राफेल पर एक बार फिर राहुल गांधी हमलावार हैं, वजह है एक ताजा खुलासा जो फ्रांस की एक वेबसाइट ने किया है. फ्रांस की मीडियापार्ट के मुताबिक उसके पास इस बात के दस्तावेज हैं जिससे यह साबित होता है कि राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट पर रिलांयस के साथ सौदा करने के लिए दबाब बनाया गया. फिर क्या था राहुल गांधी ने संवाददाता सम्मेलन कर दिया और एक बार फिर प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की और एक बार फिर प्रधानमंत्री पर दूसरे को फायदा पहुंचाने के साथ-साथ भ्रष्टाचार का आरोप लगाया.
ऐसा लग रहा है कि फ्रांस में भी इस डील को लेकर मीडिया में संदेह की स्थिति बनी हुई है इसलिए वहां का मीडिया भी इस डील की छानबीन में लगा हुआ है. सबसे पहले फ्रांस के मीडिया ने ही यह खबर छापी कि फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलांद की पत्नी की फिल्म बनाने के लिए भारत की एक निजी कंपनी ने पैसा लगाया था. बाद में ओलांद ने कहा कि उनको इसकी जानकारी नहीं थी. इसके पहले मीडियापार्ट को दिए एक इंटरव्यू में ओलांद ने कहा था कि किस तरह रिलांयस को पार्टनर बनाने के लिए फ्रांस की सरकार को भारत सरकार ने कहा था. उन्होंने आगे कहा कि हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, हमें जो वार्ताकार दिया गया हमने उसी से बातचीत शुरू कर दी. हालांकि तब दसॉल्ट ने कहा था कि यह सौदा दो सरकारों के बीच है.
अब नए खुलासे ने दसॉल्ट के इस दावे पर सवाल खड़े कर दिए हैं. राहुल गांधी इन्हीं सबको लेकर सरकार पर लगातार हमले किए जा रहे हैं चाहे वह चुनावी रैली हो या फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस हो...राहुल गांधी जो सवाल खड़े कर रहे हैं वे ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब कोई भी जानना चाहेगा. जैसे राफेल की कीमत क्या है. उसे तीन गुनी कीमत पर क्यों खरीदा गया. हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड यानि एचएएल के बजाए एक निजी कंपनी को इसे बनाने का ठेका क्यों दिया गया. एचएएल को तमाम विमानों, हेलिकॉप्टरों के अलावा सुखोई तक बनाने का अनुभव है. मगर सरकार अपने बचाव में अपनी ही सरकारी कंपनी के बारे में यह प्रचार करवा रही है कि एचएएल कभी अपना काम सही वक्त पर पूरा नहीं करती है.
खैर राहुल गांधी का अगला सवाल है कि मामला संसद की संयुक्त समिति को क्यों नहीं सौंपा जा रहा है. कई लोग मानते हैं कि राफेल बीजेपी सरकार के लिए बोफोर्स साबित होगा. हो सकता है इस बात में दम हो क्योंकि दिसंबर में पांच राज्यों में चुनाव होने हैं और राहुल इस मुद्दे को खूब भुनाने वाले हैं. मगर इसमें थोड़े सवाल भी खड़े होते हैं क्योंकि बोफोर्स को मुद्दा बनाने के लिए वीपी सिंह ने वित्त मंत्री का पद छोड़ा था जिससे लोगों में धारणा बनी थी कि इसको तो जरूर पता होगा. यही वीपी सिंह की साख थी. दूसरा वीपी सिंह ने बोफोर्स की गुणवत्ता पर ही सवाल खड़े कर दिए थे कि यह बकवास तोप है और इसे चलाते वक्त अपने ही सैनिक मारे गए. मगर सच्चाई है कि भारतीय सेना ने कारगिल की लड़ाई बोफोर्स से ही जीती थी. राफेल में यह दोनो बातें नहीं हैं. उसकी गुणवत्ता पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता है.
जो भी हो मगर राफेल एक मुद्दा तो जरूर बन गया और सरकार जब तक इस पर चुप रहेगी लोगों को शक होता रहेगा. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण फ्रांस के दौरे पर हैं. हालांकि राहुल ने इस पर भी चुटकी ली है. मगर देखना होगा कि अब फ्रांस के प्रेस से क्या कुछ निकल कर सामने आता है, क्योंकि इस मुद्दे पर सारी लीड फ्रांस की प्रेस से ही आ रही है.
आपको याद होगा बोफोर्स का खुलासा भी सबसे पहले स्वीडन रेडियो ने किया था. चाहे जो भी हो विधानसभा चुनाव से पहले जनता के दिमाग में शक डालने में यदि राहुल गांधी सफल होते हैं तो अगले लोकसभा चुनाव तक इसकी गूंज आपको सुनाई देती रहेगी.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...
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This Article is From Oct 11, 2018
राफेल, राहुल गांधी और चुनाव
Manoranjan Bharati
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 11, 2018 16:28 pm IST
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Published On अक्टूबर 11, 2018 16:28 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 11, 2018 16:28 pm IST
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