BLOG : अब बाहर निकलना चाह रहे हैं कांग्रेस के ‘लॉस्ट ब्वॉयज़’

पीटर पैन वह बालक था, जो बड़ा होने से इंकार करता रहा. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष 49-वर्षीय राहुल गांधी इसका शिखर हैं. पीटर पैन 'लॉस्ट ब्वॉयज़' का नेता था, और अगली पीढ़ी के इन नेताओं का अकेलापन और तकलीफ इतनी ज़्यादा बढ़ रही है कि पीटर पैन और उसके 'लॉस्ट ब्वॉयज़' से उनकी तुलना निश्चित रूप से की जाएगी.

BLOG : अब बाहर निकलना चाह रहे हैं कांग्रेस के ‘लॉस्ट ब्वॉयज़’

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था...

एक वक्त था, जब कांग्रेस के लिए सब कुछ ठीक चल रहा था. वे बड़े परिवारों (उनमें से एक तो पूर्व राजपरिवार का सदस्य है) के उत्तराधिकारियों के रूप में चांदी का चम्मच लिए पैदा हुए थे, उनकी जमकर खातिर की गई, उनकी सुनी गई, और प्रशासन का तजुर्बा दिलवाने के लिए उन्हें राज्यमंत्री भी बनाया गया. अब माहौल बहुत बदल गया है. उम्र के पांचवें दशक में कदम रख चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद तथा दीपेंद्र हुड्डा 'पीटर पैन सिन्ड्रोम' से पीड़ित हैं, और सुधार के लिए संघर्षरत दिख रहे हैं.

पीटर पैन वह बालक था, जो बड़ा होने से इंकार करता रहा. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष 49-वर्षीय राहुल गांधी इसका शिखर हैं. पीटर पैन 'लॉस्ट ब्वॉयज़' का नेता था, और अगली पीढ़ी के इन नेताओं का अकेलापन और तकलीफ इतनी ज़्यादा बढ़ रही है कि पीटर पैन और उसके 'लॉस्ट ब्वॉयज़' से उनकी तुलना निश्चित रूप से की जाएगी. इन लोगों का कोई कसूर नहीं होते हुए भी इनका उत्थान और पतन उसी तरह हुआ, जिस तरह राहुल गांधी का हुआ.

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ज्योतिरादित्य सिंधिया की नेतृत्व से नाराज़गी भले ही सार्वजनिक नहीं है, लेकिन फिर भी जगज़ाहिर है... (फाइल फोटो)
 

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ तथा 'सुपर चीफ मिनिस्टर' कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह की सावधान और चालाक जोड़ी के खिलाफ ज्योतिरादित्य सिंधिया अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं. सिंधिया ने कुछ ताकत हासिल कर पाने के लिए सभी मान्य तरीके और साधन इस्तेमाल कर लिए. अख़बारों में छपे विज्ञापन और दीवारों पर लगे होर्डिंग्स में पहले उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग की गई थी, फिर पार्टी की प्रदेश इकाई का प्रमुख बनाए जाने की. ज्योतिरादित्य सिंधिया के वफादार माने जाने वाले वनमंत्री उमंग सिंघार ने दिग्विजय सिंह को 'ब्लैकमेलर' की संज्ञा दे डाली, और उन पर 'शराब कारोबार तथा गैरकानूनी रेत खनन में शामिल होने' का आरोप लगाया.

इस बयान के बाद उन्होंने पार्टी की मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक खत भी लिखा, जिसमें उन्होंने 'दिग्विजय सिंह पर पर्दे के पीछे रहकर मध्य प्रदेश सरकार चलाने' का आरोप भी लगाया.

इसके बाद सिंधिया बुधवार को उस समय उमंग सिंघार के समर्थन में खुद भी उतर आए, और कमलनाथ से उमंग की बात और आरोप सुनने का आग्रह किया, जब सोनिया ने सिंघार की मांगों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

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मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस की मुंबई इकाई के प्रमुख पद से जुलाई में इस्तीफा दे दिया था...

लोकसभा चुनाव में अपनी गुना सीट हार जाने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने ही गढ़ में लगभग अप्रासंगिक बना दिया गया. वह पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ का स्थान लेना चाहते हैं, लेकिन पार्टी उन्हें झुनझुना ही पकड़ाती रही. जब प्रियंका गांधी वाड्रा ने महासचिव (पूर्व उत्तर प्रदेश) के रूप में राजनीति में कदम रखा, ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया गया. जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ा, तब उस अवसर को उपयुक्त समय मानकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ऐसा पद छोड़ देने के लिए इस्तेमाल किया, जो वह कभी नहीं चाहते थे. इसके बाद पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का प्रमुख बनाया, और यह भी ऐसा काम है, जो वह नहीं चाहते.

अब कांग्रेस में यह अटकलें बेहद गर्म हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ मुंबई दक्षिण संसदीय क्षेत्र से चुनाव हार चुके मिलिंद देवड़ा भी कांग्रेस छोड़कर BJP में जाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके लिए बातचीत काफी आगे पहुंच चुकी है, लेकिन इस मौके पर इसे सही समझना बहुत जल्दबाज़ी होगी, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि दोनों नेता बेहद बेचैन हैं, और अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर चिंतित भी. वास्तव में, जब से सोनिया गांधी और उनके पुराने सहयोगियों ने राहुल से पार्टी की कमान संभाली है, पुराने सहयोगियों की गाज़ युवा नेताओं पर ही गिर रही है.

उनकी महत्वाकांक्षाओं पर गाज़ गिरने की वजह यह है कि सिंधिया, देवड़ा और जितिन प्रसाद ने बार-बार सार्वजनिक रूप से पार्टी से कतई अलग लाइन अख्तियार की है. इन तीनों तथा दीपेंद्र हुड्डा ने अनुच्छेद 370 को हटा दिए जाने (जम्मू एवं कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर देना) का सार्वजनिक रूप से स्वागत किया था और जितिन प्रसाद ने हाल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जनसंख्या नियंत्रण के विचार का स्वागत किया था.

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राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश को सचिन पायलट ने कभी नहीं छिपाया...
 

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, जितिन प्रसाद तो लोकसभा चुनाव से पहले ही BJP में जाने की पूरी तैयारी कर चुके थे, और उनकी योजना के बारे में मीडिया द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था. बताया जाता है कि राहुल गांधी के साथ कार में बैठकर किए गए एक सफर, जिके दौरान उनसे कांग्रेस में ही बने रहने का आग्रह किया गया था, ने उनका इरादा बदल दिया. लेकिन यह तब की बात है. राहुल के जाने के बाद वह BJP के साथ फिर बातचीत करने लगे. राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश को कभी छिपाकर नहीं रखने वाले सचिन पायलट भी अपने स्वभाव के विपरीत मौजूदा अफरातफरी में बिल्कुल चुप्पी साधे हुए हैं, जो आज की कांग्रेस की परिभाषा बनकर रह गई है. सूत्रों का कहना है कि वह BJP में अपना भविष्य नहीं देख पाते हैं, क्योंकि राजस्थान में BJP के पास पहले से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और गजेंद्र सिंह शेखावत हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और BJP अध्यक्ष अमित शाह के पसंदीदा मंत्री हैं.

सो, इसके बजाय वह चुपचाप खुद की एक क्षेत्रीय पार्टी लॉन्च करने पर विचार कर रहे हैं. उनके नज़दीकी सूत्रों ने ज़ोर देकर कहा कि फिलहाल यह सिर्फ एक विचार है, जिसका मूर्त रूप लेना इस बात पर निर्भर करेगा कि आगामी विधानसभा चुनाव के परिणाम क्या रहते हैं.

कांग्रेस में अगली पीढ़ी के नेता तरक्की के अवसरों के अभाव और पार्टी के मौजूदा वैचारिक अटकाव की वजह से नाराज़ हैं. एक युवा नेता ने कहा, "हम चुनाव हारते रहेंगे, क्योंकि मतदाताओं को पता ही नहीं है कि हम किस बात का समर्थन कर रहे हैं... अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति को लेकर हम ज़मीन पर एक विरोध प्रदर्शन तक नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे पास न नेतृत्व है, न कार्यकर्ता... यह राहुल गांधी के लिए सही हो सकता है, क्योंकि वह मनमोहन सिंह के कैबिनेट में भी मंत्री नहीं बनना चाहते थे... हम चाहते थे... हमने मेहनत की, और तौर-तरीके सीखे... अब उनकी गद्दी को तो उनकी मां संभाले बैठी हैं, हम कहां जाएं...?"

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दीपेंद्र हुड्डा का अचानक पार्टी लाइन से अलग चले जाना पार्टी को 'ब्लैकमेल' करने की कोशिश माना जा रहा है...
 

उधर, दीपेंद्र हुड्डा अपने पिता (हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री) भूपेंद्र हुड्डा के साथ पैकेज डील के तौर पर आते हैं, और उनके पिता चुनाव का सामना करने जा रहे हरियाणा में राहुल गांधी द्वारा नियुक्त किए गए अशोक तंवर के हाथों से नियंत्रण अपने हाथ में लेने में कामयाब रहे. दरअसल, सोनिया गांधी के पुराने वरिष्ठ सहयोगियों ने उन्हें समझाया, और नियंत्रण नहीं दिए की स्थिति में पार्टी छोड़कर चले जाने का हुड्डा का ब्लैकमेल कामयाब रहा.

इससे युवा नेता ज़्यादा नाराज़ हो गए, जिनमें से एक ने कड़वाहट-भरे स्वर में कहा, "कांग्रेस में आगे बढ़ने के लिए आपको एक कद्दावर नेता के नाम का सहारा चाहिए..." इस पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी जवाब दिया. सोनिया गांधी के एक सहयोगी ने कहा, "हम जानते हैं कि वे नाराज़ हैं, लेकिन क्या शाह उन्हें मंत्री बना देंगे...?"

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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