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This Article is From Feb 05, 2019

ममता धरने पर, सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 05, 2019 01:32 am IST
    • Published On फ़रवरी 05, 2019 01:25 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 05, 2019 01:32 am IST

भारत देश में चिट फंड कंपनियां आम लोगों को लूट कर ग़ायब हो जाती हैं और इसके शिकार वर्षों तक मारे मारे फिरते हैं. दिल्ली और कोलकाता की लड़ाई में आपको एक पक्ष यह यकीन दिलाने का प्रयास कर रहा है कि ग़रीब लोगों के लूटे गए धन की वापसी और उनके अपराधियों को सज़ा दिलाने से कोई समझौता नहीं करना चाहता है तो दूसरा पक्ष यह यकीन दिलाना चाहता है कि सीबीआई का इस्तमाल हो रहा है ताकि जांच के बहाने उसकी सरकार को अस्थिर किया जा सके. इन दोनों बातों पर आने से पहले आपको मैं 2 फरवरी 2019 की कुछ तस्वीरें दिखाना चाहता हूं ताकि आपके बीच यह बात साफ हो जाए कि चिट-फंड के शिकार लोगों के लिए कौन लड़ रहा है.

2 फरवरी को दिल्ली में देश भर से आए ये लोग उन 5 करोड़ 60 लाख लोगों में से है जिन्हें पर्ल एग्रोटेक कोरपोरेशन लिमिटेड ने एक बचत योजना के नाम पर लूट लिया है. तीन साल पहले यानी 2 फरवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने इनके पैसे वापस दिलाने के आदेश दिए थे मगर अभी तक पैसे नहीं मिले. आप बताइये कि इन पांच करोड़ से अधिक गरीब निवेशकों के लिए कौन लड़ रहा है. इस कंपनी ने जिन्हें एजेंट बनाए थे उनमें से कइयों ने खुदकुशी कर ली. ग़रीब लोगों की पूंजी बर्बाद हो गई. शरद यादव, सीताराम येचुरी, जिन्गनेश मेवानी, नाना पटोले, आम आदमी पारटी के नेताओं ने संबोधित किया. 2 फरवरी की सभा में आने के लिए इन लोगों ने बीजेपी के सांसदों को भी ज्ञापन दिया था मगर उनकी तरफ से कोई नहीं आया. 49,1000 करोड़ और पांच करोड़ 60 लाख लोगों का मामला है, क्या इसे लेकर आपने टीवी की बहस देखी कि तीन साल बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हिसाब से पैसा क्यों नहीं मिला. इसके आयोजक एस बी यादव ने बताया कि कोई 350 चिट फंड कंपनियां हैं जिन्होंने 10 करोड़ लोगों को लूटा है. आप सोचिए कि दिल्ली में इतनी बड़ी संख्या में लोग आए, चिट फंड के शिकार लोग आए मगर उसे लेकर न तो मुद्दा बना न ही चैनलों में उत्तेजना फैली. छोटे निवेशकों की चिन्ता होती तो इस रैली को लेकर घमासान मचा होता.

पीएसीएल का घोटाला बग़ैर राजनीतिक संरक्षण के नहीं हो सकता है. बंगाल का सारदा चिट फंड भी बग़ैर राजनीतिक संरक्षण के नहीं हो सकता है. अगर छोटे निवेशकों की चिन्ता होती तो 6 साल से सीबीआई जांच नहीं कर रही होती. अगर आपको लगता है कि सीबीआई राजनीति नहीं करती तो आपको 6 साल में भी कोई नहीं समझा सकता. सारदा चिट-फंड स्कैम 2013 में ही सामने आ चुका था. 6 साल से इस केस को लेकर जांच हो रही है मगर अभी तक ट्रायल शुरू नहीं हुआ है, ज़ाहिर है छोटे निवेशकों की चिन्ता काफी गंभीर है.

अप्रैल 2010 में पश्चिम बंगाल सरकार के आर्थिक अपराध जांच शाखा के निदेशक ने सेबी को घोटाले की सूचना दी थी. उसी के आधार पर Securities and Exchange Board of India (सेबी) ने सारदा कंपनी को सारी योजनाएं बंद करने के आदेश दिए. इस आदेश में कहा गया था कि सारे पैसे लौटा दिए जाएंगे. यह राशि 1200 से लेकर 2000, 4000 और 10,000 करोड़ तक बताई जाती रही है. 239 कंपनियों में 17 लाख से अधिक लोगों ने अपने पैसे लगाए थे. इस केस में बंगाल और उड़ीसा के निवेशक ठगे गए थे. तृणमूल सरकार ने निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए 500 करोड़ का फंड बना दिया. 


