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This Article is From Nov 11, 2014

कादम्बिनी के कीबोर्ड से : डरें, एएमयू के फैसले से...

Kadambini Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 19, 2014 15:55 pm IST
    • Published On नवंबर 11, 2014 18:21 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 19, 2014 15:55 pm IST

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के वाइस चांसलर (कुलपति) के मुताबिक लड़कियों को अगर यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी इस्तेमाल करने की इजाज़त दी गई तो और लड़के वहां आएंगे ...और जगह भी तो कम है... तो सबसे आसान रास्ता क्या है, जगह की इस कमी से निबटने का...? लड़कियों को आने की इजाज़त ही न दो... असल में इस एक बयान में कई ऐसे विचार निहित हैं, जो न सिर्फ गुस्सा दिलाते हैं, परेशान करते हैं, बल्कि डराते भी हैं...

चलिए, शुरू से शुरू करते हैं... अगर मान लें कि जगह की कमी है तो जगह बढ़ाने, लड़कों का आना रेग्युलेट करने की जगह क्या कदम उठाया गया - लड़कियां इस लाइब्रेरी में नहीं आएंगी... सवाल यह है कि यह रास्ता सबसे आसान क्यों लगा...? क्या इसलिए कि इसके खिलाफ पहले कभी लड़कियां ज़ोर-शोर से आवाज़ नहीं उठा पाईं, चुपचाप सहती आईं...? कभी आवाज़ उठाई भी हो तो क्या यूनिवर्सिटी प्रशासन को यह लगा कि इतना पढ़ने की लड़कियों को ज़रूरत ही क्या है...? शायद इस राय से बहुत सारे अभिभावक भी इत्तफ़ाक रखते होंगे कि ज़रूरत क्या है, शादी ही तो करनी है... यह भारतीय समाज में अब भी काफी हद तक रची-बसी वही सोच है, जहां अधिकतर लड़कियों के लिए जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य और उपलब्धि शादी ही मानी जाती है... जब तक यह हो न जाए, तब तक सारी पाबंदियां लड़कियों पर ही हैं, और 'क्या ज़रूरत है' - ये तीन शब्द भी सबसे ज्यादा शायद वही सुनती हैं...

बात सिर्फ एएमयू की नहीं है... कई बार आपने सुना होगा कि लड़कियों को सलवार-कुर्ता पहनकर आना है - ड्रेस कोड है... या महिला टीचर साड़ियां ही पहनकर आएं... लड़कियां जीन्स न पहनें, मोबाइल लेकर न घूमें वगैरह-वगैरह... और मैं यहां किसी खाप पंचायत की बात नहीं कर रही हूं... मैं कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की बात कर रही हूं... जब ऐसे फ़रमान जारी होते हैं तो फ़रमान जारी करने वालों में यह दंभ भी होता है कि लड़कियां अथवा महिलाएं इस फ़रमान को मानने के लिए मजबूर होंगी... मजबूर इसलिए, कि वे कमज़ोर हैं, वीकर सेक्स हैं और यहां का पितृसत्तात्मक समाज ऐसा ही सोचता, मानता है और लागू करता है... अगर ऐसा नहीं होता तो इस तरह के फैसले इतनी आसानी से नहीं कर लिए जाते... अगर बराबर माना जाता तो कम से कम पूछा तो जाता कि यह एक राय है, आप इस बारे में क्या सोचती हैं... लेकिन नहीं, महिलाओं को कैसे रखना है, यह फैसला उसी तरह लिया जाता है, जैसे घर में सोफा कहां और कैसे रखा जाएगा...

एएमयू के वीसी ने एक और बात कही है कि लड़कियों के आने से और लड़के आएंगे पीछे-पीछे... तो लड़कों को अनुशासित करने के बजाए लड़कियों को रोक दो... एएमयू की महिला कॉलेज की प्रिंसिपल के मुताबिक लाइब्रेरी लड़कों से भरी होती है, लड़कियों को भी इजाज़त दे दी तो अनुशासन की समस्या हो जाएगी... शायद इशारों में कहा जा रहा है कि आपकी सुरक्षा का मसला है... अब इस एक बात से हो सकता है कुछ लड़कियां भी घबराएं, अभिभावक तो कई घबराएंगे... ऐसे बयान का मतलब यही निकाला जाएगा, जैसे कुछ दुकानों में लिखा होता है कि ग्राहक अपने पर्स का ध्यान रखें, हमारी ज़िम्मेदारी नहीं, यहां पिकपॉकेट सक्रिय हैं... मतलब यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में भी लड़कियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उन्हीं की है, प्रशासन की नहीं... याद तो आ रहा होगा आपको, ऐसे बयान और कहां-कहां सुने हैं आपने...

यह भी कहा गया है कि लड़कियों को इजाज़त दी तो चार गुना और लड़के आएंगे... यह उम्र आकर्षण की होती ही है, लेकिन आपको अपनी दी हुई शिक्षा पर, संस्कारों पर भरोसा भी तो होना चाहिए कि आपने अपने पुरुष छात्रों को महिलाओं की इज़्ज़त करना भी सिखाया है... और ग़लती हुई तो सख्त सज़ा मिलेगी... लेकिन सबसे ज़्यादा डराने वाली बात यह है कि इस तरह की सोच पढ़े-लिखे लोगों की है... ऐसे लोग इस तरह के नियम बना रहे हैं, बयान दे रहे हैं, जिन पर आगे की नस्लों की सोच-समझ को संवारने का जिम्मा है... यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं... अभी तो जो एएमयू ने किया है, वह बिना किसी गलती छात्राओं को सज़ा देने वाली बात है... उड़ने की कोशिश करते ही पर कतरने वाली बात है...

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