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This Article is From Jun 26, 2015

सिर्फ सियासी फायदे के लिए याद आते हैं जेपी

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 29, 2015 11:48 am IST
    • Published On जून 26, 2015 23:55 pm IST
    • Last Updated On जून 29, 2015 11:48 am IST
आपातकाल की बरसी के आस पास जयप्रकाश नारायण अनिवार्य हो जाते हैं। उसके बाद वैकल्पिक हो जाते हैं और फिर धीरे-धीरे गौण। चुनाव आता है तो भ्रष्टाचार के प्रतीक बन जाते हैं और चुनाव चला जाता है कि तो उन्हें छोड़ सब भ्रष्टाचार के मामलों में बचाव करने में जुट जाते हैं।

जयप्रकाश नारायण हमारी राजनीति में वक्त बेवक्त काम आते रहते हैं। सार्वजनिक रूप से इतिहास को ऐसे ही देखा जाने लगा है। केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि जय प्रकाश नारायण के गांव में एक मेमोरियल बनेगा और उनके नाम से गया ज़िले में एक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट भी बनेगा।

जेपी का गांव सिताब दियारा अपने आप में अनोखा है। इस गांव के हिस्से में दो नदियां आती हैं। गंगा और घाघरा। इस गांव का कुछ हिस्सा यूपी में और कुछ बिहार में आता है। इस गांव का अलग-अलग हिस्सा तीन ज़िलों में आता है। 32 टोलों के इस गांव की आबादी करीब 40,000 हज़ार बताई जाती है।

जय प्रकाश नारायण का जन्म सिताब दियारा के 32 टोलों में से एक लालापुरा टोला में हुआ था लेकिन बाढ़ के बाद वे उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले सिताब दियारा में आ गए और वहीं रहे। इस हिस्से में उनके नाम से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने एक जेपी ट्रस्ट बनाया था। इस ट्रस्ट की इमारत काफी ठीकठाक है। इसमें जेपी की किताबें, तस्वीरें, कुर्सी, बिस्तर वगैरह कई निजी चीज़ें रखी हुई हैं। जब तक चंद्रशेखर ज़िंदा थे तब तक यहां 11 अक्तूबर को हर साल मेला जैसा लगता रहा जिसमें कई बड़े नेता जमा होते रहे। अब इस ट्रस्ट पर उन्हीं के परिवार के रविशंकर सिंह पप्पू का कब्ज़ा है जो इस वक्त बहुजन समाज पार्टी से विधान पार्षद है।

चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर समाजवादी पार्टी से राज्य सभा के सांसद हैं। गांव बलिया ज़िले में आता है जिसके सांसद बीजेपी के भरत सिंह हैं। गांव के लोग कहते हैं कि ट्रस्ट पर दबंगों का कब्ज़ा हो गया है। अब यह जनता के लिए नहीं खुलता, तभी खुलता है जब एमएलसी रविशंकर सिंह आते हैं या चाहते हैं। इसमें एक गेस्ट हाउस भी है। गांव के लोगों का कहना है कि मोदी सरकार के मेमोरियल बनाने का प्रस्ताव का हाल जेपी ट्रस्ट जैसा न हो जाए।  सिताब दियारा के यूपी वाले हिस्से में स्कूल और अस्पताल तो है मगर वहां शिक्षकों की संख्या कम है और गांव के लोगों ने कहा कि अस्पताल में एक डॉक्टर है जो कभी कभार ही आते हैं। बाढ़ इस गांव की नियति है। इस वक्त राज्य सरकार बांधों की मरम्मत का कार्य करा रही है।

यूपी वाले सिताब दियारा से ठीक 2 किमी की दूरी पर वो जगह है जहां जेपी का जन्म हुआ था। लालापुरा टोला। जहां मोदी सरकार मेमोरियल बनाएगी। यह हिस्सा बिहार के छपरा ज़िले में आता है जिसके सांसद हैं केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी। जयप्रभा फाउंडेशन के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह मस्त प्रधानमंत्री मोदी के साथ चले गए हैं। वे अब यूपी के भदोई से सांसद हैं। बताया जा रहा है कि मेमोरियल में लोकतंत्र पर अध्ययन और शोध होगा। हो सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी उद्घाटन करेंगे। यूपी वाले सिताब दियारा में जेपी के नाम पर ट्रस्ट है तो बिहार वाले सिताब दियारा में उनकी पत्नी जयप्रभा के नाम पर। एक जेपी को दो हिस्सा नहीं हो सकता था तो यूपी के हिस्से में पति आ गए और बिहार के हिस्से में पत्नी।

