किसी भी सत्तावादी शासन के लिए राजनीतिक उत्तराधिकार संकट का पल होता है.फिर चाहें मध्यकालीन इतिहास की बात हो या आज के किसी भी अधिनायकवादी देश की. चीन की कम्युनिष्ट पार्टी (सीसीपी) अपनी तमाम खूबियों के बावजूद उत्तराधिकर के मामले में कोई अपवाद नहीं है. चीन और चीन के बाहर आजकल चर्चा इस बात की है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग का उत्तराधिकारी कौन होगा? चीनी राजनीति का इतिहास बताता है कि सबसे बेहतर स्थिति यह हो सकती है कि पार्टी किसी ऐसे उत्तराधिकारी का चुनाव करें, जिसे उसके अंतिम सालों में चुपचाप सत्ता का आधार बनाने की अनुमति हो.
चीन के राजनीतिक इतिहास में उत्तराधिकार के सवाल का जवाब खोजा जाए तो वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग को सत्ता हू जिंताओ से मिली थी. सत्ता के इस हस्तांतरण के दौरान भी बीजिंग में तख्तापलट की कोशिशों, असफल हत्याओं और सड़कों पर टैंकों की अफवाहें उड़ी थीं. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि ये अफवाहें भले ही निराधार रही हों, लेकिन शीर्ष पर चल रहा राजनीतिक नाटक वास्तविक था.
कितने ताकतवर हैं शी
शी जिनपिंग ने 2012 में सत्ता संभाली ली थी. उसके बाद वो लगातार ताकतवर होते गए हैं. आलोचकों का कहना है कि शी राज में चीन में तानाशाही शासन बढ़ा है. शी की सरकार ने आलोचकों, ताकतवर धनाढ्यों, और उद्योगपतियों पर नकेल कसी है.शी के आलोचक उन्हें चीनी कम्युनिस्ट क्रांति नेता चेयरमैन माओ से भी अधिक तानाशाह मानते हैं. साल 2018 में उस नियम को बदल दिया गया, जिसके मुताबिक कोई नेता दो बार ही सर्वोच्च पद पर रह सकता था. यह नियम 1990 के दशक में लागू किया गया था. इसके बाद शी के आजीवन अपने पद पर बने रहने का रास्ता साफ हो गया था. शी की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस समय वो ताकतवर माने जाने वाले पदों पर काबिज हैं, वो महासचिव के रूप में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख हैं, राष्ट्रपति के रूप में वो चीन के राष्ट्राध्यक्ष हैं और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन के रूप में वो चीनी सैन्यबलों के कमांडर इन चीफ हैं.

इतने ताकतवर शी जिनपिंग के पास अब पद छोड़ने की कोई समय-सीमा नहीं है. लेकिन हकीकत यह है कि चीन में राष्ट्रपति का उत्तराधिकारी नेता के नियंत्रण छोड़ने से बहुत पहले ही शासन में अनौपचारिक तौर पर शासन विकल्पों को आकार दे देता है.ऐसे में 72 साल के शी के सामने उत्तराधिकारी की चर्चाएं तेज होना लाजमी हैं.
किस हाल में है शी का उत्तराधिकारी
साल 2017 में मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि शी जिनपिंग ने चेन मिनर को अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है. लेकिन आठ साल गुजर जाने के बाद भी आलम यह है कि चेन मिनर पोलित ब्यूरो की स्टैडिंग कमेटी यानी पीएससी में भी नहीं हैं. ऐसे में शी के उत्तराधिकारी की सटीक प्रक्रिया और परिणाम का अनुमान लगाना आसान बात नहीं है. उत्तराधिकारी को सत्ता सौंपना शी की विरासत के लिए खतरा बन सकता है.
1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद से, शी के पांच पूर्ववर्तियों में से केवल एक ने पूरी तरह से और स्वेच्छा से पद छोड़ा था. माओ ने पार्टी और राज्य तंत्र के भीतर अत्यधिक शक्ति और अधिकार का प्रयोग किया. उन्होंने निधन के दिन तक शासन किया था. माओ ने हुआ को 1976 में भी तब चुना था, जब उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था.
चीन की राजनीति की पहचान बन चुने शी जिनपिंग ने 2012 में नेतृत्व संभाला तो खुद को एक मजबूत शासक के रूप में स्थापित किया है.उन्होंने व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का काम किया. हालांकि इस दौरान एक 'पॉलिसी शिफ्ट' (नीतिगत बदलाव) जो देखने को मिला,वो यह कि जिनपिंग के उदय ने बाकी दुनिया के साथ चीन के संबंधों को भी नए सिरे से परिभाषित किया. आज रूस से चीन की नजदीकियां और भी बढ़ गई हैं, खासतौर पर रूस की ओर से यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के बाद. चीनी राष्ट्रपति के लिए चुनौती यह हो सकती है कि वो पहचान करें कि आखिर कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ पदों पर बैठे हजारों कार्यकर्ताओं में से उनका उत्तराधिकारी कौन होगा.
