मनोरंजन भारती की कलम से : राहुल गांधी के अज्ञातवास की पहेली

राहुल गांधी के देश लौटने के बाद सबसे बड़ी उत्सुकता इस बात पर है कि वो कहां थे।

(ऊपर दिख रही तस्वीर कुछ ही देर पहले की है, PTI के रेफरेंस से)

किस तरह कटा राहुल गांधी का अज्ञातवास, ठीक वैसे ही जैसे महाभारत में पांडवों के अज्ञातवास का पता किसी को नहीं चला था। मगर 21वीं सदी के इस इंटरनेट और स्मार्ट फोन (जिसमें कई मैगापिक्सेल के कैमरे हैं) युग में राहुल की एक भी तस्वीर तक नहीं आ पाई। यह लगातार दूसरी बार हो रहा है गांधी परिवार के साथ। सोनिया गांधी जब बीमार पड़ी, तो अमेरिका में उनका इलाज हुआ, मगर अभी तक लोगों को उनकी बीमारी का पता नहीं है। यह गांधी परिवार भी किसी पहेली से कम नहीं है।

यहां दिल्ली में राहुल के स्वागत की सारी तैयारी पहले से तय थी। उनके आने के पहले तुगलक लेन स्थित उनके घर की सफाई का जिम्मा प्रियंका के हाथ में था, फिर एक फैमिली लंच था, क्योंकि सबको उत्सुकता थी कि राहुल ने अपने 56 दिन कैसे गुजारे। परिवार के लोग खासकर सोनिया और प्रियंका सब कुछ शुरू से अंत तक जानना चाहती होंगी।

लेकिन एक सवाल अभी भी रहस्य बना हुआ है कि राहुल के छुट्टी पर जाने के कुछ दिनों बाद कांग्रेस के एक कार्यकत्ता ने उनकी कुछ तस्वीर ट्विटर पर डाली यह कहते हुए कि राहुल उत्तराखंड में हैं। कांग्रेस पार्टी में कोई बड़ा से बड़ा नेता ऐसा करने की जुर्रत नहीं कर सकता है। मगर जगदीश शर्मा नामक यह शख्स राहुल के लौटने के बाद तुगलक लेन के बाहर पटाखे चलाते हुए मीडिया को इंटरव्यू भी देते दिखा। आखिर उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? तो क्या यह सब गांधी परिवार के कहने पर हुआ? यह सब पहेली है कांग्रेस की।

अब असली सवाल कि राहुल क्या सोच करके लौटे हैं, क्योंकि जयपुर में जिस तरह उन्होंने सत्ता को जहर कहा था, लोगों के दिमाग में यह बात घर कर गई कि कहीं राहुल बेमन से राजनीति में तो नहीं हैं। मगर इस छुट्टी पर जाने के बाद कई तरह की खबरें आने लगीं कि राहुल कांग्रेस अध्यक्ष से नाराज हैं, वो पार्टी में अपने तरीके से बदलाव करना चाहते हैं, मगर सोनिया के करीबी लोग ऐसा नहीं होने देना चाहते।

फिर लोगों ने राहुल के छुट्टी पर जाने की टाइमिंग पर सवाल उठाना शुरू कर दिया कि बजट सत्र और भूमि अधिग्रहण बिल पर वह सरकार को घेरने के लिए देश में क्यों नहीं हैं। उसके बाद कुछ वरिष्ठ नेताओं के बयान आने लगे कि सोनिया गांधी ही पार्टी का नेतृत्व करें। इसमें हंसराज भारद्वाज, शीला दीक्षित जैसे लोग थे, साथ में संदीप दीक्षित भी। पार्टी में कई नेता राहुल के नेतृत्व को लेकर मन नहीं बना पा रहे हैं। शायद राहुल की क्षमता को लेकर एक सवाल बना हुआ है और उनके काम करने के तरीकों को लेकर भी। मगर कांग्रेस में सबको पता है कि यह फैमिली तय करेगा कि किसकी क्या भूमिका होगी। यही बात प्रियंका के राजनीति में आने पर भी लागू हो रही है।

अब राहुल को तय करना है कि उन्हें कब क्या करना है। कांग्रेस में संगठन के चुनाव की घोषणा कर दी गई है। उस चुनाव के बाद कांग्रेस का अधिवेशन बुलाया जाएगा, जिसमें कांग्रेस में सभी बड़े फैसले लेने वाली कार्यसमिति का भी चुनाव कराया जाएगा। अभी यह समिति कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा मनोनीत की जाती रही है। इसी अधिवेशन में राहुल को अध्यक्ष बनाया जाएगा और हो सकता है पार्टी संविधान में बदलाव कर सोनिया के लिए भी कोई जगह बनाया जाए।
राहुल के लिए चुनौती होगी कि वो अपने से उम्र में बड़े नेताओं और अपनी पीढ़ी के नेताओं के बाच तालमेल कैसे रखते हैं। राहुल के रुख का पता रविवार को दिल्ली में होने वाली किसान रैली में चलेगा, जिसे सफल बनाने के लिए पार्टी पुरजोर कोशिश कर रही है। यह भी कहा जा रहा है कि राहुल उसके बाद देश भ्रमण पर भी निकलेंगे, ताकि लोगों के नब्ज को समझा जा सके। योजनाएं तो काफी कुछ हैं, मगर जब तक कुछ नतीजा नहीं निकलता, तब तक सवाल बने रहेंगे।

पहला चुनाव जिस पर राहुल को एक बार फिर आंका जाएगा, वह है बिहार विधानसभा का चुनाव। जनता परिवार एकजुट हो चुका है। आपको याद होगा कि जनता परिवार कांग्रेस से लड़ने के लिए बना था, जिसके लिए उन्होंने बीजेपी का भी साथ दिया। अब वह बीजेपी से लड़ने के लिए कांग्रेस के साथ जाना चाहेगा। कांग्रेस का बिहार में क्या रुख होगा, यह भी राहुल को तय करना होगा। कांग्रेस कार्यकत्ता बड़ी उम्मीद से बैठे हैं कि राहुल की लंबी छुट्टी ने शायद उन्हें कुछ ऐसा सिखाया होगा कि पार्टी की डूबती नैया पार लग जाए।


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