बंगाल सरकार ने रिटायर जस्टिस श्यामल सेन की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी बना दी. 9 मई 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच का काम सीबीआई को सौंप दिया. उड़ीसा में बिना लाइसेंस के चल रही 44 ऐसी कंपनियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए थे. सीबीआई के अलावा, बंगाल, असम और उड़ीसा की पुलिस को भी जांच के आदेश दिए. कहा था कि राज्य पुलिस संघीय एजेंसी की मदद करती रहे.

मई 2014 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के तब के चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर ने लिखा था कि अभी तक जो जांच हुई है उससे सेबी, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी और रिज़र्व बैंक के अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध नज़र आती है. उस पहलू पर क्या हुआ, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं है. क्या सुप्रीम कोर्ट इस केस की मानिटरिंग कर रहा है, क्या उसके आदेश से सीबीआई की टीम कोलकाता गई, कहा जा रहा है कि दोनों बातें सही नहीं हैं. ऐसा होता तो आज सुप्रीम कोर्ट के सामने सीबीआई कह देती कि हुज़ूर हम तो आपका ऑर्डर लेकर गए थे. जून 2016 में सीबीआई ने इस केस के संबंध में 46 एफआईआर दर्ज की. 43 एफआईआर उड़ीसा में दर्ज हुई और तीन बंगाल में. एफआईआर में सारदा समूह के अधिकारियों के अलावा तृणमूल सांसद कुणाल घोष का नाम था. पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस प्रमुख रजत मजुमदार, संधीर अग्रवाल, सहित कई लोगों के नाम थे और गिरफ्तार भी हुए थे.

मुकुल राय का नाम तो आपने सुना ही होगा. 2014, 2015 और 2016 के साल के आरोपों को सर्च कीजिए, बीजेपी सारदा स्कैम में तृणमूल कांग्रेस के इस नेता का खूब नाम लेती थी. जनवरी 2015 में सीबीआई मुख्यालय में मुकुल राय पेश भी हुए थे पूछताछ के लिए. मुकुल राय नवंबर 2017 में भाजपाई हो गए. नारद स्टिंग ऑपरेशन में इनके खिलाफ एफआईआर हुई थी. नवंबर 2017 में बीजेपी में शामिल होने से पहले बीजेपी के महाचसिव विश्वप्रिया राय चौधरी का बयान आया था कि मुकुल राय जैसे अवसरवादी नेताओं को बीजेपी में नहीं लिया जाएगा. मगर मुकुल राय बीजेपी में आ गए. ममता बनर्जी ने तो असम सरकार के मंत्री हेमंत विस्वा शर्मा पर भी इस घोटाले में शामिल होने के आरोप लगाए हैं. असम चुनाव के समय में भी ममता ने हेमंत विश्वा शर्मा पर आरोप लगाए थे. हेमंत हमेशा इंकार करते रहे हैं. 

हमने सारी बातें नहीं बताईं मगर कुछ प्रमुख बिन्दु यहां रखने की कोशिश की है. बैकग्राउंड जानना ज़रूरी है. सीबीआई के नए निदेशक के ज्वाइन करने से एक दिन पहले सीबीआई के 40 अफसर कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार का घर दफ्तर घेर लेते हैं. कोलकाता पुलिस सीबीआई के ड्राईवर को खींच कर उतार लेती है. उसके अधिकारियों को पुलिस वैन में बिठा लेती है. राज्य पुलिस की टीम सीबीआई के दफ्तर को घेर लेती है. जवाब में सीआरपीएफ की टीम उतार दी जाती है सीबीआई के दफ्तर की सुरक्षा में. एक ही दफ्तर के सामने राज्य की पुलिस और केंद्र का अर्धसैनिक बल आमने सामने हैं. इसे संवैधानिक संकट बताया जाता है, संस्थाओं में टकराव बताया जाता है. एक तरह से है भी कि सीबीआई के अधिकारी पुलिस कमिश्नर के घर पहुंच जाते हैं और उन्हें काम करने से रोका जाता है. क्या सीबीआई वारंट और सर्च पेपर के साथ गई थी, जो तय प्रक्रिया थी उसका पालन कर रही थी. ममता का आरोप है नहीं कर रही थी. चार महीने पहले दिल्ली में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. दिल्ली पुलिस सीबीआई मुख्यालय को घेर लेती है. नए निदेशक को रातों रात बिठा दिया जाता है. आखिर वो कौन सा भरोसा टूटा था कि एक सीबीआई निदेशक को बिठाने के लिए दिल्ली पुलिस के जवानों से रात में सीबीआई मुख्यालय घेरवाया गया था. अक्तूबर 2018 की यह घटना आपको याद होगी. सीबीआई चीफ आलोक वर्मा के घर के बाहर उनके निजी सुरक्षा अधिकारी चार लोगों को पकड़ लेते हैं. दिल्ली में सनसनी फैल जाती है क्योंकि खबर आती है कि ये चारों इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी हैं. तो ये बाहर क्या कर रहे थे. बहुत तेज़ी से ये बात दबा दी गई. तब क्या दिल्ली में संवैधानिक मर्यादाएं नहीं टूटी थीं. क्या सरकार को अपने सीबीआई चीफ पर भरोसा नहीं था. क्या इतना भी भरोसा नहीं था कि बिना दिल्ली पुलिस से घेरवाए उनका नया निदेशक मुख्यालय में चार्ज नहीं ले सकता था.

