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This Article is From Apr 01, 2019

क्या एक साल में 20 लाख पद भरे जा सकेंगे?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    April 01, 2019 23:58 IST
    • Published On April 01, 2019 23:58 IST
    • Last Updated On April 01, 2019 23:58 IST

राहुल गांधी ने कहा है कि उनकी सरकार आई तो 31 मार्च 2020 तक 22 लाख सरकारी वैकेंसी को भर देंगे. नंबर भी है और डेडलाइन भी. क्या वाकई कोई सरकार 26 मई 2019 को शपथ लेकर 31 मार्च 2020 तक 22 लाख नौजवानों को नौकरी दे सकती है? लगता है राहुल गांधी प्राइम टाइम देखने लगे हैं. यह सही है कि हम डेढ़ साल से नौकरी सीरीज़ के भंवर में फंसे हुए हैं. हमने पंजाब से लेकर बंगाल और बिहार से लेकर राजस्थान, एमपी से लेकर यूपी तक हर राज्य में सरकारी नौकरियों की भर्ती का हाल देख लिया है. बिना कैंसिल और केस के कोई परीक्षा और ज्वाइनिंग पूरी नहीं होती है. राहुल गांधी ने 31 मार्च 2019 को एक ट्वीट किया कि 31 मार्च 2020 तक 22 लाख वैकेंसी भर देंगे. उनका ट्वीट है कि आज सरकार में 22 लाख नौकरियों की वैकेंसी है. हम इन्हें 31 मार्च 2020 तक भर देंगे. स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे विभागों में ख़ाली पद भरे जाएंगे. उसी के हिसाब से केंद सरकार से राज्यों को फंड दिया जाएगा.

अलग-अलग विभागों की छोड़िए, सेंट्रल यूनिवर्सिटी में हज़ारों पद खाली रह गए और पांच साल में मोदी सरकार नहीं भर पाई. 21 मार्च 2017 को लोकसभा में मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि एक साल के भीतर दिल्ली यूनिवर्सिटी के 9000 एडहॉक पदों को भर देंगे. केद्र सरकार की नीति पार्ट टाइम रखने की नहीं है. एक यूनिवर्सिटी के भीतर 9000 पद नहीं भरे जा सके. उसे लेकर मंत्री जी को हमने जी जान लगाते भी नहीं देखा. तो क्या एक साल में 20 लाख पदों को भरा जा सकेगा.

8 मार्च 2019 की हिन्दुस्तान टाइम्स अखबार में खबर छपी है कि ओडिशा सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 88 प्रतिशत पद खाली हैं. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में 67 प्रतिशत पद खाली हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में 47 प्रतिशत पद खाली हैं. जेएनयू में 34 प्रतिशत पद खाली हैं. इसके बाद भी 16 जनवरी 2019 को केंदीय मंत्रिमंडल ने फैसला किया कि 3000 करोड़ की लागत से 13 सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनेगी. अच्छी पीएचडी वाले भी बेरोज़गार घूम रहे हैं. जहां जगह होती है वहां सेटिंग वाले रोज़गार पा जाते हैं. राहुल गांधी को राज्यों में कांग्रेस की सरकारों में ये कमाल करके दिखाना चाहिए. कॉलेज के कॉलेज में पद खाली हैं. उन्हें भर देंगे तो कई नौजवानों को नौकरी मिल सकती है. कॉलेज ही नहीं स्वास्थ्य से लेकर सिंचाई विभागों की यही हालत है. स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया ये सब रोज़गार के लिए थे, मगर इनकी भी बात नहीं हो रही है. प्रधानमंत्री ने अभी तक जिनती भी सभाए की हैं, हमने सभी तो नहीं सुनी है मगर तीन चार रैलियों में रोज़गार का ज़िक्र मुश्किल से आया है. जम्मू के अखनूर में उनका एक बयान पहले सुनिए.

