लेकिन सवाल यह है कि ऐसे परिणाम आए क्यों...? इसका सीधा-सा जवाब है - प्रशासन ने वर्ष 2015 में राज्य के वैशाली जिले में खुलेआम कदाचार की तस्वीर और वीडियो वायरल होने के बाद ठान लिया था कि अब कदाचार नहीं चलने दिया जाएगा, और उसका नतीजा 2016 की परीक्षाओं में देखने को मिला... लेकिन राज्य सरकार के कदाचार-मुक्त परीक्षा के दावों की सारी हवा उसी साल शिक्षा माफिया और आरजेडी नेता बच्चा राय ने निकाल दी, जब उन्हीं के कॉलेज से बहुत-से विद्यार्थी टॉपर हुए, लेकिन टेलीविज़न कैमरा के सामने उन्होंने सीधे सवालों के ऊटपटांग जवाब दिए. बाद के दिनों में इस पर हुए ज़ोरदार बवाल के बाद बच्चा राय के साथ-साथ बिहार बोर्ड के बहुत-से अधिकारी भी जेल की हवा खा रहे हैं. निश्चित रूप से इस घटना के बाद इस वर्ष न केवल कदाचार-मुक्त परीक्षा करवाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी गई, बल्कि धांधली की एक और जड़, यानी कॉपियों की जांच में भी बेहद सतर्कता बरती गई. पहली बार आंसर शीट में बार कोडिंग लगाई गई, जिसके कारण कोई शिक्षा माफिया, या रसूख वाले छात्र को मनमाने नंबर नहीं मिल पाए.
लेकिन इस बार रिज़ल्ट से स्पष्ट हो गया कि प्रशासनिक व्यवस्था भले ही चुस्त-दुरुस्त दिख रही है, शैक्षिक और शैक्षणिक माहौल अब भी चौपट है. माना जा रहा है कि अगर सरकार ने पढ़ाई के दौरान भी स्कूलों और कॉलेजों की मॉनिटरिंग की होती, परिणाम बेहतर हो सकते थे. लेकिन शिक्षा विभाग का कहना है कि पिछले साल के स्कैंडल के बाद फ़र्ज़ी तरीके से चलाए जा रहे स्कूलों-कॉलेजों के खिलाफ जांच और कार्रवाई करने के चक्कर में पढ़ाई की सुध लेने की समय बचा ही नहीं. लेकिन इस बार के परिणाम से निश्चित रूप से अब स्कूल-कॉलेजों के प्रबंधन पर ज़बरदस्त दबाव होगा कि वे सुचारु रूप से न केवल पढ़ाई करवाएं, बल्कि छात्रों का पूरा सिलेबस समय पर खत्म करना भी सुनिश्चित करें.
किन इसके लिए यक्षप्रश्न है कि विद्यालयों और इंटर कॉलेजों में शिक्षकों का अभाव है, खासकर अनुभवी, प्रशिक्षित शिक्षकों का, सो, ऐसे में छात्रों के पास अनुभवी शिक्षकों द्वारा संचालित निजी कोचिंग में जाने के अलावा विकल्प शेष ही नहीं रह जाता है.
अब सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि राज्य सरकार इस साल के परीक्षा परिणामों को कितनी बड़ी चुनौती के रूप में लेती है. अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहें तो इस ख़राब परिणाम की बुनियाद पर बिहार के छात्रों के स्वर्णिम भविष्य की बुनियाद रख सकते हैं. अब तक जब-जब शिक्षा व्यवस्था को लेकर राज्य सरकार की किरकिरी हुई है, उसने उससे अगले वर्ष बेहतर व्यवस्था की है, लेकिन अब सिर्फ प्रशासनिक चुस्ती और कठोरता से काम नहीं चलने वाला. अब सरकार को पढ़ाई के लिए न केवल शिक्षक जुटाने होंगे, बल्कि मौजूदा शिक्षकों की योग्यता को भी जांचना होगा, और उन्हें कैसे योग्य बनाया जाए, इस पर मंथन कर कम समय में परिणाम भी लाना होगा.
दरअसल, नीतीश कुमार सरकार की असली परीक्षा अब शुरू हुई है. जिस तरह 2015 और 2016 में सिर्फ एक फोटो और दो टीवी इंटरव्यू को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार ने शिक्षा माफिया पर चोट की थी, और अब भी अगर ठीक उसी तरह, उसी गंभीरता से इस साल के परिणामों को देखा, और पढ़ाई के स्तर पर ध्यान दिया तो निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में स्थिति बेहतर होगी.
और हां... यह भी तय है कि इतने ख़राब परीक्षा परिणाम की वजह से कई साल बाद इस बार बिहार से पलायन करने वाले छात्रों की संख्या सबसे कम होगी. हालांकि बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कुछ छात्रों के परिणाम में गड़बड़ी की शिकायतों को दूर किया जाएगा, जिससे कुछ विद्यार्थियों का रिज़ल्ट बेहतर हो जाएगा, लेकिन ऐसे विद्यार्थियों की संख्या कुछ सौ ही होगी. उधर, बिहार के कॉलेजों में दाखिले का कट-ऑफ प्रतिशत पिछले 20 साल में सबसे कम होगा. इसके अलावा जिन छात्रों का रिज़ल्ट 'पूर्णतः फेल' नहीं है, वे जुलाई में होने वाली कंपार्टमेंट परीक्षा में भाग्य आज़मा सकते हैं.
सो, बिहार में भले ही इस बार आठ लाख छात्र-छात्रा फेल हो गए हैं, लेकिन परीक्षा तो नीतीश कुमार सरकार की शुरू हुई है.
मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...
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