विज्ञापन
Story ProgressBack
This Article is From Nov 15, 2017

मानवीय उच्चादर्शों के बड़े कवि कुंवर नारायण का अवसान

Om Nishchal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    November 15, 2017 14:30 IST
    • Published On November 15, 2017 14:30 IST
    • Last Updated On November 15, 2017 14:30 IST
जुलाई 2017 से ब्रेन हैमरेज से अचेत हुए कुंवर नारायण आज सुबह नहीं रहे. चितरंजन पार्क, नई दिल्ली का उनका घर अब जैसे सूना-सा हो गया है जहां रह कर उन्होंने जाने कितनी कविताएं लिखीं, कितने संग्रह आए. वह देश दुनिया के साहित्यिकों के लिए तीर्थ जैसा था. कुंवर नारायण देश-विदेश में सबसे ज्यादा मान सम्मान पाने वाले कवियों में थे जिनकी गणना भारत और विश्व के कुछ चुनिंदा समकालीन कवियों लेखकों में की जाती है. ऐसे कवि का जाना एक युग का अवसान है. वे अपनी रचनाओं में जीवन की सच्ची चरितार्थता के बारे में कह चुके हैं : 
किंचित श्लोक- बराबर जगह में भी पढ़ा जा सकता है 
एक जीवन –संदेश
कि समय हमें कुछ भी 
अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं देता, 
पर अपने बाद 
अमूल्य कुछ छोड़ जाने का पूरा अवसर देता है

कुंवर नारायण ने अपनी कविता यात्रा में हमें कई नायाब संग्रह दिए हैं. ‘चक्रव्‍यूह’, ‘परिवेश: हम-तुम’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’, ‘हाशिए का गवाह’, ‘आत्‍मजयी’, ‘वाजश्रवा के बहाने’ और ‘कुमारजीव’. उनका एक कहानी संग्रह ‘आकारों के आस-पास’ भी प्रकाशित है. एक समालोचक के रूप में ‘आज और आज से पहले’, ‘शब्‍द और देश काल’  और ‘रुख़’ उनके साहित्‍य चिंतन के साक्ष्‍य हैं तो उनकी डायरी ‘दिशाओं का खुला आकाश’ साहित्‍य, कला जीवन समाज, राजनीति और संस्‍कृति पर उनके स्फुट चिंतन का परिणाम है.

विदेशी कविताओं के अनुवाद की उनकी पुस्तक ‘न सीमाएं न दूरियां’ काव्यानुवाद और ‘लेखक का सिनेमा’ सिनेमा समीक्षा पर उनकी संलग्नता का प्रमाण हैं. अपने पूरे मिजाज और केंद्रीय स्‍वभाव में वे कवि थे. वे अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्‍तक के वे सहयोगी कवियों में रहे हैं. उनके भीतर जितना समावेशी कवि था, उतना ही उनके भीतर का आलोचक तीक्ष्‍ण जो अपनी पसंद निर्मित करते हुए किसी भी विषय को उसके निहितार्थों में उतरकर देखता था.

शुरू में अनेक समाजवादियों, कलाकारों, लेखकों से हुई उनकी मुलाकातों से साहित्‍य के बारे में उनकी समझ परिपक्‍व हुई. 90 साल के अपने जीवन में वे कितना कुछ अमूल्य हमारे मध्य छोड़ गए हैं जो हमारे कमजोर क्षणों में शब्द-संबल बन कर उनकी याद दिलाते रहेंगे. 

(इस लेख के लेखक डॉ. ओम निश्चल हिंदी के कवि, गीतकार एवं आलोचक हैं तथा कुंवर नारायण के जीवन और साहित्य पर आधारित दो खंडों में प्रकाश्य आलोचनात्मक ग्रंथ ‘अन्वय’ एवं ‘अन्विति’ के संपादक हैं.)

...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...  

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
सॉरी विराट, सॉरी रोहित... भला ऐसे भी कोई अलविदा कहता है!
मानवीय उच्चादर्शों के बड़े कवि कुंवर नारायण का अवसान
रामलला लौटे अयोध्या, आस हुई पूरी -  अब फोकस सिर्फ देश की तरक्की पर
Next Article
रामलला लौटे अयोध्या, आस हुई पूरी - अब फोकस सिर्फ देश की तरक्की पर
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;