं, मगर नतीजा कुछ निकला नहीं. अब अगले लोक सभा चुनाव के लिए एक नई रणनीति के साथ मिलने की बात कही जा रही है. यह भी तय हुआ है कि विपक्षी दलों को साथ लाने के इस प्रयास में कांग्रेस, एनसीपी नेता शरद पवार की मदद लेगी और बाकी दलों के नेताओं को जोड़ने की कोशिश की जाएगी. जैसे महाराष्ट्र में आघाडी है तो तमिलनाडु में कांग्रेस और डीएमके इकट्ठे हैं, केरल में कांग्रेस और वामदल आमने-सामने होते हैं तो बाकी जगह साथ लड़ते हैं. 

फिर सवाल उठता है कि बीएसपी का क्या किया जाए? क्या उसे इस विपक्षी मोर्चे में शामिल किया जाए नहीं? यही बात जगन मोहन रेड्डी को लेकर भी है. लेकिन जगन मोहन रेड्डी के मामले में अभी कांग्रेस उस वक्त तक इंतजार करेगी जब तक कि आंध्र प्रदेश में बीजेपी और चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देशम का गठबंधन नहीं हो जाता. 

विपक्षी नेताओं की रणनीति है कि भले ही कांग्रेस देशव्यापी दल होने के नाते इस गठबंधन का नेतृत्व करे मगर अभी नेता को लेकर बात ना कि जाए. और इस बार जिन राज्यों में कांग्रेस कमजोर है, वहां यदि क्षेत्रीय दल बीजेपी को टक्कर देने की हालत में है तो उसे मजबूती दे, ना कि उसका वोट बांटे. वैसे यह सब कहना आसान है करना उतना ही मुश्किल. मगर इतना जरूर है कि संसद में विपक्षी दलों में जो एकता दिखाई दी उसे लेकर सभी दल आगे ले जाने के लिए उत्साहित है. मगर उसे पहले एक समान मुद्दे और राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दरकिनार करना होगा.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.