मजबूत विपक्ष के सामने रघुवर दास के विकास कार्य - किसे मिलेगी सफलता?

झारखंड में 2014 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और जेएमएम दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार दोनों पार्टियां साथ में लड़ रही हैं.

मजबूत विपक्ष के सामने रघुवर दास के विकास कार्य - किसे मिलेगी सफलता?

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास

नई दिल्‍ली:

लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके विकास कार्यो पर देश की जनता ने भरोसा जताया, जिसके कारण बीजेपी ने पहली बार 300 सीटों के आंकड़े को पार किया. लोकसभा के बाद हुए महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में बीजेपी को आसानी से अपनी जीत का भरोसा था, क्योंकि 4 महीने पहले ही हुए चुनावों में बीजेपी ने प्रचड जीत हासिल की थी, लेकिन विधानसभा चुनावों के आएं परिणामों ने भाजपा नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया, क्योंकि इन चुनावों में ना तो विकास की बात पर जनता ने वोट दिया और ना ही धारा 370  के नाम पर वोट मिला. भाजपा के लिए अब नई परेशानी यह भी हैं कि उसकी सहयोगी पार्टियां लगातार उसका साथ छोड़ रहीं हैं, महाराष्ट्र में जहां शिवसेना ने 33 साल पुराने गठबंधन को तोड़ दिया तो झारखड़ में भाजपा की 20 साल पुरानी सहयोगी पार्टी आजसू ने चुनावों से ऐन वक्त पहले सीट बंटवारे को लेकर गठबंधन तोड़ दिया. तो सवाल यह हैं कि कैसे एक बार फिर भाजपा इस आदिवासी प्रदेश में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री को कुर्सी पर बैठा पाएंगी?

मजबूत विपक्ष के मायने
झारखंड की राजनीति इतनी बड़ी नहीं है कि इसे देश में खासा पहचान मिले और ना ही लोगों को इसके बारे में जानने की उत्सुकता है, लेकिन इस बार के चुनाव प्रदेश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि प्रदेश बनने के बाद यह पहली सरकार हैं जिसने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया हो, साथ ही इस आदिवासी बहुल प्रदेश में रघुवर दास पहले मुख्यमंत्री हैं जो गैर आदिवासी वर्ग से आते है. इसका श्रेय भाजपा को जाता है, जिसने 2014 में महाराष्ट्र में गैर मराठा ( देवेंन्द्र फडणवीस) और हरियाणा में गैर जाट ( मनोहर लाल ख़ट्टर) को मुख्यमंत्री बनाया था. लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह हैं कि 2014 में भाजपा द्वारा लिए गए दोनों ही निर्णय (महाराष्ट्र और हरियाणा) उसके अनुरुप नहीं रहें है, अब बस रघुवर दास सरकार के विकास कार्यों की बारी है.

झारखंड में 2014 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और जेएमएम दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार दोनों पार्टियां साथ में लड़ रही है, वहीं, पिछले चुनावों में बीजेपी ने आजूस और एलजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार पार्टी का गठबंधन टूट गया है. वही जेवीएम जिसने 2019 लोकसभा चुनाव कांग्रेस और जेएमएम के साथ चुनाव लड़ा था, वह पहली बार अकेले सभी विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रहीं हैं.

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कांग्रेस-जेएमएम के साथ आने से बीजेपी के लिए खड़ी हो सकती हैं मुश्किलें
कांग्रेस जेएमएम के साथ आ जाने से कहीं ना कहीं बीजेपी के अंदर भी हलचलें तेज हो गई है,क्योंकि आंकड़े दिखा रहे है कि बीजेपी का आजसू और एलजेपी के साथ गठबंधन टूटने पर उसे करीब 2.8 प्रतिशत वोट का नुकसान होता हुआ दिख रहा है. 

पार्टी

बीजेपी

कांगेस+जेएमएम+ आरजेडी

चेंज

वोट प्रतिशत

31.4

34.2

 -2.8


वहीं, अगर बीजेपी 2014 गठबंधन को बनाए रखने में कामयाब हो जाती तो, उसे कांग्रेस, जेएमएम और आरजेडी से 0.8 प्रतिशत वोटों की बढ़त मिलता हुआ दिखाई दे रहा हैं. 