तीन महीने पहले सीबीआई में क्या हो रहा था. सीबीआई के चीफ के पद पर बैठे आलोक वर्मा अपने नंबर टू राकेश अस्थाना के खिलाफ रिश्वत लेने के आरोप लगा रहे थे. अस्थाना अपने चीफ के बारे में भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे थे. ऐसी नौबत आ गई थी कि कभी भी अस्थाना गिरफ्तार हो सकते थे. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अंत में जो हुआ आप जानते हैं. जब सीबीआई के दो निदेशक एक दूसरे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकते हैं, एक मिनट के लिए मान लें फरजी ही तो फिर आप कैसे मान सकते हैं कि सीबीआई जो करती है वो राजनीति के तहत नहीं करती है. सीबीआई सारदा केस में कितना गंभीर है यह जानने के लिए पिछले दिसंबर महीने में कोलकाता हाई कोर्ट के आदेश के बारे में जान लीजिए. टाइम्स ऑफ इंडिया में इसकी रिपोर्ट छपी है. 

कोलकाता हाई कोर्ट सीबीआई को कड़ी फटकार लगाता है कि चिट फंड केस में जांच पूरी नहीं कर पाई है. जस्टिस बागची और जस्टिस सराफ ने सीबीआई के वकील से कहा कि कब तक जांच पूरी होगी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चार साल हो गए मगर साज़िशकर्ताओं की भूमिका पर अंतिम रिपोर्ट जमा नहीं हुई है.

छोटे निवेशकों को अगर न्याय दिलाने का मामला होता तो अब तक ट्रायल शुरू हो चुका है. अगर आप बारीकी से देखेंगे तो दोनों तरफ से लग रहे आरोपों में कुछ दम है और बहुत कुछ राजनीति है. ममता बनर्जी 3 फरवरी की रात से ही धरने पर बैठी हैं. ममता बनर्जी ने सत्याग्रह नाम दिया है. यहीं से अपना काम कर रही हैं. ममता के इस धरने को विपक्ष का समर्थन मिल रहा है. राहुल गांधी, एम के स्टालिन, तेजस्वी यादव, चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल सहित तमाम विपक्ष के नेता सीबीआई के ज़रिए विपक्ष को कमज़ोर करने का आरोप लगाते हैं. ममता बनर्जी यहीं पर बंगाल पुलिस के अधिकारियों को भी सम्मानित करने लगती हैं. गृह मंत्रालय की तरफ से बंगाल के राज्यपाल से रिपोर्ट मांगी जाती है, रिपोर्ट भेज दी जाती है. यहीं से ममता समय समय पर मीडिया को संबोधित करती हैं, किसानों से फेसबुक लाइव करती हैं. मुख्यमंत्री सचिवालय, धरना स्थल, राजनीति स्थल सब ये मेट्रो चैनल बन जाता है. ममता लड़ाई पर आ गई हैं. बीजेपी भी लड़ रही है. बीजेपी के लिए सीबीआई एक महान संस्था हो गई है. ममता के लिए सीबीआई बीजेपी की दुकान हो गई है.

उधर सीबीआई की तरफ से सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता चीफ जस्टिस की कोर्ट में इस मामले को मेंशन करते हैं. पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी खड़े होते हैं. तुषार मेहता कहते हैं कि बंगाल में असाधारण हालात हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ही जांच के आदेश दिए थे. पुलिस कमिश्नर को चार नोटिस भेजे गए क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य मिटाए गए हैं. मगर सीबीआई अफसरों को हिरासत में लिया गया है. राजीव कुमार आंशिक आरोपी हैं इसलिए वे तुरंत सरेंडर करें. ये संवैधानिक संकट है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, '5 फरवरी को ऐसे साक्ष्य दिए जाए कि कमिश्नर या कोई अथॉरिटी सबूत मिटाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर हमें यह पता चला तो गंभीर कार्रवाई करेंगे. इस मामले की सुनवाई 5 फरवरी को साढ़े दस बजे होगी.

