वैश्विक स्तर पर बढ़ते युद्ध और तनाव, जैसे ईरान-इजरायल, रूस-यूक्रेन, इजरायल-फलस्तीन और भारत-पाकिस्तान संघर्ष, पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं. तेल और परमाणु ठिकानों पर हमले, मिट्टी-पानी का प्रदूषण और जैव विविधता का नुकसान चिंता का विषय है. इन युद्धों के लंबे समय तक रहने वाले पर्यावरणीय परिणाम पूरी दुनिया के लिए खतरा बन रहे हैं.
ईरान और इजरायल के बीच बढ़ता तनाव वैश्विक चिंता
ईरान और इजरायल के बीच बढ़ता तनाव वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बन गया है. कॉन्फ्लिक्ट एंड एनवायरनमेंट ऑब्जर्वेटरी (Conflict and Environment Observatory) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार इराक-ईरान सीमा पर स्थित ईरान का अबादान रिफाइनरी इजरायल के लिए एक आसान निशाना हो सकता है. यह रिफाइनरी ईरान की घरेलू ईंधन आपूर्ति का एक-चौथाई हिस्सा प्रदान करती है. विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण इजरायली वायुसेना को ईरानी हवाई रक्षा प्रणालियों से कम खतरा होगा. हालांकि, अबादान रिफाइनरी शत्त-अल-अरब नदी के किनारे स्थित है, जो ईरान और इराक के बीच सीमा बनाती है. इस पर हमला होने की स्थिति में सीमा-पार प्रदूषण की गंभीर घटना हो सकती है, जिसका पर्यावरणीय प्रभाव दोनों देशों पर पड़ सकता है.
इसके अलावा, ईरान के दक्षिणी तट पर स्थित तेल निर्यात टर्मिनलों को भी संभावित निशाना बताया गया है. इन सुविधाओं पर हमला न केवल ईरान की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक तेल कीमतों में उछाल ला सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि तेल कीमतों में वृद्धि के जटिल पर्यावरणीय परिणाम हो सकते हैं. एक ओर, ऊंची कीमतें तेल की मांग को अस्थायी रूप से कम कर सकती हैं, जिससे उत्सर्जन में कमी आएगी. दूसरी ओर, यह तेल की खोज और उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है, जिससे पर्यावरणीय समस्याएं और गंभीर हो सकती हैं. ईरान की परमाणु सुविधाएं भी इजरायल के रडार पर हो सकती हैं. इन पर हमले के पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह की कार्रवाइयां क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ा सकती हैं और वैश्विक ऊर्जा बाजार में व्यापक उथल-पुथल मचा सकती हैं. यह तनाव सिर्फ ईरान और इजरायल के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे मध्य पूर्व और दुनिया के पर्यावरण के लिए खतरनाक है.
रूस-यूक्रेन युद्ध: पर्यावरण नरसंहार की त्रासदी
2022 से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध ने यूक्रेन के पर्यावरण को तबाह किया है. बमबारी और रासायनिक हथियारों से मिट्टी और नदियां दूषित हुई हैं. 'United Nations Environment Programme' की 'The Environmental Impact of the Conflict in Ukraine' रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन में जंग से खेती को काफी नुकसान हुआ है. सबसे ज्यादा नुकसान यूक्रेन की मशहूर काली उपजाऊ मिट्टी (चेरनोज़म) को हुआ है. अमेरिकी कंपनी मैक्सार के सैटेलाइट चित्रों (जून 2022) में डोनेत्स्क-लुहान्स्क के खेतों में सैकड़ों गोले गिरने के गड्ढे और डोवहेंके में 40 मीटर चौड़ा बम गड्ढा दिखा. इन गड्ढों में फंसे बारूद के टुकड़े, जहरीली धातुएँ और ईंधन, बारिश के पानी के साथ मिलकर ज़मीनी पानी को प्रदूषित कर रहे हैं. खासकर खेरसॉन-मिकोलाइव इलाकों में, जहां जमीन के नीचे पानी सिर्फ 1-2 मीटर गहराई पर है. बड़े पशु फार्मों के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी बमबारी से टूट गए. डोनेत्स्क के एक सुअर फार्म से निकला जहरीला गंदा पानी कालमियस नदी में जा रहा है. युद्ध के चलते अभी इस प्रदूषण को रोकना मुश्किल है.
रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि लड़ाई के चलते किसान अपने जानवरों को ठीक से खिला नहीं पाए या उनके लिए डॉक्टर नहीं बुला पाए, जिस वजह से लगभग 42,000 भेड़-बकरियां, 92,000 गाय-भैंस, 2.58 लाख सूअर और 57 लाख से ज्यादा मुर्गियां मारे गए. (यह आंकड़े रिपोर्ट के वक्त दिए गए थे, जानवरों के मरने की संख्या अब कहीं अधिक होगी)
इजरायल-फलस्तीन संघर्ष का नतीजा गाजा में पर्यावरणीय तबाही
इजरायल-फलस्तीन संघर्ष ने खासकर 2023 के बाद गाजा में पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाया है. बमबारी से वायु प्रदूषण बढ़ा, जिसमें सफेद फॉस्फोरस जैसे रसायनों का उपयोग शामिल है. 'United Nations Environment Programme' की 'Environmental impact of the conflict in Gaza' रिपोर्ट के अनुसार युद्ध में इस्तेमाल गोला-बारूद के जहरीले पदार्थ पेड़-पौधों और जानवरों को तुरंत नुकसान पहुंचाते हैं. इनसे उनकी मौत हो जाती है, बीमारी होती है या विकास रुक सकता है.
कुछ खतरनाक पदार्थ मिट्टी, पानी या समुद्र में दशकों तक रह सकते हैं, जिन्हें साफ करते समय सीधा संपर्क खतरनाक होता है. कई विस्फोटक इंसानों के लिए भी हानिकारक हैं, जैसे 'टीएनटी' से लिवर, किडनी खराब हो सकती है. आरडीएक्स दूषित पानी से नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है और कई गंभीर रोग हो सकते हैं. भारी धातुएँ (जैसे आर्सेनिक, सीसा) बेहद ज़हरीली हैं. थोड़ी मात्रा भी अंगों को नुकसान पहुँचा सकती है या कैंसर कर सकती है.
रिपोर्ट के अनुसार गाजा क्षेत्र में बम से बने गड्ढों की मिट्टी में निकल, क्रोमियम, तांबा, मैंगनीज और सीसे की मात्रा बहुत ज़्यादा मिली. पुराने युद्धों से पता चलता है कि भारी धातुओं का प्रदूषण दशकों तक रहता है.
भारत-पाकिस्तान तनाव: कश्मीर की नाजुक पारिस्थितिकी को नुकसान और संभावित खतरा
इस साल भारत पाकिस्तान तनाव भी अपने चरम पर पहुंच गया था. The Wildlife India के अनुसार जम्मू और कश्मीर राज्य ने 1947 के बाद से तीन युद्धों का सामना किया है और लगभग तीन दशकों तक युद्ध जैसी स्थिति में रहा है. मानव जीवन की क्षति के अलावा, इस संघर्ष ने क्षेत्र के पारिस्थितिक धन को भी नष्ट किया है.
आतंकवाद-रोधी रणनीतियों के कारण सेना को जंगल क्षेत्रों में शिविर स्थापित करने पड़ते हैं, जिससे वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में व्यवधान पड़ता है. उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि 66% जीव-जातीय विविधता 460 मील लंबी और 15.5 मील चौड़ी नियंत्रण रेखा (LoC) के साथ मौजूद है और इसका काफी हिस्सा बारूदी सुरंगों के कारण नष्ट हो गया है. आतंकवादियों को पकड़ने की कोशिश में, सुरक्षा बलों द्वारा उच्च-वेग वाली राइफलों का व्यापक उपयोग, बिजली से घिरी बाड़, ठोस स्टील की दीवारें, रात भर की रोशनी, बहु-स्तरीय वाहन अवरोध, नई सड़कों का विशाल नेटवर्क, सभी इलाकों में चलने वाले वाहनों सहित गश्ती वाहनों का 24 घंटे का प्रवाह, निरंतर निम्न-स्तर के विमान उड़ानें, और पैदल गश्त जैसी विधियों का उपयोग होता है. हालांकि ये उपाय आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए बनाए गए हैं लेकिन ये हिमालयी घाटी के आसपास के गांवों और जंगलों में वन्यजीवों की आवाजाही में बाधा उत्पन्न करते हैं.
Center for Arms Control and Non-Proliferation की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत और पाकिस्तान के बीच अगर परमाणु युद्ध हुआ तो वायुमंडल में फैलने वाले धुएं से दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभाव होंगे और धुएं की मात्रा दोनों देशों के रणनीतिक हथियारों के आकार पर निर्भर करेगी. एक अध्ययन के अनुसार दोनों देश हिरोशिमा में इस्तेमाल हुए बम के आकार के हथियारों का उपयोग करेंगे और दोनों देशों के बीच परमाणु संघर्ष से वायुमंडल में 17 मिलियन टन से अधिक काला कार्बन जाएगा. यह कार्बन सूर्य से गर्म होकर समताप मंडल में पहुंचेगा, जहां यह सूरज की रोशनी को पृथ्वी तक आने से रोकेगा और वैश्विक परमाणु सर्दी पैदा करेगा. यह आपदा कृषि को रोक देगी, समुद्र के तापमान को बदल देगी और वैश्विक औसत तापमान को खतरनाक रूप से कम कर देगी. इसके अतिरिक्त, अध्ययन कहता है कि परमाणु युद्ध का धुआं कई वर्षों तक समताप मंडल में रहेगा, जिसका अर्थ है कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के पर्यावरणीय प्रभाव लंबे समय तक रहेंगे.
(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं