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This Article is From Jan 17, 2024

लोकसभा चुनाव विश्लेषण पार्ट-2 : BJP के सामने दक्षिण भारत में मौजूदा सीटें बरकरार रखने की चुनौती

Rajendra Tiwari
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 17, 2024 07:45 am IST
    • Published On जनवरी 17, 2024 07:42 am IST
    • Last Updated On जनवरी 17, 2024 07:45 am IST

दक्षिण भारत बीजेपी (BJP South Politics) के लिए बड़ी चुनौती रहा है. पिछले दस साल से बीजेपी वहां पर विशेष फोकस भी कर रही है. संसद के नए भवन में सेंगोल स्थापना से लेकर राम मंदिर तक से दक्षिण भारत को बीजेपी अपने नैरेटिव के साथ संबोधित करने की कोशिश करती रही है. वाराणसी में तमिल समागम, केरल में आऱिफ मोहम्मद को राज्यपाल बनाना, काशी से तमिलनाडु के लिए ट्रेन, राम मंदिर के श्रीविग्रह के लिए कर्नाटक के शिल्पकार का चयन आदि जैसे सतत प्रयास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से चल रहे हैं. 2014 से अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण के राज्यों के करीब-करीब 75 दौरे कर चुके हैं.

प्रधानमंत्री केरल और आंध्र के दौरे पर हैं और अपने कार्यक्रमों के जरिए वहां के लोगों को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से जोड़ने की कोशिश भी कर रहे हैं. इन सबके बावजूद, दक्षिण भारत में बीजेपी का विस्तार उस तरह से नहीं हो पाया है, जैसा दूसरे राज्यों हुआ.

कर्नाटक में बीजेपी की मजबूत उपस्थिति करीब दो-ढाई दशक से रही है. अविभाजित आंध्र प्रदेश में बीजेपी की जमीन बढ़ती दिखाई पड़ती थी लेकिन विभाजन के बाद वह स्थिति नहीं रही. तमिलनाडु और केरल में बीजेपी की विशेष कोशिशें जारी हैं. वोट बढ़ा है लेकिन क्या यह वोट बड़ी संख्या में सीटों में तब्दील हो सकता है?
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2014 के मुकाबले 2019 में घटा बीजेपी का वोट प्रतिशत

तमिलनाडु और केरल बीजेपी को हमेशा ही निराश करते रहे हैं, लेकिन बीजेपी इन दोनों राज्यों पर विशेष फोकस कर रही है. अगर आकड़ों को देखें तो केरल से सकारात्मक संकेत मिलते हैं. तमिलनाडु के संकेत बीजेपी के लिए निराशाजनक हैं. केरल में बीजेपी 2014 में 18 सीटों पर लड़ी थी. तिरुवनंतपुरम की सीट पर बीजेपी को 32.3% फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के शशि थुरूर ने 34.1% वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. बाकी 17 सीटों पर बीजेपी तीसरे नंबर पर रही थी और कुल 10.5% वोट मिले. साल 2019 में बीजेपी 15 सीटों पर लड़ी. तिरुवनंतपुरम में फिर वह दूसरे नंबर पर रही लेकिन वोट प्रतिशत कम होकर 31.3% रह गया और कांग्रेस का वोट बढ़कर 41.2% हो गया. चार अन्य सीटों पर भी बीजेपी को  20% से ज्यादा वोट मिले. इस बार इन चार सीटों के अलावा अलपुझा से बीजेपी उम्मीद लगा सकती है.अलपुझा कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे एके एंटनी के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है और पिछले साल एंटोनी के बेटे अनिल ने बीजेपी का दामन थाम लिया था.

