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This Article is From May 28, 2019

क्या आपात स्थिति के लिए फ़ायर विभाग तैयार है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 28, 2019 00:39 am IST
    • Published On मई 28, 2019 00:39 am IST
    • Last Updated On मई 28, 2019 00:39 am IST

कई बार हम अपना कार्यक्रम इस सवाल से शुरू करते हैं कि क्या आपको पता है, लेकिन सच यह है कि हमें ही पता नहीं होता है, जब रिसर्च के दौरान पता चल जाता है तो हम शेखी बघारने आ जाते हैं कि क्या आपको पता है. जैसे मुझे नहीं पता था और आज ही शाम 5 बजकर 22 मिनट पर पता चला कि आग बुझाने वाली लाल रंग की जो गाड़ी हनहनाते हुए घरों तक आती है उसकी कीमत 40 से 50 लाख होती है और ऑर्डर करने पर छह महीने में बनकर आती है. बनी बनाई शो रूम में उपलब्ध नहीं होती है. टाटा कंपनी और हिन्दुजा ऑर्डर देने पर बनाती है. इस गाड़ी को आप देखते ही होंगे. इसके ज़रिए आप 35 फीट ऊंचाई तक आग लगने पर बुझा सकते हैं. आबादी के हिसाब से फायर स्टेशन होता है.

पुरानी दिल्ली में जहां आबादी का घनत्व अधिक है वहां दिल्ली में सबसे अधिक फायर स्टेशन है. दिल्ली में और भी कई इलाके हैं जहां आबादी का घनत्व अधिक है क्या वहां भी उसके अनुपात में फायर स्टेशन है. इन सब सवालों का जवाब ढूंढना ही सूरत की घटना से सबक लेना होगा. हर दिन देश भर में 54 लोग आग में जलकर मर जाते हैं. हर दिन भारत में सूरत जैसी घटना के बराबर दो अग्निकांड हो जाता है.

24 मई को सूरत के तक्षशिला आर्केड में आग लगने से 22 लोगों की मौत हो गई है. 17 छात्र छात्राओं की मौत की घटना के बाद सारी बहस इस तंज तक सिमट कर रह गई है कि हम 3000 करोड़ की पटेल की मूर्ति बना लेते हैं मगर स्मार्ट सिटी सूरत में आग बुझाने के लिए सीढ़ी तक नहीं थी. स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट सूरत में ही पूरे हुए हैं. इस तरह से हम किसी घटना पर व्हाट्सऐप मैसेज भेजकर अपने अपने काम में लग जाते हैं. जैसे आप गुजरात के मुख्यमंत्री का ट्वीट देखिए. सूचक पटेल नाम के एक नागरिक ने मुख्यमंत्री को लिखा है कि जिस दिन घटना हुआ है उस दिन 31 ट्वीट किए हैं मुख्यमंत्री ने. मात्र एक ट्वीट आग की घटना पर है और बाकी 30 ट्वीट प्रधानमंत्री की जीत के कार्यक्रम से संबंधित है. इस तरह से कॉपी चेक होती रहनी चाहिए. मुख्यमंत्री ने भी कड़ी कार्रवाई की बात की है.

लेकिन हमारा फोकस सूरत ही नहीं, देश भर में आग बुझाने के सिस्टम पर है. तो आज हम सभी ने तय किया कि आग से संबंधित जितनी जानकारियां हैं आप तक पहुंचाते हैं. सुशील महापात्र, बानी बेदी और वृंदा शर्मा जुट गए कि हम आपको क्या-क्या इस बारे में नया बता सकते हैं. 24 मई की सूरत की घटना से पहले इसी शहर में 26 नवंबर को भी कोचिंग सेंटर में आग लगी थी, जिसमें एक टीचर और छात्र जलकर मर गए. तब शिक्षा मंत्री ने कहा था कि कोचिंग सेंटर के लिए फायर सेफ्टी को लेकर नीति बनेगी. सूरत में जांच भी हुई और पाया गया कि ज्यादातर कोचिंग सेंटर में फायर सेफ्टी के नियमों का पालन नहीं करते हैं. इन्हें बंद कर दिया जाए. इसके बाद भी कोचिंग सेंटर चलते रहे.

