ललित मोदी के मामले पर जो विवाद उठा है उस पर विपक्ष ने एक तरफ जहां सुषमा और वसुंधरा पर निशाना साधा हुआ है वहीं प्रधानमंत्री पर भी हमला तेज कर दिया है। कांग्रेस के सुरजेवाला ने प्रधानमंत्री से कहा है कि बात बात पर ट्वीट करने वाले अब मौन क्यों हैं, क्या वे मौन मोदी बन गए हैं और उन्हें इस पर मन की बात करनी चाहिए।
सरकार की दिक्कत ये है कि ललित मोदी को इमीग्रेशन के कागजात दिलवाने के फैसले को पूरी सरकार का फैसला ठहरा चुकी है और चिदंबरम यही सवाल उठा रहे हैं कि यदि यह पूरी सरकार का फैसला था तो प्रधानमंत्री की जिम्मेवारी ही बनती है।
बीजेपी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर मौन व्रत रखने का आरोप लगाती रही थी और अब मौका कांग्रेस को मिला है और वह मोदी को मौन मोदी कह रही है। ये बात तो सही है कि सब यह सुनना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं।
बीजेपी इसलिए चुप हो गई कि यदि इस मामले में वसुंधरा राजे पर कोई कारवाई की तो राजस्थान में पार्टी संकट में आ जाएगी क्योंकि राजस्थान बीजेपी खासकर विधायक दल वसुंधरा के पीछे पूरी तरह से खड़ा है। वसुंधरा और केन्द्रीय बीजेपी के बीच टकराव कोई नया नहीं है। पहले भी जब एक बार बीजेपी वसुंधरा को विपक्ष के नेता पद से हटाना चाहती थी तो वसुंधरा ने एक तरह से बगावत कर दी थी और अपने विधायकों को दिल्ली भेज दिया था।
कई जानकार मानते हैं कि वसुंधरा पर कार्रवाई करने पर राजस्थान में बीजेपी टूट सकती है। दूसरे यदि वसुंधरा पर कार्रवाई हुई तो सुषमा का बचाव करना सरकार के लिए मुश्किल हो जाएगा और फिर बात प्रधानमंत्री तक जाएगी। ऐसे हालात में प्रधानमंत्री की चुप्पी थोड़ी असहज लग रही है क्योंकि प्रधानमंत्री अपने दिल की बात कहने के लिए जाने जाते हैं, सोशल मीडिया का उपयोग शानदार ढंग से करते हैं, उनको अपनी बात कहने के लिए किसी मंच की जरूरत नहीं है।
ट्वीटर, फेसबुक से लेकर अब तो उनका अपना ऐप भी आ गया है। इसके आलावा भी उनके पास ढेरों साधन हैं जिससे वो लोगों तक इस मुद्दे पर अपनी राय बता सकते हैं। वैसे 28 जून को झारखंड में प्रधानमंत्री की एक रैली है, लोगों को उम्मीद है कि वहां प्रधानमंत्री जरूर ललित मोदी मुद्दे पर कुछ कहेंगे क्योंकि अक्सर रैलियों में वे अपने विरोधियों को जम कर अपने अंदाज में जबाब देते हैं।
लोग मानते हैं कि भले ही प्रधानमंत्री अभी मौन मोदी बने हुए हैं मगर सही वक्त पर वे इसका करारा जबाब देंगे क्योंकि चुप रहना उनकी फितरत नहीं है। भले ही मनमोहन सिंह कहते थे कि हजारों जबाबों से अच्छी है खामोशी मेरी न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली, मगर मौजूदा प्रधानमंत्री हर सवाल का करारा जबाब दिया जाएगा में विश्वास रखते हैं। इंतजार कीजिए थोड़े वक्त तक।
This Article is From Jun 18, 2015
बाबा की कलम से : ‘मौनमोहन’ तो थे, ‘मौन मोदी’ कब से हो गए...?
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Updated:जून 18, 2015 18:45 pm IST
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Published On जून 18, 2015 18:41 pm IST
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Last Updated On जून 18, 2015 18:45 pm IST
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