बंगाल में मर्यादाएं लांघकर सीबीआई और पुलिस को किया जा रहा बर्बाद

जांच का भविष्य क्या होगा, ये लोकसभा का परिणाम तय करेगा, लड़ाई में पुलिस अधिकारी और CBI के अधिकारी पिसते रहेंगे

बंगाल में मर्यादाएं लांघकर सीबीआई और पुलिस को किया जा रहा बर्बाद

पश्चिम बंगाल में पिछले रविवार से लेकर अभी तक जो कुछ चल रहा है वह चिंताजनक है. बंगाल में सत्ता पर काबिज तृणमूल को भाजपा धूल चटाना चाहती है और सारी लड़ाई की जड़ में यही है. भाजपा का आकलन है जब तक तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी को सारदा घोटाले में फंसाया नहीं जाता तब तक बंगाल पर विजय का परचम फहराने का उनका कई दशक का सपना पूरा नहीं हो पाएगा.

लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व ‘नैतिक जीत' का दावा कर रहे हैं. इसका आज की राजनीति के संदर्भ में यही अर्थ होता है कि आपकी चाल पूरी सटीक नहीं बैठी. किसी ने आपके खेल को बिगाड़ा लेकिन इसके बावजूद आपकी इज़्ज़त बच गई. इसलिए जब पश्चिम  बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुस्कुराते हुए ‘मोरल विक्टरी' की बात कर रही हैं तब उसका अर्थ यही है कि सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और BJP अध्यक्ष अमित शाह के उनके करीबी कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार की गिरफ़्तारी की कोशिश को नाकाम कर दिया. लेकिन उसी फ़ैसले में राजीव कुमार को CBI के सामने उपस्थित होने का आदेश देकर BJP को नैतिक जीत का दावा करने की गुंजाइश छोड़ दी.

लेकिन तृणमूल के नेताओं का दावा है कि पूरे ड्रामे में BJP ने ममता बनर्जी को सड़क पर आंदोलन करने का एक बहाना दे दिया. इन नेताओं का कहना है कि सारदा घोटाले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को घसीटकर BJP तृणमूल को बंगाल में पराजित नहीं कर सकती, हां परेशान ज़रूर कर सकती है. लेकिन जब तक भाजपा के साथ मुकुल रॉय और असम में वरिष्ठ मंत्री हेमंत विश्व शर्मा जैसे लोग रहेंगे, कम से कम लोग तो ये विश्वास करने वाले नहीं कि भाजपा और CBI दोनों सारदा घोटाले के दोषियों को सजा दिलाने के प्रति गंभीर हैं. और इस मामला में  राजनीतिक आकाओं की इच्छा अनुसार जांच कभी धीमी कभी तेज होती रहेगी.

सबसे ज्यादा दिक्कत है जांच एजेंसी  CBI के लिए जिसके इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ कि एक स्थानीय पुलिस ने उन्हीं के अधिकारियों को हिरासत में ले लिया. और वह भी घंटों थानों थाने में बैठाया. लेकिन CBI के अधिकारी भी मानते हैं कि ऐसी दुर्गति के लिए वे ख़ुद ज़िम्मेदार हैं. क्योंकि हाल के दिनों में हर जांच में जैसा जूतमपैजार एजेंसी के अधिकारियों के बीच हुआ है उसमें आम लोगों  बीच उनका इकबाल कम हुआ. इससे उनकी विश्वसनीयता भी घटी है. वैसे में पुलिस और पब्लिक से पुराने सम्मान और इज़्ज़त कीअपेक्षा करना मुश्किल है. ये  अधिकारी चारा घोटाले का उदाहरण देते हैं और उनका कहना है उस समय भी केंद्र सरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से बच रही थी लेकिन तत्कालीन संयुक्त निदेशक यूएन विश्वास और उनकी टीम की विश्वसनीयता ऐसी थी कि कोर्ट का संरक्षण प्राप्त था क्योंकि पोर्ट मॉनीटरिंग भी कर रही थी. ऐसे ही लालू यादव के ये कहने  के बावजूद कि वे अगले दिन सरेंडर करेंगे विश्वास आवेश में सेना बुलाने चले गए. यह कहा कि स्थानीय पुलिस उनका सहयोग नहीं कर रही है. लेकिन इस मुद्दे पर उनकी जमकर केंद्रीय गृह मंत्रालय और CBI के वरिष्ठ अधिकारियों ने खिंचाई की. एक जांच का भी गठन हुआ जिसमें उनके इस क़दम को गलत पाया गया. बिहार की पुलिस ने कभी भी किसी CBI अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया लेकिन रविवार को कोलकाता पुलिस ने सीबीआई को ख़ूब ज़लील किया.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक पहुंचने के लिए कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को ही क्यों चुना गया है? राजीव कुमार बंगाल के चुनिंदा तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों में गिने जाते हैं जो न सिर्फ वामपंथी सरकार के समय, बल्कि ममता बनर्जी के शासन काल में भी हमेशा महत्वपूर्ण पद पर रहे हैं. वे न केवल ईमानदार हैं बल्कि ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने जो भी पद मिला है वहां पर उम्मीद से कहीं अधिक अच्छे परिणाम दिए हैं. यहां तक कि बिहार, झारखंड, उड़ीसा या दिल्ली के वे अधिकारी जो आतंकवाद और नक्सलवाद से लड़ाई में दिन रात लगे हैं, का कहना है कि आप राजीव कुमार को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. हाल के वर्षों में बंगाल में जितने भी बड़े-बड़े आतंकवादी संगठनों के लोगों को गिरफ़्तार किया गया वो राजीव कुमार के सहयोग के बिना संभव नहीं था.