30 जनवरी को अहमदाबाद के आस्था कोचिंग सेंटर में भी आग लग गई थी. 27 बच्चे फंस गए थे, मगर उन्हें बचा लिया गया. उसके बाद 150 कोचिंग सेंटर को नोटिस भी भेजा था, लेकिन क्या सबने आग बुझाने की व्यवस्था की, हमारे पास इसका ठोस उत्तर नहीं है. फिक्की की 2017 में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया कि एजुकेशन सेक्टर में भ्रष्टाचार और फ्रॉड के बाद आग सबसे बड़ा ख़तरा है. हम सब जानते हैं मगर हम कुछ नहीं करते हैं. आग लगने की घटना के बाद चुप हो जाते हैं. हम कभी नहीं देखते कि एक घटना के बाद सिस्टम में क्या सुधार आया?

यह बात हम सभी जानते हैं कि बहुत सारे बाज़ार, कोचिंग सेंटर और अन्य इमारतों में फायर सेफ्टी के नियमों का पालन नहीं होता है. इसी के बीच अच्छी बात है कि हाउसिंग सोसायटी में भीतर से फायर सेफ्टी के कुछ इंतज़ाम होते हैं और उन्हें नियमित ड्रिल करनी होती है, लेकिन आग बुझाने की सरकारी व्यवस्था क्या है, क्या वह पर्याप्त है. इसकी जानकारी ज़रूरी है. सबसे पहले हम जान लें कि फायर सेफ्टी का काम राज्यों का है. जो दरअसर नगरपालिकाओं द्वारा संचालित होता है. राज्यों में इसके लिए पैसा राज्यों के शहरी विकास मंत्रालय से आता है. यह केंद्र का विषय नहीं है. फिर भी मई 2016 में राजेंग अग्रवाल के सवाल के जवाब में पिछले गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने लोकसभा में बताया था कि राज्यों को फायर सेफ्टी पर सलाह देने के लिए स्टैंडिंग फायर एडवाइज़री काउंसिल है. इसके अनुसार शहरों में 5-7 मिनट में और गांवों में 20 मिनट में दमकल गाड़ी पहुंच जानी चाहिए. भारत में 8,559 फायर स्टेशन की ज़रूरत है, लेकिन फायर स्टेशन 2987 ही हैं. यानी 65 प्रतिशत की कमी है.

2009-2015 के बीच केंद्र सरकार ने मात्र 201 करोड़ रुपये राज्यों और केंद शासित प्रदेशों को दिए थे. 10वें, 11वें और 12 वे वित्त आयोग के प्रस्ताव के अनुसार राज्यों को कुल मिलाकर 685 करोड़ दिए गए. अलग-अलग राज्यों का बजट देखना होगा कि वे फायर सेफ्टी पर कितना पैसा खर्च करती हैं, फिलहाल सेंटर का जो डेटा है, उससे नहीं लगता कि हम फायर सेफ्टी पर खर्च को प्राथमिकता देते हैं. मुंबई शहर में 68 फायर स्टेशन होना चाहिए, लेकिन हैं 34. 1 मार्च 2019 को मुंबई मिरर में एक खबर छपी है. फरवरी 2019 में विधानसभा की लोकलेखा समिति की एक रिपोर्ट पेश की गई थी. 

यह रिपोर्ट 2017-18 की है. मुंबई में 10470 फायर हाइड्रेंड हैं. इसमें से मात्र 1131 फायर हाइड्रेंड ही काम करने की स्थिति में हैं. 2010-2015 के बीच 1072 करोड़ पैसा दिया गया मगर, बीएमसी मात्र 424 करोड़ ही ख़र्च किया था. ये मुंबई की हालत है. इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ फायर एंड रेस्क्यू सर्विसेस नाम की एक संस्था है जो 1900 में पेरिस में बनी थी. इसके 39 देश हैं. भारत सदस्य नहीं है. इसकी रिपोर्ट में 80 देशों और 90 राजधानियों का हर साल प्रकाशित होता है. 2019 की रिपोर्ट में हमने देखा तो पता चला कि इनके पास 2015 तक की ही रिपोर्ट है. इस रिपोर्ट को देखिएगा. 20668 औसत मौत हुई.

भारत में अप्राकृतिक रूप से होने वाली मौतों के मामले में आग तीसरा सबसे बड़ा कारण है. दुनिया में आग लगने से सबसे अधिक मौत भारत में हुई है. औसतन हर साल यहां आग लगने से 20,668 लोग मारे जाते हैं. दूसरे नंबर पर रूस है जहां 10109 लोग एक साल में मारे जाते हैं. अमेरिका में हर साल 3,244 लोग मारे आग के कारण मारे जाते हैं. आग लगने के मामले में दिल्ली का स्थान दुनिया की राजधानियों में 35 वें नंबर पर आता है, लेकिन आग से लगने वाली मौत में दिल्ली का स्थान दसवां है.

