दरअसल, गोवा में बीजेपी के लिए अजीब हालात पैदा हो गए हैं. मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर खुद बीमार हैं और दिल्ली में एम्स में भर्ती हैं जहां उनके पेनक्रियाज का इलाज किया जा रहा है. पर्रिकर के अलावा बीजेपी के दो और मंत्री काफी बीमार हैं. पाडुरंग मडगईकर और फ्रांसिस डिसूजा की हालत भी ठीक नहीं है. एक अमेरिका में हैं तो दूसरे मुंबई में इलाज करा रहे हैं और किसी भी हालत में विधानसभा वोटिंग के लिए नहीं आ सकते थे. ऐसे में बीजेपी को लगा कि यदि नया मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो उसे बहुमत के लिए विश्वास मत हासिल करना पड़ेगा जिसका जोखिम बीजेपी नहीं लेना चाहती थी. दूसरी तरफ गोवा में बीजेपी की सहयोगी गोवा फार्रवड पार्टी के विजय सरदेसाई लगातार दबाब बनाए जा रहे थे कि मनोहर पर्रिकर की अनुपस्थिति में गोवा सरकार का कामकाज प्रभावित हो रहा है. ऐसे में बीजेपी आलाकमान के लिए कुछ भी तय करने के लिए दबाब बढ़ता जा रहा था. कई नामों पर चर्चा हुई श्रीपद नायक के अलावा गोवा विधानसभा अध्यक्ष प्रमोद सावंत के नाम की भी चर्चा हुई मगर बात नहीं बन पाई. हालात को देखते हुए कांग्रेस ने भी अपना दांव खेल दिया कांग्रेस जिसके पास 16 विधायक हैं और उन्हें एक एनसीपी के विधायक का भी सर्मथन हासिल है ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया और विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग कर दी.
ऐसे में बीजेपी पर लगातार दबाब बनता जा रहा था. बीजेपी की दुविधा थी कि वो नया मुख्यमंत्री नहीं बना सकते थे. दूसरी ओर पर्रिकर की हालत ठीक नहीं थी पार्टी के पास विकल्प कम होते जा रहे थे. ऐसे में बीजेपी को लगा कि अभी गोवा में जो राजनैतिक हालात बनते जा रहे हैं उसको देखते हुए वहां छेड़छाड़ करना ठीक नहीं होगा और दो मंत्रियों की जगह दो नए चेहरे लाए गए हैं. मगर क्या यह सचमुच में समाधान है.
गोवा की राजनीति पर नजर रखनेवालों को लगता है कि यह समाधान नहीं है हां संकट को फिलहाल टालने की कोशिश की गई है, क्योंकि सबसे बड़ा सवाल है कि यदि पर्रिकर ठीक हो जाते हैं तो कोई समस्या नहीं है मगर उनकी तबीयत यदि नहीं सुधरती है तो बीजेपी के पास क्या विकल्प होगा तब तो उन्हें उस समस्या से निबटने की होगी जिसे वो फिलहाल टाल गए हैं. बीजेपी पर अभी भी यह आरोप लगता है कि उन्होंने जनता के जनादेश का सम्मान नहीं किया नंबर दो की पार्टी होने के बावजूद उन्होंने सरकार बनाई और कांग्रेस जो नंबर एक की पार्टी थी उसे बहुमत साबित करने का मौका नहीं दिया गया, जबकि कर्नाटक में येदियुरप्पा को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बहुमत साबित करने का मौका दिया गया. हालांकि ये और बात है कि येदियुरप्पा अपना बहुमत साबित नहीं कर सके. मगर ये फॉर्मूला गोवा में नहीं लागू किया गया. अब किसी तरह सरकार तो बीजेपी ने बचा ली मगर अभी एक सवालिया निशान लगा हुआ है इस सरकार पर कि आगे क्या होगा क्योंकि यहां पार्टी से बडा व्यक्ति है जिसके आसपास गोवा बीजेपी की राजनीति घूम रही है.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...
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