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This Article is From Feb 08, 2015

कादम्बिनी के कीबोर्ड से : क्या परमाणु करार पर पीछे हटे हम?

Kadambini Sharma, Saad Bin Omer
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  • Updated:
    फ़रवरी 08, 2015 20:23 pm IST
    • Published On फ़रवरी 08, 2015 20:13 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 08, 2015 20:23 pm IST

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों की जो बड़ी उपलब्धि बताई गई वह यह थी कि परमाणु समझौते को लागू करने की राह में अटका रोड़ा हट गया है। हालांकि उस वक्त यह कैसे हुआ और फाइन प्रिंट क्या है, ये नहीं बताया गया।

अब विदेश मंत्रालय ने अक्सर पूछे जाने वाले 19 सवालों का जवाब दिया गया है। इस सवाल-जवाब से जो निकल कर आता है वह यह कि बात सिर्फ इस पर हुई है कि हादसे की सूरत में जिन भारतीय कानूनों को विदेशी कंपनियां रोड़ा मान रही हैं, उनकी असल में व्याख्या कैसे होगी।

इन सवालों के जवाब से यह लगता है कि असल में परमाणु रिएक्टरों में हादसे की सूरत में जो हर्जाना होगा, वह रिएक्टर चलाने वाले को यानि ऑपरेटर को देना होगा। कानून में यह प्रावधान है कि अगर ऑपरेटर चाहे तो वह सामान और ईंधन आपूर्ति करने वाले पर हर्जाने के लिए दावा कर सकता है। लेकिन यहां पर समझने वाली बात यह है कि ऑपरेटर कौन होगा। असल में ये ऑपरेटर सरकारी कंपनी न्यूक्लियर पॉवर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCIL) है और सरकार का कहना है कि हादसे की सूरत में ये हर्जाना ज़रूर मांगेगा। और तो और ये दावा इस पर भी निर्भर करेगा कि सामान आपूर्ति करने वाली कंपनी से करार में इसका प्रावधान है या नहीं।

यह समझना मुश्किल नहीं है कि भारतीय नागरिक अदालत में मुकदमे सरकारी कंपनी के खिलाफ कर सकते हैं, जितना तय किया गया है उतना हर्जाना सरकारी कंपनी तो अपने नागरिकों को देगी, लेकिन वह स्पलायर से हर्जाना मांगे या नहीं यह सरकार पर निर्भर करेगा और भारतीय नागरिक विदेशी कंपनियों से हर्जाना नहीं मांग पाएंगे।

हालांकि यह प्रावधान - सिविल न्यूक्लियर लायब्लिटी डैमेज एक्ट 2010 के सेक्शन 46 के तहत है और दुनिया में हर जगह यही मान्य है। जहां तक 1500 करोड़ के इंश्योरेंस पूल का सवाल है, वह भी हमारे आपके टैक्स के पैसे से ही बनेगा। हालांकि सरकार यह दावा कर रही है कि इससे परमाणु रिएक्टरों से मिलने वाली बिजली की कीमत कुछ पैसे ही बढ़ेगी।
     
इस सब के बावजूद काग़ज़ पर साफ कानूनी प्रावधान ना होने के कारण जीई और तोशिबा-वेस्टिंगहाउस जैसी विदेशी कंपनियां, जो सप्लायर हैं, वह फिलहाल आश्वस्त नज़र नहीं आ रहीं। यहां जिस एक चीज़ पर सरकार की चली है वह परमाणु ईंधन को शुरू से अंत तक ट्रैक करने की अमेरिकी मांग जिसे भारत ने नहीं माना, और अमेरिका इस पर पीछे हट गया।

तो इन सारे तथ्यों को देखने के बाद अंत में फिर सवाल वही है कि असल में परमाणु समझौते पर कुछ बदला है? और अगर हां तो भारत दो कदम आगे बढ़ा है या दो कदम पीछे हटा है।

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