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This Article is From Sep 21, 2017

क्या हर रोहिंग्या मुसलमान आतंकी है?

Jaya Kaushik
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 21, 2017 13:24 pm IST
    • Published On सितंबर 21, 2017 13:19 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 21, 2017 13:24 pm IST
जो लोग अपनी जान बचाने के लिए अपना मुल्क छोड़ दूसरे देश में शरण लेने को मजबूर हुए हों क्या वो आतंकी हैं? जिन्हें अपने ही मुल्क (म्यांमार) में नागरिक का दर्जा न दिया गया हो, जिनके गांव के गांव जला डाले गये हों, जो दूधमुंहे बच्चों और यहां तक कि गर्भवती महिलाओं को साथ लिए हज़ारों किलोमीटर दूर भूखे पेट विपरीत परिस्थितियों में भागने को मजबूर हुए हों. क्या वाकई हालात के मारे ये लोग भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं?

आइये एक नज़र डालते हैं रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर भारत सरकार के नज़रिए पर..

* ये देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं।
* कुछ रोहिंग्याओं की जम्मू,दिल्ली,हैदराबाद और मेवात में आतंकी पृष्ठभूमि की पहचान की गई है।
* भारत में जनसंख्या बहुत ज़्यादा है ऐसे में देश में उपलब्ध संसाधनों में इन्हें सुविधाएं देने से नागरिकों पर बुरा असर पड़ेगा।
* बहुत से रोहिंग्या फ़र्ज़ी पैन कार्ड और वोटर कार्ड जैसे भारतीय दस्तावेज़ हासिल कर चुके हैं।

ये जवाब केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ये कहते हुए दाखिल किया गया है कि कोर्ट को इस मामले में दखल देने की ज़रूरत नहीं। क्योंकि ये नीतिगत मामला है. जिस पर कोर्ट अब 3 अक्टबूर को सुनवाई करेगी।

अब सवाल यहां ये खड़ा होता है कि क्या भारत के लिए 'अतिथि देवो भव' जिसके लिए वो जाना जाता है वो सिर्फ़ एक टैग लाइन बनकर रह गई है? एक वक़्त वो था जब अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने कहा था, मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहे हैं।

पिछले दिनों विवेकानंद के इस भाषण की 125वीं सालगिरह पर प्रधानमंत्री ने उनसे सीख लेने की बात कही। लेकिन लगता नहीं कि मौजूदा सरकार ख़ुद ही विवेकानंद से कोई संदेश ले रही है। सवाल यही है क्या भारत अपने इतिहास और अपनी संस्कृति को भूलता जा रहा है? वह इतिहास जिसने हमेशा शरर्णाथियों को दिल से गले लगाया। फिर वो चाहे तिब्बती हों जिनके लिए पं. जवाहर लाल नेहरू ने हर संभव मदद देने और तब तक यहां रहने देने की बात कही जब तक कि तिब्बत में हालात पूरी तरह ठीक न हो जाएं। 

यही नहीं 1971 में पाकिस्तानी सेना द्वारा जब ईस्ट पाकिस्तान से बंगालियों का सफ़ाया किया जा रहा था तब पश्चिम बंगाल,असम,मेघालय और त्रिपुरा की राज्य सरकारों ने सीमा पर इन लोगों की मदद के लिए शरर्णाथी शिविर तक लगाए। पाकिस्तान से आए 400 हिंदू शरणार्थियों को भी गले लगाने में हमने देर नहीं की और सूरत,जोधपुर,जैसलमेर,बीकानेर, जयपुर के मुखतलिफ़ शहरों में ये बस गए। 2015 में भारत सरकार ने 4,300 हिंदू और सिख जो पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान से आए उन्हें भारत की नागरिकता देने में भी देर न की।

1979-1989 के बीच अफ़ग़ानिस्तान से आए 60,000 अफ़ग़ानियों की मदद के लिए भारत सरकार ने कार्यक्रम चलाए। पड़ोसी देश श्रीलंका में रह रहे तमिल जब 1 लाख की संख्या में भारत भाग आए तो हमारे देश ने उनका भी स्वागत किया।

