साल: 1993
शहर: मेरठ
सिनेमा हॉल: निशात
सिनेमा हाल ठसाठस भरा हुआ था. पैर रखने की भी जगह नहीं थी! जितने दर्शक सिनेमा घर के भीतर थे, उससे कहीं ज्यादा बाहर टिकट पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे. बॉलकनी में पुरुषों की तुलना में बालाओं की तादाद दोगुने से भी ज्यादा थी. ज्यादातर युवा लड़कियों के चेहरे को चिंता ने जकड़ रखा था. कोई नाखून चबा रही थी, तो कोई बेचैनी से उंगली चटका रही थी. एक अजीब से “डर' ने इन बालाओं सहित सभी के चेहरे को जकड़ रखा था. वजह यह थी पर्दे पर शाहरुख खान सन्नी देओल के ढाई किलो के हाथ से बचने के लिए मुंबई की तंग गलियों पर “उसेन बोल्ट सरीखी” गजब की फर्राटा रेस लग रहे थे. हॉल में सन्नाटा पसरा हुआ था. और खास तौर पर बालाओं की सांस अटकी हुई कि आगे क्या होगा. यह दौड़ करीब आठ मिनट के आस-पास चली. तबले की थाप के बैकग्राउंड म्युजिक ने इस दौड़ के स्तर को अलग ही मुकाम दे दिया था. सनी ने पूरी कोशिश की, लेकिन उनके हाथ में आया शाहरुख का फटा हुआ कॉलर. और जैसे ही शाहरुख की ‘जान' बची, तो बॉलकनी ही नहीं, पूरे सिनेमा हॉल में था तो सिर्फ भयंकर शोर. तालियों की गूंजती तड़तहाड़ट. और लड़कियों की सीटियां. मानो भारत ने मैच जीत लिया हो!
यह हाल कमोबेश देश के हर उस सिनेमा हॉल में था, जहां डर फिल्म चल फिल्म चल रही थी. भारत ही नहीं, पाकिस्तान सहित आस-पास के देशों पर शाहरुख खान का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था. डर में सनी ने शाहरुख को अति निर्दयता से कूटा. इधर पटका, उधर पटका ! आखिर में उनका चरित्र सनी के हाथों मौत को भी प्राप्त होता है, लेकिन फिल्म खत्म होने के बाद नकारात्मक किरदार के बावजूद शाहरुख खान सारी वाहवाही उड़ा कर ले गए. और सनी ने ऐलान कर दिया कि जीवन भर वह चोपड़ा कैंप के साथ फिल्म नहीं करेंगे. साल 1993 में नियमित अंतराल पर पहले बाजीगर और फिर डर ने बॉलीवुड को अमिताभ बच्चन के बाद नया और इस शताब्दी का आखिरी सुपर स्टार दे दिया था!
यह वह समय था, जब भाग्य शाहरुख से चार कदम आगे चल रहा था! जरा कल्पना कीजिए अगर शाहरुख की साइन की पहली फिल्म दिल आशना है पहले रिलीज हो जाती होती, तो क्या होता? यह करीब 1988 का समय था, जब हेमा मालिनी प्रोडक्शन हाउस से शाहरुख के पड़ोसी के घर फोन आया. पड़ोसी ने शाहरुख की मां फातिमा खान को खबर दी. उस समय शाहरुख के घर फोन नहीं हुआ करता था. उनकी मां बहुत बीमार रहा करती थीं और उनका ज्यादातर समय बिस्तर पर ही गुजरता था. जब पड़ोसी ने फातिमा खान को खबर दी, तो उन्होंने दीवार पर ही हेमा मालिनी प्रोड्क्शन हाउस का नंबर लिख लिया (खुद शाहरुख ने कई बार इस घटना का जिक्र किया है)
शाहरुख का भाग्य दीवाना के समय भी सिर चढ़ कर बोल रहा था. बतौर नायक अरमान कोहली के दिव्या भारती के साथ फिल्म के पोस्टर भी छप चुके थे. लेकिन इस स्थिति से अरमान कोहली ने फिल्म से किनारा किया, तो यह फिल्म शाहरुख को भारतीय फिल्मी पर्दे के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ इंट्री में से एक दे गई. शाहरुख खान की ऑटोबायोग्राफी (Shahrukh Khan-still reading khan) के अनुसार तब शाहरुख के ससुराल पक्ष का पूरा परिवार दिल्ली के सिनेमा हॉल में फिल्म देखने गया. लेकिन सभी बहुत निराश थे क्योंकि इंटरवेल तक शाहरुख का कोई अता-पता नहीं था! लेकिन इंटरवेल के तुरंत बाद जैसे ही शाहरुख की इंट्री हुई, तो सिनेमा हॉल में सीटियों और तालियों की गूंज से परिवार के ज्यादातर सदस्यों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. इस प्रतिक्रिया के बाद गौरी के मामा तेजिंदर तिवारी (जिनका शाहरुख की गौरी से शादी कराने में बहुत ज्यादा योगदान रहा) बीच फिल्म से सिनेमा हॉल से बाहर आ गए. उन्होंने एसटीडी से शाहरुख को फोन किया और भावुक होते हुए कहा-मॉय सन यू आर रियली सुपर स्टार!