सिंगापुर की आबादी 56 लाख है. यहां एक साल में आग से सिर्फ दो लोग मरते हैं. इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ फायर एंड रेस्क्यू सर्विसेस में ही एक आंकड़ा है, जिससे पता चलता है कि टोक्यों में जहां 310 लोगों पर एक फायर फाइटर है, न्यूयॉर्क में जहां 774 लोगों पर एक फायर फाइटर है, लंदन में जहां 1452 लोगों पर फायर फाइटर है, दिल्ली में 4978 लोगों पर एक फायर फाइटर गाड़ी है. सुशील महापात्र ने दिल्ली फायर सर्विस के मुख्यालय गए, जो कनाट प्लेस में है. दिल्ली में 72 फायर स्टेशन चाहिए, लेकिन 64 है. कुलमिलाकर सिस्टम के मामले में दिल्ली बेहतर स्थिति में है. 

दिल्ली में फायर स्टेशन के लिए जितने कर्मचारी चाहिए उतने नहीं हैं. नियुक्ति की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि धीमी गति के समाचार भी स्पीड न्यूज़ लगते हैं. 1 अप्रैल 2019 की टाइम्स आफ इंडिया में आर टी आई के आधार पर एक खबर छपी है. इसके अनुसार दिल्ली फायर सर्विस में 48 प्रतिशत पद खाली हैं. दिल्ली में 3312 पद स्वीकृत हैं, इसमें 1583 पद खाली हैं. सीनियर लेवल पर 5 में से 3 पद खाली हैं.

आपको याद होगा कि दिल्ली के करोलबाग में 11 फरवरी 2019 को एक होटल में आग लगी थी. इस घटना में 17 लोगों की मौत हो गई थी. काफी नोटिस जारी हुई, लेकिन फिर आप गारंटी से नहीं कह सकते कि दिल्ली की इमारतों ने आग के मामले में सुरक्षा के इस्तमाल को लेकर पहल की होगी. सिस्टम की तरफ से भी और मार्केट संघ और रेज़िडेंट वेलफेयर सोसायटी की तरफ से भी ठोस पहल न होने की ही गारंटी ज़्यादा है. ध्यान रखिए कि हम दिल्ली मुंबई की बात कर रहे हैं. मुज़फ्फरपुर, धनबाद और इंदौर की बात करने लगे तो पता नहीं वहां क्या हालत होगी.

जैसे दिल्ली में आग बुझाने वाली यह गाड़ी राष्ट्रमंडल खेलों के समय ही आई. इस गाड़ी को ब्रांटो स्काईलिफ्ट कहते हैं. यह 70 मीटर के करीब ऊपर जाता है. पूरी दिल्ली के लिए यही स्काई लिफ्ट है. कहीं भी आग लगेगी तो यही गाड़ी जाएगी. इसके ज़रिए 20 से 23 मंज़िल तक ही पहुंच सकते हैं. इसके इस एक मशीन की कीमत 10 करोड़ है. दिल्ली के पास 5 ऐसी स्काई लिफ्ट है जो 45 मीटर तक जा सकती है. तीन ही हैं, दो का ऑर्डर है. यह मशीन फिनलैंड से आई है. इसके ज़रिए बाहर से आप पहुंच सकते हैं, लेकिन हमें बताया गया है कि आग की सुरक्षा का इंतज़ाम भीतर से होना चाहिए. बाहर के भरोसे आप नहीं रह सकते हैं.