प्रधानमंत्री के इस बयान को ध्यान से सुना जाना चाहिए. क्या वे पूरे भारत के बारे में आंकड़ा दे रहे हैं, जम्मू के बारे में आंकड़ा दे रहे हैं या सिर्फ अखनूर के बारे में. शहर के हिसाब से आंकड़ा कहां से आया, क्या केंदीय बल सार्वजनिक रूप से शहरों के हिसाब से ऐसा आंकड़ा बताते हैं. फिर तो हरियाणा और पश्चिम यूपी वालों को बताना चाहिए कि सेना और केंद्रीय बलों में कितने हज़ार नौजवानों को नौकरी मिली है. हमने पिछले साल अक्तूबर की इकोनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट देखी. यह ख़बर पीटीआई के हवाले से लिखी गई है, इसकी कुछ मुख्य बाते हैं उच्च स्तरीय बैठक में पाया गया है कि छह केंदीय बलों में 55,000 पद ख़ाली हैं. सीआरपीएफ में 21000 और बीएसएफ में 16,000 पद ख़ाली हैं. 2016, 17 में एक लाख 35 हज़ार नौजवानों की भर्ती हुई है.

अगर आप इंटरनेट सर्च करेंगे और ध्यान से आंकड़ों को देखेंगे तो काफी कुछ पता चलेगा. अब देखिए अक्तूबर 2018 में पीटीआई के हवाले से खबर आती है कि सभी केंदीय बलों में 55000 वैकेंसी है जिन्हें जल्दी भरने का आदेश दिया गया. 6 फरवरी 2019 को उसी पीटीआई के हवाले से उसी इकोनॉमिक टाइम्स में खबर छपती है कि केंदीय गृह मंत्रालय ने अर्धसैनिक बलों में 76,578 पदों को भरने के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाएगी. अक्तूबर की खबर भी कहती है कि 55000 पदों को भरने के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाएगी. इसके बाद भी चार महीने बाद खाली पदों की संख्या 76,578 हो गई. अब आपको राज्य सभा में दिए गए जवाब का एक आंकड़ा दिखाते हैं. सीपीएम के राज्य सभा सदस्य के के राजेश ने सवाल पूछा था कि अर्धसैनिक बलों में कितनी रिक्तियां हैं. तो गृहमंत्रालय की तरफ से गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू लिखित जवाब देते हैं. जवाब देने की तारीख है 14 मार्च 2018. 9,85,135 पद मंज़ूर हैं, जिनमें 61,509 पद ख़ाली हैं. सीआरपीएफ में 18,460 पद ख़ाली हैं. खाली पदों की संख्या 31 जनवरी 2018 तक की बताई गई थी.

रिटायरमेंट, निधन नए बटालियन के बनने के कारण भर्ती होती रहती है, लेकिन आपने देखा कि हर समय 60 हज़ार से अधिक वैकेंसी रहती है. अगर इन्हें रियल टाइम में भरा जाता तो इतने नौजवानों को उम्र बीत जाने से पहले नौकरी मिल जाती. अगर भर्ती होती या उसकी प्रक्रिया तेज़ होती तो अक्तूबर में 55,000 और फरवरी में 76,000 वैकेंसी नहीं होती. 

ये तस्वीर बिहार की राजधानी पटना की है. दुनिया के दस प्रदूषित शहरों में एक पटना में न रोज़गार मुद्दा है और न प्रदूषण. अशोक राजपथ पर ये परीक्षार्थी जुटे हैं. मार्च का नाम दिया है सत्याग्रह. छात्रों का कहना है कि प्रीलिम्स की परीक्षा में 15 गलत सवाल पूछे गए. यही नहीं पांचवें विकल्प को डिलिट करने से भी असर पड़ा है. ये चाहते हैं कि परीक्षा का परिणाम कैंसल हो. पहले भी प्रदर्शन कर चुके हैं. इसी तरह हर दूसरी परीक्षा का हाल है. प्रदर्शन ज्ञापन के बगैर परीक्षा ही पूरी नहीं होती है.