2014 में बीजेपी ने जीती कन्याकुमारी सीट

तमिलनाडु की तस्वीर एआईएडीएमके के साथ छोड़ने की वजह से बीजेपी के लिए कठिन हो गई है. यहां के आंकड़े भी कोई उजली तस्वीर पेश नहीं करते हैं. 2014 में बीजेपी यहां 9 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, इसमें से एक कन्याकुमारी की सीट जीती थी और तीन पर दूसरे स्थान पर रही थी. वोट प्रतिशत कुल 5.5%  था. लेकिन बीजेपी जिन 9 सीटों पर लड़ी, वहां उसका कुल वोट प्रतिशत 24.1 रहा. 2019 में बीजेपी पांच सीटों पर एआईएडीएमके साथ मिलकर लड़ी और पांचों पर दूसरे नंबर रही. इन पांच सीटों पर उसका वोट रहा 28.8 फीसदी, लेकिन कन्याकुमारी उसके वोट 2014 के 37.8% से घटकर 35% रह गए. यह सीट कांग्रेस ने 59.8% वोट लेकर  जीत ली.  एक अंतर और आया कि  2014 में जहां बीजेपी ने 7 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त और 21 में दूसरे नंबर पर थी, 2019 में किसी विधानसभा सीट पर बीजेपी की बढ़त कायम नहीं रही।. फिर भी, बीजेपी की निगाह तीन सीटों कन्याकुमारी, कोयंबटूर और रामनाथपुरम पर हो सकती हैं. निगेटिव कारक है एआईएडीएमके के साथ छोड़ देना.

तेलंगाना में बदल गई बीजेपी के लिए तस्वीर

आंध्र प्रदेश में पिछले चुनाव में बीजेपी का वोट सिर्फ एक प्रतिशत था, जो 2014 के मुकाबले 6.2% अंक कम था. 2014 में बीजेपी ने 7.2% वोट के साथ दो सीटें जीती थीं. राज्य में उभर रहे मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में बीजेपी के लिए फिलहाल कोई खास फायदा नहीं दिख रहा है. तेलंगाना में बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव से पहले तक अनुकूल माहौल दिख रहा था लेकिन अब वहां कांग्रेस के सत्ता में आ जाने के बाद तस्वीर बदली हुई है. 2019 में बीजेपी ने यहां चार सीटें जीती थीं और उसका वोट प्रतिशत 19.7 था.

कर्नाटक में 2019 में बीजेपी ने जीतीं 25 सीटें

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 13.90 % रह गया.  दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट 11 फीसदी अंक बढ़कर 39.40% हो गया,  यह बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती है. कर्नाटक में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, हालांकि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने यहां 28 में से 25 सीटें जीती थीं.  गुजरात और हिंदी पट्टी के राज्यों के अलावा कर्नाटक अकेला ऐसा राज्य था जहां बीजेपी को आधे से ज्यादा 51.7% वोट मिले थे. लेकिन विधानसभा चुनाव में वोट 36% रह गया. 2018 के विस चुनाव में 38.14% वोट पार्टी को मिला था. मोटे तौर पर 2013, 2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव और इस बीच हुए दोनों आम चुनावों को देखें तो बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती संकेत ही मिलते हैं.

केरल और तमिलनाडु पर बीजेपी की नजर

कुल मिलाकर दक्षिण भारत के पांच राज्यों से 129 सीटें (पुडुचेरी को मिला लें तो 130 सीटें) आती हैं, जिसमें से 29 सीटें 2019 में बीजेपी ने जीती थीं. इन राज्यों में बीजेपी का वोट  2.4% बढ़ा और 8 सीटें बढ़ीं. आकड़ों को देखने पर यह संख्या बरकरार रखना बीजेपी के लिए मुश्किल नहीं है. अगर स्थितियां थोड़ी भी अनुकूल रहीं तो केरल और तमिलनाडु में बीजेपी का प्रदर्शन इस संख्या को बढ़ा भी सकता है. बीजेपी का नैरेटिव अब तक यहां सिर्फ कर्नाटक में असरदार रहता दिखाई दिया है. बाकी राज्यों में इसका ऐसा असर नहीं कि चुनावी राजनीति को प्रभावित कर सके. लेकिन क्या इस बार भी ऐसी ही स्थिति रहेगी? यह देखना रोचक होगा कि बीजेपी की कोशिशें वोटों और सीटों में  कितना तब्दील हो पाएंगी.

(राजेंद्र तिवारी वरिष्ठ पत्रकार है, जो अपने लम्बे करियर के दौरान देश के प्रतिष्ठित अख़बारों - प्रभात ख़बर, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान व अमर उजाला - में संपादक रहे हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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