सवाल यहां ये है कि रोहिंग्याओं के मामले में क्यों 'मेहमान को भगवान' की तरह पूजने वाली ये धरती मानवीय पहलू को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रही है? क्यों देश में 40 हज़ार की संख्या में दाखिल हुए ये रोहिंग्या मुसलमान पूरे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा नज़र आ रहे हैं? वो भी तब जबकि भारत में जहां-जहां भी रोहिंग्या बसे हैं यानी जम्मू, जयपुर, दिल्ली, फ़रीदाबाद, मेवात वहां उनके ख़िलाफ़ पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं है.

मुख्यमंत्री महबूबी मुफ्ती ने तो विधानसभा में यहां तक कहा है कि 'जम्मू और कश्मीर में कोई भी रोहिंग्या आतंकवाद में लिप्त नहीं पाया गया. इन विदेशियों के उग्रवादीकरण की एक भी घटना सामने नहीं आई'. जम्मू में रोहिंग्या के ख़िलाफ़ 14 एफआईआर ज़रूर हैं. लेकिन इसमें कई प्रकार के अपराध हैं जिनमें एक अवैध रूप से सीमा पार करना भी है. 

ऐसे में गृह मंत्री राजनाथ सिंह का इन्हें शरणार्थी न कहकर अवैध आप्रवासी (illegal immigrants) बताते हुए वापस भेजे जाने को कहना क्या सही होगा? वो भी तब जब बांग्लादेश में चार लाख की संख्या में पहुंचे रोहिंग्या शरणार्थियों की मदद के लिए तो हम हवाई जहाज़ के ज़रिए राहत सामग्री पहुंचाते हैं लेकिन जब अपने ही मुल्क में उनको शरण देने की बात आती है तो उन्हें न सिर्फ़ आतंकी बता दिया जाता है बल्कि मणिपुर,मिज़ोरम में म्यांमार की सीमा से इनके घुसने की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार सीमाएं सील करने के आदेश भी दे देती है। आखिर रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर ये दोहरा रवैया क्यों? क्या इसलिए कि वे मुसलमान हैं? बिना किसी आधार के इन्हें आतंकी बता देना क्या ठीक है? अगर हज़ारों की संख्या में आए ये बूढ़े,बच्चे और महिलाएं आतंकी लग रहे हैं तो हमारी खुफ़िया एजेंसी क्या कर रही थीं? सरकार का ये कहना कि रोहिंग्या फ़र्ज़ी पैन कार्ड और वोटर कार्ड जैसे अहम भारतीय दस्तावेज़ बना चुके हैं तो कहीं न कहीं ये तो सरकार की काबिलियत पर ही सवाल खड़ा करता है। भले ही हमारे देश में शरणार्थियों को लेकर कोई क़ानून न हो भले ही भारत सरकार ने 1951 यूएन रेफ्यूजी कनवेन्शन पर साइन न किए हों लेकिन वसुधैव कुटुम्बकम और सबको समाहित करने की हमारी जो अंतरराष्ट्रीय छवि है.

कम से कम उसका मान रखते हुए ही सही हमें एक बार फिर अपने नज़रिए और रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति नीति पर फिर से विचार करना चाहिए। क्योंकि ये वो लोग हैं जिन्हें म्यांमार भी अपना नागरिक मानने को तैयार नहीं ऐसे में अपनी पहचान को तलाशते और ज़िंदगी की जंग लड़ रहे इन लोगों के साथ सवा अरब की आबादी के मुल्क को बड़ा दिल दिखाते हुए इन्हें सीने से लगाना चाहिए क्योंकि इन्हें दुत्कार की नहीं अपनेपन और प्यार की ज़रूरत है।


जया कौशिक NDTV इंडिया में एंकर तथा सीनियर आउटपुट एडिटर हैं...

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