आप कुछ और चाहते (विराट (करीब चार महीने पहले): "मैं वनडे और टेस्ट की कप्तानी पर ध्यान लगाना चाहता हूं") हैं, लेकिन चंद महीने के भीतर ही किस्मत कुछ और तय (टेस्ट से भी इस्तीफा) तय कर देती है. कोई ऐसी शक्ति जरूर है, जो ऐसे हालात बना देती है. उदाहरण एक नहीं, अनगिनत हैं. बात हजारों साल पहले किसी राजा के रंक बनने की रही हो, या कोई और बात, ऐसा होता रहा है, लेकिन भारतीय क्रिकेट इतिहास में उसके सफलतम कप्तानों में से किसी एक के साथ ऐसा पहली बार हुआ, जो विराट के साथ पिछले चार महीनों में घटित हुआ. देखते ही देखते उनके ख्वाब चूर हो गए. वास्तव में टी-20 विश्व कप से भारत की विदायी के बाद से ही बहुत हद तक पहले से ही नियति (भारतीय क्रिकेट की एक फौरमेट में दो कप्तान न होने की परंपरा) ने संकेत देने शुरू कर दिए थे, लेकिन मामला यहां तक पहुंच जाएगा, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी. लेकिन एक ईंट (टी-20 से इस्तीफा) क्या खिसकी, विराट की कप्तानी रूपी पूरी दीवार भरभरा कर एक के बाद एक करके गिर गयी.
सौरव-विराट विवाद के बाद हालात और बदतर हुए. मसलन-कभी रोहित को चोट, तो कभी विराट का ब्रेक, प्रेस कॉन्फ्रेंस से विराट का लंबे समय तक गायब रहना (हालांकि, यह विवाद से बचने की भी प्रयास था), फील्डिंग के दौरान विराट की आंखों पर एकदम से चश्मे का चढ़ जाना (ऐसा पहले बमुश्किल ही देखा गया), सेंचुरियन टेस्ट में जीत के बाद पुरस्कार वितरण समारोह में एकदम शुष्क शारीरिक भाषा, नैसर्गिक जोश का नदारद रहना, चेहरे पर मुस्कान तक का न होना, वगैरह साफ चुगली कर गया था कि या तो विराट कप्तानी जाने के सदमे से उबर नहीं सके हैं, या मन ही मन उन्होंने कुछ तय कर लिया था. और इस पर भी जब दक्षिण अफ्रीका में सीरीज में हार हो गयी, तो इस पहलू ने विराट के मन को और मजबूती प्रदान कर दी कि अब उन्हें करना क्या है. यहां से एक पहलू खुद के सम्मान बचाने का भी हो चला था. इससे पहले कि बीसीसीआई कोई फैसला लेता, विराट ने अपनी पहले से सभी को चौंका दिया. और फिर वह तस्वीर निकल कर आयी, जो शनिवार शाम को अचानक से ट्विटर पर प्रकट हुयी!
देखते ही देखते "कप्तान विराट" के युग पर पर्दा गिर गया! भले ही कोहली अपनी कप्तानी में कोई आईसीसी टूर्नामेंट नहीं जिता सके, लेकिन बतौर कप्तान उनका टेस्ट रिकॉर्ड और टीम पर असर उच्च कोटि का है. कप्तानी में 50 फीसद से ज्यादा जीत और इतने से ही ज्यादा का औसत कोहली के बारे में बताने के लिए काफी है. बहरहाल, सवाल यह है कि वर्तमान हालात का कौन जिम्मेदार है? किसकी गलती? किसके अहम पर चोट पहुंची, किसकी इगो शांत हुई? कौन सच्चा, कौन झूठा, इसका जवाब समय ही देगा, लेकिन नुकसान भारतीय क्रिकेट का हुआ है, हो रहा है और कौन जानता है कि अगले कुछ सालों तक और हो!
उदाहरण सामने है. चंद दिन पहले तक ही दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टेस्ट टीमों से एक ने दक्षिण अफ्रीकी धरती पर उसकी सबसे कमजोर टीम को हराने का मौका गंवा दिया. और अगर कोई विद्वान यह कहता है कि इस हार का एक बड़ा कारण हालिया विवाद नहीं है, तो वह दो सौ फीसद झूठ बोल रहा है. टीम के दक्षिण अफ्रीका रवाना होने से पहले रोहित को रहस्यमयी चोट, पहले टेस्ट के बाद विराट को अचानक चोट, इन तमाम तत्वों ने टीम के मनोबल और ड्रेसिंग रूम के माहौल पर असर डाला. परिणिति सीरीज हार के रूप में हुयी और आखिर में अति पीड़ा की बात यह रही कि भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल कप्तानों में से एक और महानतम बल्लेबाजों में से एक को इस दर्द और इन हालात से गुजरना पड़ा.