मगध यूनिवर्सिटी है बिहार में. इसके असंबंध कॉलेज में कई हज़ार छात्रों का रिज़ल्ट अटका हुआ है. एक तो तीन साल का बीए चार साल पांच साल में होता है, मगर इनकी समस्या यह है कि राज्य सरकार ने इन कॉलेजों की मान्यता समाप्त कर दी. मामला कोर्ट में पहुंचा, लेकिन बीच में एडमिशन लेने वाले छात्रों का भविष्य अटक गया. सरकारी नौकरियों ने छात्रों को अलग-अलग स्वार्थ समूहो में बांट दिया है. सब अपनी भर्ती की चिन्ता करते हैं. वरना कैसे यह संभव था कि हज़ारों की संख्या में नौजवानों का भविष्य बर्बाद हो जाए. समय पर रिज़ल्ट न आ पाने के कारण ये लोग रेलवे की वैकेंसी नहीं भर सके. इन्हें कितना अफसोस होता होगा. क्या यह एक पैटर्न है. भर्ती निकालो, कुछ ऐसा कर दो कि परीक्षा विवादित हो जाए. फिर केस हो जाए और ज्वाइनिग न हो. पिछले साल 5 अगस्त 2018 को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर छपी थी. केंदीय और राज्य सरकारों में करीब 24 लाख वेकेंसी है. इनमें सबसे अधिक दस लाख के करीब पद खाली हैं. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों के पद खाली हैं. पुलिस में 5 लाख 40 हज़ार पद खाली हैं. रेलवे में 2.4 लाख पद खाली हैं. अर्धसैनिक बलों में 61,509 पद और सेना में 62084 पद खाली हैं. पोस्टल विभाग में 54, 263 पद खाली हैं.
एम्स में 21, 740 पद खाली हैं.

क्या इन पदों को एक साल में भरा जा सकता है. स्टाफ सलेक्शन कमिशन की परीक्षा है एसएससी सीजीएल 2017, सीएचएसएल 2017 की परीक्षा का अभी तक पता नहीं. पेपर लीक होने के बाद मामला कोर्ट में ही है. 2017 की परीक्षा 2019 के मार्च बीत जाने के बाद भी पूरी नहीं हो सकी है. इस परीक्षा से लाखों छात्र जुड़े हैं. आज स्वराज इंडिया के अनुपम ने एक प्रेस कांफ्रेंस की है. अनुपम ने स्टाफ सलेक्शन कमिशन के चेयरमैन अशीम खुराना को दो साल का सेवा विस्तार दिए जाने पर सवाल उठाए हैं.

यह पूरा मामला गंभीर है. इसका जवाब सरकार को ही देना चाहिए एसएससी के चेयरमैन अशीम खुराना को सेवा विस्तार देने के लिए किसी तरह से नियमों में बदलाव किया गया. यूपीएससी ने मना कर दिया, कानून मंत्रालय ने दो-दो बार मना कर दिया. इसके बाद भी अशीम खुराना को सेवा विस्तार दिया जाता है. इस तरह से हमारे सरकारी नौकरियों की भर्ती करने वाले आयोगों का संचालन होता है. स्वराज इंडिया के अनुपम का आरोप बेहद गंभीर है. एक चेयरमैन को 62 साल की उम्र पार कर लेने के बाद उन्हें फिर से चैयरमैन बनाए रखने के लिए कैबिनेट कमेटी इतनी बेताब क्यों है. खासकर जिस खुराना के कार्यकाल में पेपर लीक होने के आरोप लगे, सीबीआई की जांच हुई और मामला सुप्रीम कोर्ट में है. संस्थाओं की यह तस्वीर सामने है. क्या वाकई ऐसी संस्थाओं के रहते राहुल गांधी 31 मार्च 2020 तक 22 लाख सरकारी पदों को भर देने का वादा पूरा करेंगे. आज दैनिक भास्कर में आनंद पांडे ने वित्त मंत्री अरुण जेटली का इंटरव्यू किया है. जेटली जब बेरोज़गारी के आंकड़ों को चुनौती देते हैं तो आनंद पूछते हैं कि तो आपका मतलब है कि रोज़गार मुद्दा नहीं है? वित्त मंत्री कहते हैं ये जो डेटा क्वेश्चन होता है न, कौन डेटा इकट्ठा कर रहा है, उसका स्लांट क्या है, आप किसी किसान परिवार के तीन भाइयों से पूछेंगे कि क्या आपके पास रोज़गार है तो वे कहेंगे कि नहीं है. पर जब उनसे पूछेंगे कि जीने के तमाम साधन हैं तो वे कहेंगे कि हां. दोनों सवालों का डेटा अलग-अलग होगा.

