लेफ़्टिनेंट कर्नल सहित सात जवान शहीद हुए हैं। एक कृतज्ञ राष्ट्र को क्या करना चाहिए? क्या उसे चुप रहकर शोक जताना चाहिए या बोलने के नाम पर चैनलों पर बोलने की असभ्यता के हर चरम को छू लेना चाहिए? क्या आपको ऐसा होता हुआ दिख रहा है? कई न्यूज़ चैनलों पर पाकिस्तान से वक्ताओं को बुलाकर उनसे जो नूरा कुश्ती हो रही है उसका क्या मक़सद है? शहादत के इस ग़म को क्या हम इस तरह ग़लक़ करेंगे? भड़काऊ वक्ताओं को इधर के भड़काऊ वक्ताओं से भिड़ाकर हम कौन सा जवाब हासिल करना चाहते हैं? क्या जवाब मिलता भी है? सनक की भी एक सीमा होती है।
ऐसा लगता है कि हम आक्रामक होने के बहाने शहादत का अपमान कर रहे हैं। इन पाकिस्तानी मेहमानों के ज़रिये कहीं पाकिस्तान विरोधी कुंठा को हवा तो नहीं दी जा रही है। इस कुंठा को हवा तो कभी भी दी जा सकती है लेकिन ऐसा करके क्या हम वाक़ई शहादत का सम्मान कर रहे हैं? क्या ये पाकिस्तानी मेहमान कुछ नई बात कह रहे हैं? चैनलों पर पाकिस्तान से कौन लोग बुलाये जा रहे हैं? क्या वही लोग हैं जो इधर के हर सवाल को तू तू मैं मैं में बदल देते हैं और इधर के वक़्ता भी उन पर टूट पड़ते हैं। कोई किसी को सुन नहीं रहा। कोई किसी को बोलने नहीं दे रहा। इस घटना पर दोनों देशों के जिम्मेदार लोग बोल रहे होते तो भी बात समझ आती लेकिन वही बोले जा रहे हैं जिन्हें घटना की पूरी जानकारी तक नहीं। जिनका मक़सद इतना ही है कि टीवी की बहस में पाकिस्तान को अच्छे से सुना देना। किसी की शहादत पर गली मोहल्ले के झगड़े सी भाषा उसका सम्मान तो नहीं है? उनका परिवार टीवी देखता होगा तो क्या सोचता होगा।
क्या यही एकमात्र और बेहतर तरीका है? अपनी कमियों और चूक पर कोई सवाल क्यों नहीं है? क्या इस सवाल से बचने के लिए मुंहतोड़ जवाब और बातचीत के औचित्य के सवाल को उभारा जा रहा है? दो दिन से पठानकोट एयरबेस में गोलीबारी चल रही है लेकिन आप देख सकते हैं कि गृहमंत्री का असम दौरा रद्द नहीं होता है। बेंगलुरु जाकर प्रधानमंत्री योग पर लेक्चर देते हैं। सबका ज़रूरी काम जारी है। टीवी पर इनके इधर उधर से बाइट आ जाते हैं। उन्हें सुनकर तो नहीं लगता कि कोई गंभीर घटना हुई है। बस नाकाम कर दिया और जवाब दे दिया। क्या नाकाम कर दिया? दो दिनों से वे हमारे सबसे सुरक्षित गढ़ में घुसे हुए हैं। हम ठीक से बता नहीं पाते कि पांच आतंकवादी शनिवार को मारे गए या रविवार को पांचवा मारा गया। ख़ुफ़िया जानकारी के दावे के बाद भी वो एयरबेस में कैसे घुस आए?
कहीं इस आतंकी हमले से जुड़े सवालों से भागने का प्रयास तो नहीं कर रहे? हम अपनी बात क्यों नहीं करते? क्या ये चैनल भारत सरकार के कूटनीतिक चैनलों से ज़्यादा पाकिस्तान को प्रभावित कर सकते हैं? हम सीमा पार से बुलाये गए नकारे विशेषज्ञों और पूर्व सैनिकों को बुलाकर क्या हासिल कर रहे हैं? वो तो हमले को ही प्रायोजित बता रहे हैं। क्या उनके दावों को भारत सरकार गंभीरता से लेती है? एंकर भले उन पाकिस्तानी वक्ताओं पर चिल्ला दे लेकिन क्या हम इतने से ही संतुष्ट हो जाने वाले पत्थर दिल समाज हो गए हैं? मैं कभी युद्ध की बात नहीं करता लेकिन निश्चित रूप से शहादत पर शोक मनाने का यह तरीका नहीं है।
हम सबको गर्व है लेकिन क्यों इस गर्व में किसी के जाने का दुख शामिल नहीं है? क्या ग़म उनकी शहादत के गौरवशाली क्षण को चैनलों की तू तू मैं मैं वाली बहसों से अलंकृत कर रहे हैं? हम कहां तक और कितना गिरेंगे? क्या इस तरह से लोक विमर्श बनेगा। हम रात को टीवी के सामने कुछ दर्शकों की कुंठा का सेवन कर क्या कहना चाहते हैं? इन नक़ली राष्ट्रवादी बहसों से सुरक्षा से जुड़े सवालों के जवाब कब दिये जायेंगे। सोशल मीडिया पर इस घटना के बहाने मोदी समर्थक मोदी विरोधियों का मैच चल रहा है। उनकी भाषा में भी शहादत का ग़म नहीं है। गौरव भी कहने भर है। कोई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को हटाने का हैशटैग चला रहा है तो कोई मोदी का पुराना ट्वीट निकाल रहा है। सवालों की औकात इतनी ही है कि पूछे ही जा रहे हैं। जवाब देने की ज़िम्मेदारी और शालीनता किसी में नहीं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
This Article is From Jan 03, 2016
क्या शहादत के सम्मान का यही तरीका है?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
-
Updated:जनवरी 03, 2016 23:22 pm IST
-
Published On जनवरी 03, 2016 23:15 pm IST
-
Last Updated On जनवरी 03, 2016 23:22 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
पठानकोट एयरबेस हमला, शहादत, लेफ़्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार, शहादत का अपमान, रवीश कुमार, Pathankot Air Base Attack, Martyrdom, Lieutenant Colonel Niranjan Kumar, NSG, Ravish Kumar