मनीष कुमार की कलम से : अनिल सिन्हा से उम्मीद करनी बेकार है...

पटना:

दिल्ली में शुक्रवार को सीबीआई निदेशक अनिल सिन्हा की मीडिया से मुलाकात के बाद काफी पत्रकार मायूस हैं। कई पत्रकारों की मानें तो अनिल सिन्हा से अच्छे तो रंजीत सिन्हा थे। हो सकता है कि रंजीत सिन्हा का अनुभव ज्यादा रहा हो। सीबीआई में वह ज्यादा समय रहे हों और राजनीतिक दबाव में काम करना उन्हें ज्यादा बेहतर आता हो, लेकिन जहां तक अमित शाह का मामला है तो इस मामले में सीबीआई अगर अपील करना चाहे तो कर सकती है।

वैसे, राजनेता जहां आरोपी रहे हैं, सीबीआई ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दायर की है। पिछले साल 1998 में सीपीएम विधायक अजित सरकार की हत्या में आरोपी और वर्तमान में राजद के मधेपुरा से सांसद पप्पू यादव, जिन्हें निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा दी थी, उन्हें बाद में पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था। सीबीआई इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई, हालांकि राष्ट्रीय जनता दल के मधेपुरा से सांसद पप्पू यादव का कहना है कि क्योंकि सीबीआई ने पटना हाईकोर्ट के फैसले के नौ महीने के बाद अपील दायर की है इसलिए बहस इस बात पर हो रही है कि इस मामले को एडमिट किया जाए या नहीं।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में आपको अपील छह महीने के अंदर दायर करनी होती है, लेकिन बकौल पप्पू यादव सीबीआई ने कई मामले जैसे ब्रिज बिहारी प्रसाद हत्या के मामले में जब रामविलास पासवान की पार्टी के सूरजभान सिंह को बरी कर दिया तो सीबीआई ने उसके खिलाफ कोई अपील नहीं की। अब सूरजभान सिंह की पत्नी लोक जनशक्ति पार्टी की सहयोगी हैं, इस समय मुंगेर से सांसद हैं, लेकिन अनिल सिन्हा पत्रकारों से भाग रहे हैं तो उसके पीछे भी आधार हैं।

सीबीआई का खुद का इतिहास है। जब आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में लालू यादव को बरी किया गया तो बीजेपी और जेडीयू हर दिन मांग करती रही कि इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की जाए, लेकिन सीबीआई कान में तेल डालकर सोई रही।

इधर, अमित शाह के मामले में पप्पू यादव भले ही बोलें कि सीबीआई को उनके खिलाफ अपील दायर करनी चाहिए। उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल या उनके कट्टर विरोधी बीजेपी के लोग अपने अध्यक्ष के लिए यह मांग दोहराने की गलती कभी नहीं करेंगे।

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इसलिए फिर चाहे अमित शाह का मामला हो या सत्तारूढ़ एनडीए के किसी सहयोगी का मामला, अनिल सिन्हा उनकी रक्षा करने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे। याद रखिए सीबीआई निदेशक बनाने के पीछे एक ही तर्क अनिल सिन्हा के समर्थन में काम आया था कि वह सरकार के बचाव में किसी भी हद तक जा सकते हैं। भले ही इसके लिए सीबीआई की प्रतिष्ठा दांव पर लग जाए।