यह जवाब दिलचस्प है. जीने का साधन हो, यानी हवा हो पानी हो, अनाज हो तो आप बेरोज़गार नहीं है. हर बेरोज़गार के पास जीने का साधन होता है तो क्या उसे बेरोज़गार न माना जाए. क्या वाकई जेटली जी का जवाब तार्किक है. इसी इंटरव्यू के जवाब में जेटली ने कहा है कि 35000 किमी हाईवे के निर्माण में रोज़गार पैदा हुआ होगा. क्या आप जानते हैं कि आज कल एक किलोमीटर हाईवे के निर्माण में कितना रोज़गार दिया जाता है. किसी हाईवे को बनते देखिएगा. मशीनें ज्यादा काम करती हैं, आदमी कम. 1 अप्रैल को दैनिक भास्कर से वित्त मंत्री कहते हैं कि मुद्रा लोन में 17 करोड़ लोग शामिल हैं. मगर प्रधानमंत्री तेलंगाना में कहते हैं कि 15 करोड़ लोगों को मुद्रा लोन दिया गया है.

प्रधानमंत्री 15 करोड़ कहते हैं, वित्त मंत्री 17 करोड़. भाषणों में डेटा थोड़ा इधर-उधर हो जाता है. मुद्रा यानी Micro Units Development and Refinance Agency (MUDRA) लोन की वेबसाइट पर मुद्रा लोन के लाभार्थियों की संख्या 17 करोड़ ही है. इसकी वेबसाइट में राज्यवार आंकड़े हैं, लेकिन क्या हर मुद्दा लोन रोज़गार पैदा होता है, इसे लेकर विवाद है. हिन्दू अखबार में 22 फरवरी 2019 को प्रिंसिला देबराज की एक रिपोर्ट छपी है. इसमें ICRIER fellow Radhicka Kapoor कहती हैं कि हर लोन का यह मतलब नहीं कि उससे नौकरी ही पैदा हो रही है. मुद्रा योजना के तहत औसत लोन 45034 रुपये का होता है. नई नौकरी पैदा करने के लिए यह राशि बहुत कम है. इतने पैसे से लोग खुद के लिए काम पैदा कर पाते होंगे. न्यूज़क्लिक ने अगस्त 2018 में आरटीआई पर रिपोर्ट की थी 90 फीसदी से अधिक लोन 50,000 से कम के हैं. इससे कोई फायदे की नौकरी का सृजन नहीं हो सकता है.

बहुत से लोगों ने ऐसे लोन लिए जिनका पहले से कारोबार था. लोन लिया मगर रोज़गार नहीं बढ़ा. मुद्रा लोन जितना मंज़ूर हुआ उसका सिर्फ 1.3 प्रतिशत लोन ही 5 लाख से ऊपर है. यही वो रकम है, जिससे दूसरों के लिए नई नौकरी पैदा करने की उम्मीद की जा सकती है. अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि इतना लोन दिया तो इतना रोज़गार पैदा हुआ, लेकिन बड़े उद्योगपतियों को कई लाख करोड़ लोन दिए गए, वहां ये हिसाब क्यों नहीं लगाया जाता कि इन्हें दस लाख करोड़ लोन दिया तो इतना रोज़गार पैदा हुआ. क्या रोज़गार सिर्फ मुद्रा लोन से पैदा होता है. अभी तक तीन साल में 6 लाख करोड़ मुद्रा लोन के तहत दिया गया है. 13 मार्च 2019 की फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने ख़बर छापी है कि 2018-19 के पहले 9 महीने में मुद्रा लोन का 53 प्रतिशत बैड लोन हो गया है. यह सूचना आरटीआई से हासिल की गई है. 2017-18 के 9,769 करोड़ से बढ़कर 14,930.98 करोड़ हो गया. 31 दिसंबर 2018 को एन पी एक अकाउंट की संख्या 28 लाख से अधिक हो गई. 31 मार्च 2018 को एनपीए के अकाउंट की संख्या करीब 18 लाख थी.