हालांकि BJP के नेताओं का कहना है कि सारदा में उन्होंने जब CBI जांच शुरू हुई तो पहले लिखित में दिया कि करीब 3 हज़ार कागज़ात ज़ब्त किए गए हैं लेकिन अधिकांश महत्वपूर्ण काग़ज़ात उन्होंने दबा दिए. हालांकि BJP नेताओं का मानना है कि घोटाले में राजीव कुमार की न कोई भूमिका रही और न ही घोटाले के मैनेजमेंट में कभी सक्रिय रहे. इसके बावजूद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास पहुंचने के लिए वे सबसे बढ़िया जरिया हो सकते हैं.

लेकिन CBI के अधिकारियों का कहना है कि यह भी सच है कि पांच सालों के दौरान एजेंसी को जितनी इस घोटाले की जांच में सक्रियता दिखानी चाहिए थी, उसकी कमी रही है. इसका वे एक बड़ा कारण ये भी मानते हैं कि घोटाले का लाभ लेने के जिन पर आरोप लगे उनमें मुकुल रॉय और हेमंत विश्व शर्मा के भाजपा में शामिल होने ले जांच की गति पर प्रतिकूल असर पड़ा. इसलिए ममता बनर्जी खुलकर हेमंत विश्व शर्मा का नाम लेती हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि जनता में प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष जितने इन लोगों के साथ दिखेंगे उतना इस घोटाले का ठीकरा तृणमूल पर फोड़ना मुश्किल होगा.

जांच का भविष्य क्या होगा, ये लोकसभा का परिणाम तय करेगा. इस बात पर तृणमूल BJP और CBI के अधिकारी भी समझते हैं. लेकिन तृणमूल के नेताओं का मानना है कि अगले कुछ हफ्तों तक फिलहाल CBI अपने राजनीतिक आकाओं को ख़ुश करने के लिए ममता बनर्जी के आसपास के लोगों को पूछताछ के बहाने घेरने की कोशिश करेगी और खूब खबरें भी प्लांट कराई जाएंगी. लेकिन उनका मानना है जैसे लालू यादव को चारा घोटाले में जेल भेजकर भी न सत्ता से हटाया जा सका और न ही उनकी राजनीतिक पहचान खत्म हो सकी, वैसे ही बंगाल में सारदा और CBI के सहारे लोकसभा चुनाव में BJP की कुछ सीटों का इज़ाफ़ा भले हो जाए लेकिन सत्ता हासिल होने से रही. हां इस लड़ाई में निश्चित रूप से पुलिस अधिकारी और CBI के जांच में लगे अधिकारी ज़रूर पिसते रहेंगे और अपने आकाओं के मनमर्ज़ी के कारण आखिरकार जनता में इनकी छवि ही नहीं धूमिल होगी बल्कि इनका इकबाल भी कम होगा.

 

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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