पर ऐसी पीड़ा से तो अनिल कुंबले भी गुजरे थे. ज्यादा समय पहले की बात नहीं है, जब भारतीय क्रिकेट का मतलब विराट और कोहली का मतलब भारतीय क्रिकेट होता था. अगर कोहली दिन को रात कहते थे, तो बीसीसीआई के अधिकारी भी ऐसा ही कहते थे. जो शास्त्री और कोहली चाहते थे, वही होता था. इसी समयावधि में अनिल कुंबले, रविचंद्रन अश्विन (टेस्ट से लंबे समय के लिए बाहर रहना, व्हाइट-बॉल से करीब चार साल दूर रहना), कुलदीप यादव (एक युवा बॉलर के करियर से खिलवाड़) भी असहनीय पीड़ा से गुजरे होंगे. और साल 2019 में विश्व कप टीम चयन में अंबाती रायुडु के साथ हुआ बर्ताव तो एक मिसाल बन गयी. इन तमाम लोगों के प्रति किसी भी पक्ष की तरफ से साफ तौर पर सफायी कहीं से भी नहीं आयी. और आती भी कैसे! साफ पढ़ा जा सकता था कि किसी के साथ गलत हुआ है, तो किसी के साथ बहुत ही ज्यादा गलत. ये सभी लोग आज भी रात को सोते समय उसी पीड़ा से गुजरते होंगे, जिससे पिछले कुछ महीनों में विराट को गुजरना पड़ा या पड़ रहा है और कौन जानता है कि आगे हालात कैसे हों.
लेकिन ऐसी तमाम बातें छिप जाया करती हैं, जब कोई टीम असाधारण प्रदर्शन करे. निश्चित ही अगर विराट धोनी की तरह एक विश्व कप (फिफ्टी-फिफ्टी या टी20) भी भारत की झोली में डाल देते, तो आज हालात उनके लिए ऐसे नहीं होते. लेकिन एक फौरमेट में परिणाम हर बड़े मंच पर लगातार खराब ही होता गया, तो अब फैसले भी उनके हाथ से निकलकर बीसीसीआई से कंट्रोल होना शुरू हो गए. और जब टी20 वर्ल्ड कप से पहले ही उन्होंने टूर्नामेंट के बाद इस फौरमेट से कप्तानी छोड़ने का ऐलान कर दिया, तो इसी के साथ ही आधी किस्मत भी उन्होंने अपने लिए तभी तय कर दी थी और इस पर जो आधी बची थी, वह बीसीसीआई के साथ विवाद, हालात और दक्षिण अफ्रीका से हार, वगैरह ने पूरी कर दी. उनकी कप्तानी का जो "उलट कोण" टी20 विश्व कप के बाद घूमना शुरू हुआ था, उसने टेस्ट कप्तानी से इस्तीफे के साथ ही 360 डिग्री की यात्रा पूरी कर ली.
अब यहां से कोहली के लिए आगे की यात्रा आसान बिल्कुल भी नहीं होने जा रही. उनके लिए खेल में मन को "खुली आंखों" से रमाना आसान नहीं होगा. लेकिन अगर आज जहां कोहली खड़े हैं, उसके लिए वह खुद ही सबसे ज्यादा दोषी हैं! और उन्हें इस दोष को जीवन के किसी न किसी मोड़ पर, या कभी अपनी आत्मकथा में तहे दिल से स्वीकार करना ही होगा कि टी-20 कप्तानी छोड़ना उनकी सबसे बड़ी भूल थी. क्या विराट इसे कभी भुला पाएंगे? कोई भी शख्स जीवन पर्यंत इस बात को नहीं भूल पाएगा और दिन की समाप्ति पर विराट भी हाड़-मांस के पुतले ही हैं. और आखिर में एक सवाल कि कहीं भविष्य में विराट सभी को चौंकाते हुए ठीक इसी तरह समय से पहले संन्यास का ऐलान तो नहीं कर देंगे? यह इंडिया की क्रिकेट है! यहां कुछ भी हो सकता है!
मनीष शर्मा NDTV.in में डिप्टी न्यूज एडिटर हैं...
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