लेकिन फ्रांस में हुए इस आतंकी हमले की सिहरन शायद इस बार हमारे देश में महसूस की गई होगी। शायद इसलिए भी क्योंकि हम कश्मीर में तनावपूर्ण हालात से जूझ रहे हैं। आतंक का घिनौना चेहरा हमारे युवाओं में घर कर रहा है और किसी न किसी रूप में बार-बार सिर उठा रहा है। कैसे आंतकवाद के मामले बढ़ रहे हैं और कट्टरपन की भ्रमित सोच से मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं... हाल में ढाका हो,मदीना, ब्रसेल्स या अमेरिका।
फ्रांस में बिगड़ते हालात के पीछे मुसलिम नज़रिये से देखें तो कई कारण गिनाए जा रहे हैं...
- 9/11 के बाद फ्रांस जोकि एक धर्मनिरपेक्ष और बहुसांस्कृतिक समाज था, उसमें मुस्लिम समुदाय से भेदभाव दिखने लगा। कथित तौर पर पश्चिम में इस्लामोफोबिया (Islamophobia) के चलते हिजाब पर रोक लगा दी गई, जिससे बेहद व्यक्तिगत भाव को ठेस पहुंची और अपमान महसूस किया गया।
- दूसरे अमेरिका के साथ ISIS के खिलाफ सीरिया और इराक के खिलाफ मुस्तैदी से खड़े होने से हालात अंदरुनी समाज पर असर पड़ा।
- फ्रांस के राष्ट्रपति के इस युद्ध में उतरने के तर्कों के पीछे राजनीति दबाव अहम माना गया। देश राष्ट्रवाद की लहर से गुजर रहा था। कहा गया कि अलजीरिया और लीबिया के अनुभव के बाद फ्रांस द्वारा कुछ और समय लिया जा सकता था।
- साथ ही फ्रांस की राजनीति में दक्षिणपंथी राजनीति हावी हो रही है। नेता Marine le pen अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों की दौड़ में आगे हैं। वे इस्लामीकरण और मुस्लिम देशों से आ रहे अप्रवासियों के विरोध में मुखर हैं। "French citizenship should be either inherited or merited"- या फिर उनका ये कहना कि Muslims praying in the street Nazi occupation जैसे हैं... इससे चोट गहरी हो गई।
ISIS का बढ़ता जाल दुनिया भर के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रहा है। अपने देश की बात करें तो ये मिडिल ईस्ट के बाहर अपने नेटवर्क को फैलाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। जानकारों के मुताबिक, यह बांग्लादेश-पाकिस्तान से भारत को निशाना बनाना चाह रहा है...
- बांग्लादेश सरकार के विदेश मामलों के सलाहकार ने कहा कि ढाका हमले का मास्टरमाइंड पश्चिम बंगाल में कही हो सकता है। मिडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि मास्टरमाइंड मोहम्मद सुलेमान 7 महीने पहले भारत भाग गया था।
- हाल में केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने विधानसभा में बताया कि पिछले एक एक महीने से 21 मुस्लिम युवा लापता हैं, जिनमें चार महिलाएं और तीन बच्चे हैं।
- हालांकि विदेश मंत्रालय ने किसी जानकारी से इंकार किया कि केरल से कुछ परिवार ISIS की मदद के लिए इराक और सीरिया गए हैं, लेकिन इसे दक्षिणपंथियों की उपज कहकर क्या नकारा जा सकता है?
- पश्चिमी देशों में विशेषज्ञों के अनुसार भारत वो मॉडल हैं, जहां ISIS भारत के मुसलमानों में पैठ नहीं बना सकता। अमेरिकी सरकार के विश्लेषणों में भी इसी तरह का विश्लेषण मिल रहा है। तमाम उदारवादी धर्मगुरुओं को मुखर होकर बार-बार आतंक के कहर से आगाह करना होगा। सरकारों को भी एक सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को तव्वजो देनी होगी।
- ISIS आतंक की विस्फोटक विचारधारा कैसे मुस्लिम समाज के युवाओ में आसानी से जगह बना रही है। वो सोच की लोकतंत्र गैर इस्लामिक है या फिर धर्मनिरपेक्षता इस्लाम के विरोध में है, इससे निपटना होगा। आतंक के गढ़ों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबला करना होगा और जो देश आतंकवाद प्रायोजित करते हैं उनसे सख्ती से निपटना होगा।
(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
इस लेख से जुड़े सर्वाधिकार NDTV के पास हैं। इस लेख के किसी भी हिस्से को NDTV की लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इस लेख या उसके किसी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किए जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।