बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की बैठक से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता अरविंद केजरीवाल ने यह शर्त रख दी है कि उस मीटिंग में सबसे पहले दिल्ली सरकार पर केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश पर चर्चा हो और कांग्रेस अपनी स्थिति साफ करे, वरना वे मीटिंग से वॉकआउट कर जाएंगे. इस तरह, अरविंद केजरीवाल ने बैठक से पहले ही उसकी हवा निकाल दी है. कांग्रेस को अल्टीमेटम देकर केजरीवाल ने बैठक की मेज़बानी कर रहे नीतीश कुमार के लिए भी विकट स्थिति पैदा कर दी है.
जेडीयू सूत्रों के मुताबिक, उनका मानना है कि आम आदमी पार्टी का इरादा ठीक नहीं है. दिल्ली के अध्यादेश पर कल ही वोटिंग नहीं होने वाली है. अभी इसमें समय है और उससे पहले देश के सामने कई अहम मुद्दे हैं. मीडिया में खबरें लीक कर दबाव बनाना ठीक नहीं है. बैठक में राज्य के मुद्दे उठाने के बजाए राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह देनी चाहिए. इस मुद्दे को प्रमुख बना कर बैठक का एजेंडा तय करना गलत है.
कांग्रेस नेता निजी बातचीत में कह रहे हैं कि बैठक किसी अध्यादेश पर अपना स्टैंड साफ करने के लिए नहीं बुलाई गई, बल्कि बैठक का विषय इन सवालों पर रणनीति बनाना है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ समूचे विपक्ष को कैसे एकजुट होना है, और BJP के खिलाफ हर सीट पर विपक्ष का एक ही उम्मीदवार कैसे खड़ा किया जाए.
कांग्रेस हमेशा से केजरीवाल को संदेह से देखती रही है. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि केजरीवाल पर भरोसा नहीं किया जा सकता. वह हमेशा से 'पहले मेरा सर्मथन करो, फिर मैं आपके बारे में सोचूंगा' की नीति पर विश्वास करते आए हैं. कांग्रेस मानती है कि AAP की नीति ही कांग्रेस के बल पर अपना विकास करने की है. कांग्रेस केजरीवाल को 'वोट कटवा' मानती है. उनका मानना है कि केजरीवाल ने गोवा और गुजरात में BJP की राह आसान कर दी, इसलिए कई कांग्रेस नेता केजरीवाल को BJP की 'बी टीम' भी मानते हैं और AAP पर नरम हिन्दुत्व की नीति अपनाने का आरोप भी लगाते हैं.
इतने अविश्वास के बावजूद आखिर कांग्रेस और AAP के बीच समझौता कैसे होगा. कई कांग्रेस नेता यह भी कहते हैं कि AAP केवल एक सांसद की पार्टी है, इसलिए उससे क्या बात करना. कई जानकार कहते हैं कि मान लो, दिल्ली में कांग्रेस और AAP के बीच कोई बात बन भी जाए, मगर पंजाब में दोनों के बीच गठबंधन कैसे होगा. पंजाब में 13 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से 8 सीटें कांग्रेस के पास हैं और उसे 40 फीसदी वोट मिले थे, मगर 2022 के विधानसभा चुनाव में AAP को 42 फीसदी वोट मिले. तो 2024 के समझौते में व्यवस्था क्या होगी, यह सबसे बड़ा सवाल है.
दूसरे, कांग्रेस को लगता है कि यदि केजरीवाल से पंजाब में समझौता किया, तो उन्हें AAP को गोवा, गुजरात में तो सीटें देनी ही पड़ेंगी, केजरीवाल राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी सीटें मांगेंगे. इन्हीं कारणों से कांग्रेस केजरीवाल के साथ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाना चाहती, और दिल्ली अध्यादेश के मामले पर चुप्पी साधे हुए है, क्योंकि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस और पंजाब प्रदेश कांग्रेस ने केजरीवाल को सर्मथन करने का विरोध किया है.
दरअसल, कांग्रेस अरविंद केजरीवाल पर भरोसा नहीं करती, क्योंकि अण्णा आंदोलन के वक्त केजरीवाल ने जिस तरह भ्रष्टाचार के आरोप सोनिया गांधी, स्वर्गीय प्रणव मुखर्जी और अन्य कांग्रेस नेताओं पर लगाए, उसे कांग्रेस भूली नहीं है. कांग्रेस यही बात NCP नेता शरद पवार को भी याद दिलाती है कि किस तरह केजरीवाल ने उन पर भी क्या-क्या आरोप नहीं लगाए थे. मतलब साफ है - केजरीवाल और कांग्रेस की राह आसान नहीं है. दोनों का छत्तीस का आंकड़ा है, और अब देखना होगा कि विपक्ष की बैठक के बाद केजरीवाल और कांग्रेस नज़दीक आते हैं या और दूर चले जाते हैं.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
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