मुद्रा किसे दिया गया, कैसे दिया गया यह एक अलग कहानी है. इसे बताने के लिए खास तरह की योग्यता की ज़रूरत होती है. जब इनके पात्रों पर अध्ययन होगा तभी पता चलेगा. यूपी में तीन साल में 1 करोड़ से अधिक लोगों को मुद्रा लोन मिला है. 1 करोड़ बहुत होते हैं. सरकार को कहना चाहिए कि यूपी में एक करोड़ रोज़गार पैदा किया है. मुद्रा लोन से. आपने वो खबर तो देखी ही होगी कि नोटबंदी के बाद बैंक से लेकर वित्तीय संस्थाओं में संदिग्ध लेन देने के मामलों की संख्या 1400 प्रतिशत बढ़ गई है. पिछले साल की तुलना में 1400 प्रतिशत का उछाल आया है. 10 साल में सबसे अधिक उछाल आया है. यह रिपोर्ट फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट का है. 14 लाख ऐसे लेन-देन हुए हैं. क्या काला धन सफेद हो रहा है या सफेद धन काला हो रहा है. हिन्दी के अखबार ध्यान से पढ़ा कीजिए. विपक्ष की खबरें कम होती हैं. देखा कीजिए. एक और डेटा है. इस बार चुनाव आयोग हर दिन 67 करोड़ नगदी ज़ब्त कर रहा है. 2014 के पूरे चुनाव में करीब 300 करोड़ पकड़ा गया था. 2019 में 340 करोड़ पकड़ा जा चुका है. काला धन कौआ खा गया है. बाकी चुनाव हंस लड़ रहा है.

अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी और लोकनीति सीएसडीएस ने 2018 में 12 राज्यों में 24,000 से अधिक लोगों के बीच सर्वे किया है. इस सर्वे में 19 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि बेरोज़गारी सबसे बड़ा मुद्दा है. खासकर दिल्ली, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, पंजाब और जम्मू कश्मीर में लोगों ने बेरोज़गारी को सबसे बड़ा मुद्दा माना है. उत्तराखंड में सबसे अधिक 17 प्रतिशत लोगों ने बेरोज़गारी को मुद्दा माना है. जम्मू कश्मीर में भी बेरोज़गारी बड़ा मुद्दा है. कॉलेज से निकले नौजवानों में 26 प्रतिशत बेरोज़गारी को बड़ा मुद्दा मानते हैं. 10वीं पास नौजवानों में 19 प्रतिशत बेरोज़गारी को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं. 18 से 35 साल के नौजवानों में ही बेरोज़गारी सबसे बड़ा मुद्दा है. 36 साल से ऊपर के नौजवानों में बेरोज़गारी का मुद्दा कमज़ोर पड़ने लगता है.

इस सर्वे का एक निष्कर्ष यह है कि 2014 से 2018 के बीच रोज़गार का सवाल चार सालों में काफी बड़ा हो गया है. 2014 में मात्र 6 प्रतिशत वोटर ने रोज़गार को टॉप पर माना था, लेकिन 2018 में 19 प्रतिशत हो गया. 24,000 का 19 प्रतिशत 4560 होता है. पूरा सर्वे आप अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर उपलब्ध है. तो क्या इस चुनाव में रोज़गार की बात हो रही है. गृहमंत्रालय की तरफ से जवाब दिया जाता है कि पांच साल में मोदी सरकार ने रोज़गार का आंकड़ा जारी करने की कोई नई व्यवस्था नहीं बनाई. जो पुरानी व्यवस्था थी उसे बंद कर दी. उसी के तहत 2018 की राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट है कि 45 साल में बेरोज़गारी सबसे अधिक है. जिन लोगों का काम था आंकड़ों को जुटाना, अध्ययन करना और जारी करना, उनके काम को बंद कर दिया गया. मगर इसकी जगह मंत्री अपने स्तर पर डेटा जारी करते रहे. कभी मुद्रा लोन के आधार पर आंकड़ा देते रहे कि इतने लोन जारी हुए तो इतने रोज़गार पैदा हुए.

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