पार्टी

बीजेपी+आजसू+एलजेपी

कांगेस+जेएमएम+आरजेडी

चेंज

वोट प्रतिशत

35.0

34.2

+0.8


अगर बात करें उन सीटों की जहां बीजेपी ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए तो ऐसी कुल 6 सीटें हैं वहीं कांग्रेस, जेएमएम, आरजेडी के वोट प्रतिशत को मिलाकर देखे तो कुल 13 ऐसी सीटें हैं जहां पर कांग्रेस गठबंधन ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किया है.
 

50 प्रतिशत वोट से अधिक वाली सीटें

पार्टी

बीजेपी

कांगेस+जेएमएम+आरजेडी

चेंज

सीटें

6

13

7


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मजबूत विपक्ष को चुनौती देते रघुवर सरकार के काम
15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य की स्थापना हुई थी, 20 साल के इस राज्य में रघुवर दास ही ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होनें 5 साल सरकार चलाई. यह राज्य नक्सल प्रभावित प्रदेश भी है, लेकिन पूरे 5 साल के कार्यकाल में सरकार ने कोई भी बड़ी नक्सली घटना नहीं घटने दी जिससे कि राज्य की कानून व्यवस्था ख़राब हो. सरकार ने प्रदेश में रोजगार को आकर्षित करने के लिए कई योजनाएं लागू की, जिससे कि कंपनियां यहां रोजगार लगा सके. 2017 में पहली बार झारखड सरकार ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया था, जिससे सरकार को उम्मीद है कि इस समिट के जरिये 310 लाख करोड़ रुपये का निवेश प्रदेश में होगा.

प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस प्रदेश की आय इसी पर आधारित है. जैसे की कोयले पर मिलने वाली रॉयल्टी, कच्चे लोहें से होने वाली आय सरकार की मुख्य कमाई का साधन है. साक्षरता के हिसाब से पिछड़ें इस प्रदेश में सरकार ने पढ़ाई पर खासा ध्यान दिया. प्रदेश में बीट्स, एनआईटी, इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स, आईआईएम जैसे प्रसिद्ध संस्थाएं है.

वहीं, अगर बात करे मुख्यमंत्री के कार्यो की तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह उनकी कई बार तारीफ़ कर चुके हैं. वरिष्ठ नेताओं के सहयोग के कारण ही बिना किसी राजनीति परिवार से आएं रघुवर दास अपने आप को राज्य की राजनीति में स्थापित कर रहे है. 

अब अगर बात 2019 लोकसभा चुनावों के परिणामों की बात करे तो कुल 14 सीटों में से 11 पर बीजेपी ने जीत दर्ज हासिल की थी, वही 1 सीट पर उसकी सहयोगी पार्टी आजसू,कांग्रेस और जेएमएम ने जीत दर्ज किया था. अगर लोकसभा चुनावों को विधानसभा परिणामों के हिसाब से देखे तो यहां बीजेपी और आजसू पूरे प्रदेश में कांग्रेस गठबंधन का सूपड़ा साफ करती हुई दिखाई दे रही है. लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में लोकसभा चुनावों का विधानसभा परिणामों के हिसाब से देखे तो कांग्रेस गठबंधन को 288 सीट में से (56 सीटें)  और 90 सीट में से (10 सीटें) मिल रही थी, लेकिन विधानसभा चुनावों के परिणाम हम सबके सामने है. इसलिए विश्लेषण करते समय हमें यह ध्यान रखना होगा कि, लोकसभा चुनाव के नतीजें विधानसभा चुनावों में भी वैसे ही सही साबित हो ऐसा जरुरी नहीं है,क्योंकि दोनों चुनावों में जनता नेताओं और मुद्दों को अलग-अलग परखती है.

2019 लोकसभा परिणाम विधानसभा अनुसार

पार्टी

बीजेपी+आजसू

कांगेस+जेएमएम+ आरजेडी

सीट

63

18


प्रदेश के चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है. इस बार जनता 5 चरणों में अपने जनप्रतिनिधियों को चुनेगीं, लेकिन इस बार की राजनीतिक लड़ाई हेमंत सोरेन के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इस बार का विधानसभा चुनाव कांग्रेस और विपक्षी पार्टीयां उनके ही नेतृत्व में चुनाव लड़ रहीं है.  इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह अपने आप को प्रदेश की राजनीति में स्थापित कर सके.

(अश्विन कुमार सिंह NDTV में एग्जीक्यूटिव इलेक्शन रिसर्चर हैं.)

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