बाबा की कलम से : क्या अब राहुल वह कर पाएंगे, जो वह चाहते हैं

नई दिल्ली : राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना अब तय है। अप्रैल में कांग्रेस महाधिवेशन में इस पर मुहर लगा दी जाएगी, मगर सवाल अभी भी कायम है कि राहुल जो करना चाहते हैं, वह कर पाएंगे या नहीं।

अब यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि राहुल कहां हैं - उत्तराखंड, लाओस, ग्रीस या बैंकाक... अब महत्वपूर्ण यह है कि पार्टी में संकट गहरा है। राहुल की नाराजगी की और भी वजहें सामने आ रही हैं। सूत्रों की मानें तो मनमोहन सिंह सरकार के बाद के सालों के प्रदर्शन से राहुल खुश नहीं थे। वह चाहते थे कि मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में फेरबदल करें और युवा और साफ छवि वाले चेहरों को अच्छे मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री बनाएं, राज्यमंत्री नहीं।

यही नहीं, राहुल गांधी को हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा का काम करने का तरीका भी पसंद नहीं था। हुड्डा लगातार ऐसा काम कर रहे थे, जिससे हरियाणा के कई नेता नाराज चल रहे थे। जैसे, चौधरी बीरेन्द्र सिंह, जो आखिरकार बीजेपी में चले गए। शैलजा और किरण चौधरी भी हुड्डा के खिलाफ शिकायतें कर रही थीं। राहुल चाहते थे कि हुड्डा को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए, मगर हुड्डा बचते रहे।

उसी तरह सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान को भी बदलना चाहते थे, मगर एनसीपी ने शर्त रख दी थी कि सुशील कुमार शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। शिंदे को राहुल महाराष्ट्र नहीं भेजना चाहते थे और चौहान की कुर्सी बच गई। राहुल महाराष्ट्र में राधाकृष्ण विखे पाटिल को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, मगर यह हो नहीं पाया।

इसी तरह उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की मदद से प्रमोद तिवारी को राज्यसभा में लाने का भी राहुल गांधी विरोध कर रहे थे, मगर उसके बावजूद प्रमोद तिवारी राज्यसभा में आए। ऐसे ढेरों मामले हैं, जहां राहुल की नहीं सुनी गई, और इन्हीं वजहों से तंग आकर उन्होंने छुट्टी पर जाने का निर्णय किया।

अब कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल पूरी पार्टी पर कंट्रोल चाहते हैं। राहुल दरअसल कांग्रेस की सबसे बड़ी कमेटी, यानि कार्यसमिति में बदलाव चाहते हैं, जिसकी वजह से कई नेताओं का पत्ता साफ हो जाएगा, जो सोनिया गांधी के समय से इसमें बने हुए हैं। इनमें वे नेता भी शामिल हैं, जो सोनिया गांधी के करीबी माने जाते हैं और कई फैसलों को प्रभावित करते हैं। जाहिर है, सोनिया गांधी इसके लिए तैयार नहीं हुईं और राहुल की नाराजगी और बढ़ गई।

मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अध्यक्ष बनने के बाद राहुल को इतनी छूट मिलेगी...? क्या राहुल उन नेताओं से कांग्रेस को मुक्त कर पाएंगे, जो सालों से कांग्रेस दफ्तर में बैठे हैं और राज्यसभा में हैं और जिनके नाम पर एक भी वोट कांग्रेस को नहीं मिलता है। राहुल की अपनी टीम है, जिस पर यह आरोप लगता है कि वह पार्टी को कंपनी या कॉरपोरेट की तरह चलाना चाहते हैं।

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कांग्रेस में लड़ाई युवा और नई सोच बनाम पुराने ढंग से पार्टी चलाने वाले नेताओं के बीच है। राहुल गांधी जानते हैं कि यह पार्टी के अस्तित्व की लडाई है, और अगर राहुल फेल हो गए तो कांग्रेस खत्म होने के कगार पर आ जाएगी, इसलिए नई सोच, नई ऊर्जा के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने की जरूरत है।