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This Article is From Jul 10, 2017

आईएसआईएस के कब्ज़े से निकला मोसुल, भारत में 39 परिवारों की नज़रें दरवाज़ों पर

Kadambini Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 10, 2017 16:03 pm IST
    • Published On जुलाई 10, 2017 15:59 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 10, 2017 16:03 pm IST
मोसुल में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ रही इराकी सेना ने अपनी जीत का ऐलान कर दिया है. रविवार को इराकी प्रधानमंत्री हैदर अबदी मोसुल पहुंचे. दुनिया के कई देशों ने मोसुल पर जीत का स्वागत किया है, लेकिन जब अबदी अपनी सेना ने मिल रहे थे, उस वक्त भी धमाकों और गोलियों की आवाज़ें शहर के एक हिस्से से सुनाई दे रही थीं. कुछ गिने-चुने रिपोर्टर, जो वहां पहुंचे, दूर धमाकों से उठता धुआं भी देख पा रहे थे, और इस वक्त भी सीरियाई सेना अमेरिका की मदद से राक्का पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रही है. लेकिन मोसुल की जीत बड़ी भी है और प्रतीकात्मक तौर पर इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) को धक्का देने वाली भी, क्योंकि मोसुल की सबसे बड़ी मस्जिद में ही अबू बकर अल बगदादी ने ख़िलाफ़त (Caliphate) स्थापित करने का ऐलान किया था.

ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन ने इराकी सेना की इस जीत का स्वागत किया है, और ब्रिटेन के रक्षामंत्री माइकल फैलोन ने यह भी कहा कि अभी जिहादियों के खात्मे के लिए बहुत कुछ करना बाकी है. लेकिन यह लड़ाई लंबी चलेगी, क्योंकि इन आतंकवादियों को सिर्फ इस इलाके से ही खत्म करना काफी नहीं. इसकी वजह यह है कि पिछले कुछ वक्त में इनके काम करने का तरीका बदल चुका है. शुरुआत में आईएसआईएस ने जिहाद के लिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से लोगों को इराक, सीरिया बुलाया. लेकिन जब दुनियाभर में आईएसआईएस के हमले शुरू हुए, तब दुनिया को समझ में आ गया कि ये कितने खतरनाक हैं.

इसके बाद आतंकवादियों के सीरिया, इराक आने-जाने पर लगाम कसी गई, तो आईएसआईएस ने नया पैंतरा अपनाया. उसने कहना शुरू किया कि जो भी उनके साथ काम करना चाहे, उनकी विचारधारा को मानता है, वह जहां है, वहीं आईएसआईएस के लिए हमले करे. ऐसा ही होने लगा. घरेलू आतंक में आईएसआईएस का चेहरा नज़र आने लगा. यही वजह है कि मोसुल या राक्का पर कब्ज़े का मतलब कतई यह नहीं हो सकता कि आईएसआईएस का आतंकवाद खत्म हो जाएगा. इंटरनेट के ज़रिये वह घरेलू आतंकवाद और अपनी विचारधारा पर शायद ज़्यादा ज़ोर देना शुरू कर दे.

वैसे, ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम में पहले ही आईएसआईएस के स्लीपर सेलों की धरपकड़ जारी है. कई लोगों पर निगरानी है. आईएसआईएस के आतंक से प्रभावित देशों को न सिर्फ अपने खुफिया तंत्र को चाकचौबंद करना होगा, बल्कि साइबर सुरक्षा, हवाई सुरक्षा, सीमा सुरक्षा और नागरिक जागरूकता पर ध्यान देना होगा. साथ ही उन राजनीति, आर्थिक, सामाजिक कारणों पर भी नज़र रखनी होगी, जो आतंकवाद के पनपने में मददगार होते हैं.

और इस सबके बीच भारत में 39 परिवारों को इंतज़ार है, उन अपनों का, जिनके बारे में 2014 में खबर आई थी कि उन्हें आईएसआईएस ने अगवा कर लिया है. उन्हीं में से एक मज़दूर, जो भाग निकला, का दावा है कि बाकी सब मार दिए गए. अब मोसुल के आईएसआईएस के चंगुल से छूटने के बाद सबकी नज़र इस पर है कि वहां से उनके बारे में क्या खबर आती है...

कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और फारेन अफेयर्स एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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