अतुल गर्ग ने बताया कि इमारत के भीतर आग बुझाने की व्यवस्था भीतर से ही होनी चाहिए. सीढ़ी की भूमिका है लेकिन आप नियमों और मानकों का पालन नहीं करेंगे तो खुद को और दूसरों की जान को खतरे में डालेंगे. हाइड्रोलिक सीढ़ी को लेकर व्हाट्सऐप मैसेज बनाने से कुछ नहीं होगा. जब राज्य सरकारें बजट पेश करें तो पता कीजिए कि कितना पैसा दमकल विभाग को दिया गया है. कुछ पैसा नगरपालिकाओं को भी दिया जाता है. उनका बजट पता कीजिए. दबाव बनाइये कि आग बुझाने के सिस्टम पर आबादी के हिसाब से ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है वर्ना जिस तरह से हम करोलबाग की घटना से कुछ नहीं सीखे, सूरत की घटना से भी नहीं सीखेंगे. हमें अलग अलग नगरपालिकाओं के हिसाब से जानकारी नहीं मिल सकी कि कितना बजट है. किस शहर में दमकल गाड़ियां कम हैं. कितनी होनी चाहिए. आप हैरान हो जाएंगे कि पूरे बिहार में 107 फायर स्टेशन हैं. आबादी के हिसाब सवा नौ लाख पर एक फायर स्टेशन है. फायर विभाग की वेबसाइट के अनुसार 1128 पद ख़ाली हैं. 2017 की जनहित याचिका के अनुसार ड्राइवरों के सभी 969 पद खाली हैं. 221 पद हैं चीफ फायर ड्राईवर के, मात्र 52 हैं. 881 थानों में छोटी सी दमकल गाड़ी स्वीकृत है, लेकिन 197 थानों में ही ऐसी गाड़ी है. ज़िले में एक फायर स्टेशन है.

इसलिए बेहतर है कि हम आग को लेकर थोड़ा सतर्क रहें कि राज्य के पास इंतज़ाम नहीं हैं. घटना हो जाएगी, लोग मर जाएंगे और पेपरबाज़ी होती रहेगी. इसलिए बेहतर है पता कीजिए कि आग बुझाने की व्यवस्था बेहतर हो रही है या नहीं. सीएजी की वेबसाइट पर एक रिपोर्ट है महाराष्ट्र को लेकर. इसके अनुसार महाराष्ट्र की 26 नगरपालिकाओं में से 8 ने अपने फायर बजट का 78 फीसदी हिस्सा 2010-2015 के दौरान खर्च ही नहीं किया. उपकरण नहीं खरीदे. गाड़ियां नहीं खरीदीं. जब कुछ होगा ही नहीं तो आग कैसे बुझेगी? सिर्फ कोचिंग संस्थान ही नहीं यहा तक कि पेट्रोल पंप तक फायर सेफ्टी के नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट के बगैर चल रहे थे. ये सीएजी की रिपोर्ट में लिखा है. 2018-19 के लिए हमने पुणे म्यूनिसिपल का बजट चेक किया. आप हैरान हो जाएंगे.

पुणे में अग्निश्मन के लिए 15 करोड़ का बजट है. इसमें से 14 करोड़ सैलरी वगैरह के लिए है. गाड़ियों के रखरखाव पर 28 लाख है. नए उपकरणों के लिए एक नया पैसा नहीं है. ये तो बजट का आवंटन हमने बताया. वास्तविक खर्च तो और भी कम होता है. डिज़ास्टर मैनेजमेंट का जो फंड है उसका भी इन चीजों में इस्तेमाल होता होगा. अभी हमने आपको अस्पतालों के बर्न वार्ड की हकीकत नहीं बताई है. बेशक हम मूर्तियों के बनाने पर काफी पैसा खर्च कर रहे हैं. उस पर बहस करनी चाहिए. 3000 करोड़ रुपये की मूर्ति बनाएंगे तो क्या होगा, लेकिन यह भी देखिए कि जहां मूर्तियां नहीं बन रही हैं वहां भी अग्निशमन को लेकर कुछ नहीं हो रहा है. 2019-20 के लिए पूरे तमिनलाडु के लिए फायर सेफ्टी का बजट मात्र 403 करोड़ है.

अब आते हैं पॉज़िटिव जानकारी के लिए. हम अग्निशमन सेवाएं, नागरिक सुरक्षा और गृह रक्षक की वेबसाइट पर गए. यह विभाग भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत आता है. इस वेबसाइट पर जाकर फायर सर्विसेज़ पर क्लिक किया तो पहली लाइन ये लिखी मिली The Fire Services Are Not Well Organised In India. यानी भारत में अग्निशमन सेवाएं बहुत संगठित नहीं हैं. हम कितनी शान से ये लाइन लिखते हैं. फिर क्यों रोते हैं कि आग लगी तो बुझाने वाला कोई नहीं था. अब सवाल है कि प्राइम टाइम के लिए घंटों लगाकर तैयार की गई इस जानकारी का क्या असर होगा. जवाब है कोई असर नहीं होगा. 

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