16 दिन गायब क्यों रहे शी
शी के उत्तराधिकारी की चर्चा छिड़ने की एक वजह और भी है, वो यह है कि शी के 16 दिन तक सार्वजनिक जीवन से गायब होने की बात. चीन के सरकारी अखबार से भी 16 दिनों तक उनकी तस्वीर गायब रही और न ही उनसे जुड़ी कोई खबर चली. अर्थव्यवस्था की बात करें तो कई अहम सेक्टर्स में वह चुनौतियों का सामना करना कर रही है.हालात यह है कि शी के पूर्ववर्ती हू जिनताओं के दौर में चीन ने विकास की जो रफ्तार देखी थी, शी उसके करीब भी नहीं पहुंच पाए हैं. इस दौरान जिनपिंग की पार्टी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) में बड़े पैमाने पर फेरबदल भी हुए. इन सबके बावजूद कुछ दिनों से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आसपास एक असामान्य खामोशी नजर आ रही है. इस खामोशी ने कई तरह की अटकलों को जन्म दिया है.इन अटकलों को उस समय भी बल मिला जब शी जिनपिंग पिछले महीने के पहले हफ्ते में ब्राजील में आयोजित ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में वो शामिल नहीं हुए. पिछले 12 साल में यह पहला मौका था, जब शी ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए.
इस साल 24 जून को शी जिनपिंग आखिरी बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में नजर आए थे. उन्होंने बीजिंग के 'ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल' में सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग से मुलाकात की थी. इसके बाद पिछले दो सप्ताह तक वे सार्वजनिक कार्यक्रमों से गायब रहे. वो जुलाई के पहले सप्ताह तक नजर नहीं आए. वहां किसी बड़े नेता की ऐसी अनुपस्थिति को आमतौर पर सामान्य या अच्छा संकेत नहीं माना जाता. इससे अंदाजा लगा कि शी जिनपिंग का अचानक गायब होना या तो कोई सुनियोजित रणनीति हो सकती है या फिर कोई बड़ी अस्थिरता का संकेत.
क्या छुट्टी पर गए थे शी
कुछ विश्लेषक इसे जिनपिंग की सोची-समझी रणनीति मानते हैं. उनका मानना है कि कुछ दिनों तक छुट्टी लेकर वह सत्ता ढांचे को नया रूप देने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं कुछ का मानना था कि ये उनके खिलाफ उठते विरोध का इशारा भी हो सकता है खासतौर पर उस वक्त, जब देश की अर्थव्यवस्था फिसल रही हो और सत्ता का केंद्रीकरण सवालों के घेरे में हो.
साल 2017 में कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं पार्टी कांग्रेस में अटकलें लगी कि शी अपने उत्तराधिकारी के नाम का ऐलान कर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब सवाल यह है कि अगर पद से किसी ना किसी दिन उतरना ही है तो उत्तराधिकारी के नाम के ऐलान में दिक्कत क्या है? उत्तराधिकारी के नाम के ऐलान के बावजूद भी शी अपने पद पर औपचारिक तौर से बने ही रह सकते हैं, क्योंकि उत्तराधिकारी उनकी उपस्थिति में तो पदभार ग्रहण नहीं करेगा? लेकिन ऐसा नहीं है. संभावना है कि ऐसा करने से शी जिनपिंग के अधिकार कमजोर हो जाएं. उनके समर्थकों के नेटवर्क में मतभेद बढ़ने की भी आशंका है. यही नहीं चीन में उत्तराधिकार के ऐलान के बाद राजनीतिक विरासत और व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है.
सेना में भ्रष्टाचार राष्ट्रपति शी की चुनौती
'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी सेना का संचालन करने वाली चीन की सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के मौजूदा समय में तीन प्रमुख पद खाली हैं. वहीं कुछ सैन्य अधिकारी या तो गिरफ्तार हुए हैं या रहस्यमय तरीके से गायब हो गए हैं. यह स्थिति राष्ट्रपति शी जिनपिंग के उन सालों के पुराने प्रयास को चुनौती देती है, जिसमें उन्होंने सेना को आधुनिक, वफादार और युद्ध के लिए हमेशा तैयार बनाने का लक्ष्य रखा है.
एक चिंता और भी है कि आज बाहरी तौर पर चीनी सेना जितनी मजबूत दिख रही है, उतनी कभी रही है. लेकिन अंदरूनी तौर पर बढ़ता भ्रष्टाचार चीनी राष्ट्रपति की चिंता को बढ़ा रहा है. प्रेसीडेंट शी जिनपिंग की अगुवाई में सेना में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाया जा रहा है. इसके तहत कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी गिरफ्तार किए गए हैं और कई को उनके पद से हटाया गया है.शी जिनपिंग ने सेना में नंबर दो रहे जनरल 'हे वेईडोंग'को पद से हटा दिया था.जिनपिंग ने भ्रष्टाचार के आरोंपों के चलते वेईडोंग को हटाया है, ऐसा चीन के करीब छह दशक (58 साल) के इतिहास में पहली बार हुआ है. शी जब 2027 में चौथी बार जब कम्युनिष्ट पार्टी का लीडर बनने की तरफ बढ़ रहे हैं तो वो चाहेंगे कि सेना पर उनकी पूरी तरह पकड़ हो. ताकि वो अपने कार्यकाल को और मजबूत आकार दे सके.
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