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This Article is From Aug 30, 2016

टीम इंडिया ने फिनिशर धोनी को खो दिया?

Shashank Singh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 30, 2016 19:43 pm IST
    • Published On अगस्त 30, 2016 19:35 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 30, 2016 19:43 pm IST
एक गेंद, दो रन ...स्ट्राइक पर धोनी ..और फिर यह ..भारत एक रन से मैच हार गया... एक समय था जब अगर छह रन भी चाहिए होते तो धोनी की याद आती थी और धोनी क्रीज़ पर होते तो अमूमन जीत दिलाकर ही आते थे. यूं ही उन्हें सीमित ओवरों के बेस्ट फिनिशर का टैग नहीं मिला. आईपीएल में अंतिम ओवर में 23 रन धोनी ने हासिल कर लिए थे.

हाल ही में धोनी ने बांग्लादेश के खिलाफ दो छक्के लगाकर मैच में जीत दिलाई थी. 2013 चैंपियंस ट्रॉफी जीत के बाद विंडीज़ और श्रीलंका के साथ खेली ट्राई सीरीज़ के फाइनल में अंतिम ओवर में छक्का लगाकर उन्होंने जीत दिलाई थी. ऐसे और बहुत से उदाहरण हैं. तो फिर आखिर क्या हो गया? कहां गया वह पुराना धोनी? क्या इसके पीछे वजह धोनी की बढ़ती उम्र है, क्या उनके रिफ़्लेक्सेज धीमे पड़ने लगे हैं? अगर हां तो फिर धोनी ने उस अंतिम गेंद से पहले तक 170 से ज्यादा की स्ट्राइक रेट से 24 गेंद में 43 रन कैसे बना लिए? तो क्या एक बार फिर घूम फिरकर धोनी की किस्मत पर ही बात आकर रुकने वाली है.

धोनी जब लगातार सफल रहे तो उन्हें पारस धोनी कहा गया. अब जब अंत में टीम को जीत नहीं दिला पा रहे तो उनकी खराब किस्मत को दोष दिया जाए? शायद हां..लेकिन शायद नहीं.. धोनी जैसा क्रिकेटिंग ब्रेन ही इसको सबसे बेहतर बयां कर सकता है. और धोनी के मुताबिक टी-20 फ़ॉर्मेट के लिए वे कुछ ज्यादा ही दिमाग का इस्तेमाल करते हैं, जो शायद उन्हें नहीं करना चाहिए. सच यही लगता है ...

इंग्लैंड में हाल ही में खेले गए एक मैच में धोनी ने अंबाति रायुडू को स्ट्राइक नहीं दी और खुद ही जीत की जिम्मेदारी ली..भारत तीन रन से मैच हार गया. यहां भी धोनी पर दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करने को लेकर सवाल उठे. धोनी का मैच को अंत तक ले जाना, उसको करीब ले जाकर जिताने का फार्मूला अब उन पर ही भारी पड़ने लगा है.

गौतम गंभीर ने 2012 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक मैच पर धोनी की आलोचना में कहा था कि उस मैच को अंत तक ले जाने की जरूरत नहीं थी. वह 2-3 ओवर पहले भारत को जीतना चाहिए था. धोनी स्टार भी इसी तरह बने हैं ..मैच को अंत तक ले जाना, गेंदबाजों पर दबाव बनाना और फिर उनके दबाव का फायदा उठाकर अंत में लंबे शॉट्स लगाकर जीत दिलाना और हीरो बनना. बस अंतर इतना है कि अब अंत में वे बड़े शॉट्स नहीं आ रहे.

अब बड़ा सवाल यही है कि अगर ऐसा ही रहा तो धोनी के साथ कितने और समय के लिए टीम जुड़ी रहना चाहेगी...या फिर धोनी खुद बहुत बार इस बात को कह चुके हैं कि उन्हें नंबर चार पर खेलना है. शायद उन्हें खुद भी पता है कि अब वे अंत में उस दबाव में उस तरह के लंबे शॉट्स पहले जैसी निरंतरता के साथ नहीं लगा सकते. वजह चाहे जो भी हो, इसका समाधान ढूंढना जरूरी है, क्योंकि अगले वर्ष भारत को चैंपियंस ट्रॉफी खेलनी है..और पुराने फिनिशर धोनी के बिना भारत का अपने खिताब को डिफेंड करना मुश्किल होगा.

(शशांक सिंह एनडीटीवी में स्पोर्ट्स डेस्क पर कार्यरत हैं)

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