इस बार ड्रेसाज यानी घुड़सवारी की हॉर्स बैले की प्रतियोगिता के लिए जिस भारतीय टीम ने इंचियन एशियाड के लिए क्वालीफाई किया है, उसमें चारों ही खिलाड़ी महिलाएं हैं। इस खेल में महिला−पुरुष या उम्र को लेकर कोई बंदिश नहीं होती, इसलिए सभी प्रतियोगियों को एक ही प्रतियोगिता में हिस्सा लेना पड़ता है।
भारतीय ड्रेसाज टीम को एशियाड में पदक जीतने की उम्मीद तो है, लेकिन इंचियॉन जाने से पहले उन्हें इतनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है कि उनके हौसले पस्त होने लगे हैं। सिर्फ 17 साल की शुभश्री राजेंद्र इंचियॉन जाने से पहले दिल्ली में एक दोस्त के फॉर्म पर ट्रेनिंग कर रही हैं, लेकिन पदक जीतने के लिए इसे ट्रेनिंग का माहौल नहीं कहा जा सकता।
इस खेल में पहली बार चार महिला खिलाड़ियों - शुभश्री, विनीता मल्होत्रा, श्रुति वोहरा और नाडिया हरिदास की टीम बनी है। इसमें सबसे छोटी शुभश्री अपने प्रदर्शन से इंचियॉन एशियाड में इतिहास कायम करने का इरादा रख रही हैं।
कम उम्र के बावजूद शुभश्री को अपनी जीत का पूरा भरोसा है। वह कहती हैं, मैंने बहुत मेहनत की है और मैं जानती हूं कि मैं अच्छी हूं... दूसरों के पास भी अनुभव है और वे अच्छे हैं। हाल की प्रतियोगिताओं में और अभ्यास में मैंने जैसा प्रदर्शन किया है, मुझे लगता है कि मैं मेडल ब्रैकेट में आ सकती हूं।
भारतीय इक्वेस्ट्रियन संघ के सचिव कर्नल जगत सिंह शुभश्री की बात से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि दक्षिण कोरियाई टीम ने पिछली दफा 65 फीसदी अंक हासिल किए थे, जबकि भारतीय टीम अभ्यास में 66 फीसदी अंक बना रही है, इसलिए इनसे पदकों की उम्मीद जरूर है। शुभश्री के पिता राजेंद्र शर्मा एक कामयाब एथलेटिक्स कोच रह चुके हैं, लेकिन बेटी की घुड़सवारी के खेल का खर्च उनके लिए बेहद महंगा साबित हो रहा है, इसलिए उन्हें अपनी जमीन तक बेच देनी पड़ी।
राजेंद्र शर्मा कहते हैं, जब शैरी (शुभश्री) के कोच विकी थॉमस ने इंग्लैंड में कहा कि इस लड़की में एशियाड में पदक जीतने का माद्दा है, तो हमने 50 लाख रुपये में स्मोकी नाम का घोड़ा खरीदा और इसके लिए मुझे अपनी कुछ जमीन बेच देनी पड़ी।
शुभश्री ने अपने पदक के भरोसे के दम पर लिए बजट से बाहर जाकर 50 लाख रुपये का घोड़ा खरीद लिया और ओलिंपियन विकी थॉमस से इंग्लैंड जाकर साल भर ट्रेनिंग ली। लेकिन एशियन गेम्स के लिए टीम को जाने को लेकर उठे सवालों से उनकी सांस फूलने लगी है, क्योंकि उनका घोड़ा इंचियॉन पहुंच चुका है, जिसकी देखभाल करने वाला या उसे खाना देना वाला कोई शख्स उसके साथ नहीं है।
शुभश्री और उसके कोच जद्दोजहद में हैं कि उन्हें जल्दी दक्षिण कोरिया जाने की इजाजत मिल जाए, लेकिन अधिकारी या तो समझ नहीं पा रहे या फिर उनकी बातें लाल फीताशाही में उलझ गई हैं, जिसका हल खिलाड़ी और कोच समझ नहीं पा रहे। 17 साल की शुभश्री के लिए मैदान के बाहर के खेल को समझना किसी सदमे से कम नहीं।
शुभश्री कहती हैं कि अभी जो कुछ यहां हो रहा है, उसे देख कर हैरान हूं। अभी तो यही फिक्र है कि किसी तरह इंचियॉन जाना है। मुझे लगता है कोई प्राइवेट सेक्टर आकर ये जिम्मेदारी संभाले, तभी बात बन सकती है। भारत में घुड़सवारी बेहद मुश्किल और महंगा खेल माना जाता है। बावजूद इसके अगर कोई खिलाड़ी अपने परिवार और सपोर्ट स्टाफ के हौसले के सहारे कोई कारनामे की उम्मीद करता है और पदक भी जीत पाता है, तो उसके जज्बे की तारीफ करनी ही होगी। लेकिन उससे पहले अधिकारियों को मैदान की बेसिक ट्रेनिंग की जरूरतें साफ नजर आती है।