बहरहाल, किंग खान का असल ‘टर्निंग प्वाइंट' अभी भी आना बाकी था! और यह टर्निंग प्वाइंट आया साल 1995 में रिलीज हुई “दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे” से. यह फिल भारतीय सिनेमा इतिहास में किसी क्रांति और ताजे हवा के झोंके की तरह से आई और पूरा एशिया महाद्वीप इसकी आंधी में उड़ गया! इस दौर में शाहरुख रोमांस करने को बिल्कुल भी राजी नहीं थे. कारण यह था कि उनके निभाए निगेटिव किरदार न केवल उन्हें नई इमेज दे चुका था बल्कि इसने सफलता के नए आयाम भी गढ़ दिए थे. इसके अलावा डीडीएलजे के निर्माता आदित्य चोपड़ा के पिता यश चोपड़ा के साथ कास्टिंग से लेकर रचनात्मकता को लेकर बहुत ज्यादा मतभेद थे.
नायक के रूप में यश चोपड़ा की पहली पसंद सैफ अली खान थे, तो वहीं आदित्य शाहरुख को लीड रोल में चाहते थे. पिता-बहुत में इसको लेकर कई बार लंबी बहस हुई. आखिर में यश चोपड़ा ने दिलवाले....को पूरी तरह से आदित्य के हवाले कर दिया. शाहरुख से आदित्य की मुलाकातें जारी रहीं, लेकिन तीन मीटिंग के बावजूद वह शाहरुख की ‘हां' हासिल नहीं कर सके. आखिरकार, आदित्य ने एक डॉयलाग के साथ चौथी मीटिंग में शाहरुख को राजी कर लिया. “जब तक तुम इस देश की हर लड़की के ‘सपनों के राजकुमार और हर मां के ‘सपने के बेटे' नहीं बनोगे, तब तक तुम सुपरस्टार नहीं बन सकते”. दिलवाले दुल्हनिया...रिलीज हुई, तो भारतीय सिनेमा में बहुत कुछ बदल गया. यहां से शाहरुख खान का एक नया अवतार हो चुका था. रोमांस का अवतार !
और तब से लेकर शाहरुख का रोमांस, या इस देश का शाहरुख के प्रति रोमांस अभी तक जारी है. 95 के आस-पास का समय भारत में आर्थिक सुधारों का समय था. भारत के बाजार ने ‘नई अंगड़ाई' लेनी शुरू कर दी थी. मल्टीनेशनल कंपनियों ने भारत में दस्तक दे दी थी. और हर दूसरी बड़ी कंपनी ने भारत में खुद को खड़ा करने के लिए चेहरा बनाया शाहरुख खान को. और देखते-देखते किंग खान बड़े पर्दे के साथ-साथ भारतीय बाजार में ब्रांड के भी बेताज बादशाह बन गए और इनमें से ज्यादातर ब्रांड्स करीब दो दशक के बाद भी ये ब्रैंड्स शाहरुख के साथ जुड़े हुए हैं. सच यह है कि शाहरुख ने रोमांटिक हीरो की उम्र को नई ऊंचाई दी है. नए मानक स्थापित किए हैं. हालांकि, हालिया सालों में उनके रोमांस में गिरावट आई है और उनकी रोमांटिक फिल्मों का जादू पहले जैसा नहीं ही चला. इसके बावजूद न तो 2 नवंबर को 53 साल के के होने जा रहे शाहरुख का रोमांस और न ही देश का उनके प्रति रोमांस कम हुआ है. अब जबकि लंबे समय बाद शाहरुख की नई फिल्म जीरो रिलीज होने को तैयार है, तो उम्मीद है कि किंग खान के रोमांस के नए पहलुओं के दर्शन होंगे. ..क्योंकि रोमांस अभी बाकी है मेरे दोस्त !!
(मनीष शर्मा Khabar.NDTV.com में डिप्टी न्यूज एडिटर हैं...)
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This Article is From Nov 02, 2018
शाहरुख खान: रोमांस अभी बाकी है मेरे दोस्त !!
Manish Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 02, 2018 01:15 am IST
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Published On नवंबर 02, 2018 01:10 am IST
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Last Updated On नवंबर 02, 2018 01:15 am IST
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