हमारे सहयोगी आशीष भार्गव ने बताया कि 16 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की अरजी पर सुनवाई की थी. सीबीआई का आरोप था कि पश्चिम बंगाल पुलिस जांच में सहयोग नहीं कर रही है. तब जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की पीठ ने सीबीआई से कहा कि कोलकाता हाई कोर्ट जाएं. 6 दिसंबर 2018 का कोलकाता हाई कोर्ट का एक आदेश मिला है. इसमें बंगाल पुलिस के तीन अफसर कोर्ट गए थे. इन तीनों अफसरों ने सीबीआई के नोटिस को चुनौती दी थी. इन तीनों में पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार नहीं थे. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि 30 नवंबर को नोटिस जाता है कि 7 और 8 नवंबर को पूछताछ के लिए पेश हों. एक सब इंस्पेक्टर को 12 दिसंबर को नोटिस जाता है कि 10 दिसंबर को हाज़िर हों. कोर्ट ने कहा कि ये सारे नोटिस कानूनी नहीं है, वैध नहीं हैं और पर्याप्त नहीं हैं. कोर्ट इस मामले में 13 फरवरी को सुनवाई करने वाली है. यह आदेश जस्टिस शिवकांत प्रसाद का है.

क्या इस पर बात नहीं होनी चाहिए कि सीबीआई ने इस तरह से नोटिस कैसे जारी करती है. क्या यही सीबीआई की गंभीरता है कि 30 नवंबर को नोटिस भेजे कि आप 7 और 8 नवंबर को हाज़िर हों. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में बड़ा दिन है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजीव, जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच सुनवाई करेगी. अदालत का क्या रुख होगा, सीबीआई क्या साक्ष्य पेश करेगी और बंगाल सरकार कैसे जवाब देगी, सबकी नज़र अदालत पर होगी. आज इस मसले पर बीजेपी भी काफी सक्रिय रही. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह समेत कई बीजेपी नेताओं के बयान आए हैं.

इस मामले में अरविंद केजरीवाल अलग एंगल से सवाल उठा रहे हैं. 2015 में दिल्ली में सरकार बनाते ही केजरीवाल एसएस यादव को एंटी करप्शन ब्रांच का प्रमुख बना देते हैं. मगर जून 2015 में उनकी जानकारी के बगैर ज्वाइंट सी पी मुकेश कुमार मीणा को एसीबी की चीफ बना दिया जाता है. आज तक यह मामला अदालत में है.

मामला संसद में भी उठा है. हम नहीं जानते कि राजनीति किस तरफ निशाना साध रही है. कंधा किसका है और बंदूक किसकी है. 3 फरवरी को कोलकाता में एक रैली हुई थी जो अब गुम हो गई है. रैली का एक वीडियो सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया है. क्या इस रैली ने तृणमूल और बीजेपी दोनों को अस्थिर किया है. राजनीति की चर्चा संभावनाओं के बगैर नहीं करनी चाहिए. जो सामने होता है वो अक्सर सामने नहीं होता है. जो पीछे होता है वो सामने नहीं आता है. बंगाल में लेफ्ट की रैलियां बड़ी होती रही हैं मगर कहा जा रहा है सत्ता से बेदखल होने के बाद लेफ्ट की ऐसी रैली नहीं हुई है. मेरी इस पर कोई राय नहीं है लेकिन इस दृश्य को कैसे देखा जाए, क्या इसकी कोई भूमिका है या नहीं इस पर भी चर्चा हो सकती है या नहीं यह आप पर निर्भर करता है.

सोशल मीडिया पर इसे लेकर युद्ध छिड़ा है. प्रधानमंत्री मोदी के पुराने ट्वीट निकाले जा रहे हैं कि विपक्ष के खिलाफ सीबीआई का इस्तमाल हो रहा है तो बीजेपी राहुल गांधी के बयान निकाल रही है कि वे सारदा स्कैम के आरोपियों के बचाने का ममता पर आरोप लगा रहे हैं.

हम राजनीति में हिटलर का इस्तमाल बहुत ज्यादा करने लगे हैं. तृणमूल समर्थक प्रधानमंत्री मोदी को हिटलर की तरह पेश कर रहे हैं तो ममता बनर्जी को भी हिटलर की तरह पेश किया जा रहा है. ममता बनरजी की मूछें बना दी गई हैं. हिटलर को लेकर दोनों तरफ से ये हल्का मज़ाक है. हिटलर की क्रूरताओं को एक बार ध्यान से पढ़ लीजिए आप ऐसा चुटकुला नहीं बना सकेंगे. अगर इन पोस्टरों को देखते हुए इसकी ज़रा भी आशंका है तो मोदी बनाम राहुल या मोदी बनाम दीदी के सवालों से ऊपर उठकर बड़े सवालों की तरफ देखिए. पोलिटिक्स के इस गैस चेंबर में तथ्यों की बली दी जा रही है. प्रोपेगैंडा चरम पर है.

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