2010 में नीतीश कुमार ने जयप्रभा फाउंडेशन बनाकर उनके पुराने और खंडहर से दिख रहे इस घर में लाइब्रेरी बना दी। यहां भी जेपी की पुरानी किताबें तस्वीरें हैं। गांव के लोग कहते हैं कि लाइब्रेरी कब खुलती है किसी को पता नहीं। 11 अक्टूबर को जब नेता आते हैं या कोई बड़ा नेता आता है तो यहां हलचल होती है, उसके बाद लाइब्रेरी बंद हो जाती है। लाइब्रेरी के आगे एक मूर्ति बनी है।

नीतीश कुमार जेपी सेना बनाकर आपातकाल के दौरान जेल गए पांच हज़ार लोगों को पेंशन भी देने लगे। 2011 में अन्ना आंदोलन के समय जब आडवाणी ने यहां से कालाधन के ख़िलाफ़ अपनी रथ यात्रा शुरू की तब नीतीश कुमार भी उनके साथ थे। इस रथ यात्रा के कारण गांव में बिजली भी पहुंच गई जो अब सात आठ घंटे आती है। लेकिन चार साल के भीतर नीतीश कुमार को बीजेपी से अलग होना पड़ा और जयप्रभा फाउंडेशन के प्रमुख गजेंद्र सिंह मस्त बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने चले गए। मेमोरियल हमारी चुनावी राजनीति का एक हिस्सा रहा है। जेपी की उस राजनीति का क्या हश्र हुआ उसका कोई ईमानदार विश्लेषण होगा इसकी तो उम्मीद मत ही रखिये। लोकतंत्र, पंचायत और गांधी पर शोध के लिए संस्थानों की कमी नहीं है लेकिन 11 अक्टूबर को नेताओं के अलावा सिताब दियारा कोई आता जाता नहीं, वहां म्यूज़ियम मेमोरियल बनाना चुनावी नहीं तो और क्या है।

धीरे-धीरे लोग लिखने लगेंगे कि इस फैसले के ज़रिये लालू और नीतीश के पाले से जेपी की विरासत को हड़पा जाएगा लेकिन ग़ौर से आप देखेंगे कि जेपी के जो भी सिंद्धांत थे उन पर कोई नहीं चल रहा है। गांधी और पटेल के रास्ते भी कोई नहीं चल रहा है केवल इनके नाम पर मेमोरियल बन रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि इस देश ने जयप्रकाश नारायण को भुला दिया हो।
- जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल एयरपोर्ट पटना
- लोकनायक जयप्रकाश हास्पिटल आर्थो, पटना
- जयप्रकाश युनिवर्सिटी, छपरा, बिहार
- लोकनायक जयप्रकाश नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनॉलजी एंड फोरेंसिक साइंस, दिल्ली
- लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल, दिल्ली
- जयप्रकाश नारायण ट्रॉमा सेंटर, एम्स
- लोकनायक भवन जिसमें राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग का दफ्तर है
- लोकनायक जयप्रकाश पार्क, बहादुर शाह ज़फर मार्ग, दिल्ली
- लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल, कुष्ठ निवारण ट्रस्ट, मुंबई
- जयप्रकाश नारायण कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, महबूबनगर, आंध्र प्रदेश
- जय प्रकाश नारायण बायो डायवर्सिटी पार्क, कर्नाटक
- जय प्रकाश नारायण पीयू कॉलेज, शिमोगा, कर्नाटक

इसके अलावा देश के तमाम शहरों में आपको जेपी नगर मिल जायेगा। मेमोरियल और ट्रस्ट की कमी नहीं है। हो सकता कि बिहार की राजनीति के कारण जेपी की भी हज़ारों फुट ऊंची प्रतिमा का ऐलान हो जाए लेकिन क्या कभी हम खुलकर बात कर पायेंगे कि उस आंदोलन में सबकुछ महान या आदर्श नहीं था। अगर हमने अतीत के गुणगान को ही राजनीतिक नियति मान लिया है तो क्या किया जा सकता है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक कई नेताओं के नाम पर संस्थान मेमोरियल और पार्क बने हैं। इससे राजनीति को क्या फायदा पहुंचा और वहां हुए अध्ययनों से लोकतंत्र को क्या लाभ हुआ इसका भी अध्ययन करने के लिए एक अलग से मेमोरियल या संस्थान बनना चाहिए।

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