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वे चेहरे - जिनके सम्मान से सम्मानित हुआ 'भारत रत्न' और 'पद्म पुरस्कार'

Harish Chandra Burnwal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    January 29, 2024 20:53 IST
    • Published On January 29, 2024 20:53 IST
    • Last Updated On January 29, 2024 20:53 IST

भारतीय लोकतंत्र (Indian Democracy) में 'भारत रत्न' (Bharat Ratna) और 'पद्म पुरस्कार' (Padma Awards) महज एक अवॉर्ड नहीं हैं, बल्कि ये व्यक्ति विशेष की विशिष्ट उपलब्धियों को अलग पहचान देने वाले सबसे बड़े सिविलियन अवॉर्ड हैं. पिछले एक दशक में भारत सरकार ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर और इन पुरस्कारों को पब्लिक डोमेन में ले जाकर आम आदमी का पुरस्कार बनाने का अभूतपूर्व लक्ष्य हासिल किया है. अब ये पुरस्कार हर उन शख्सियत के लिए हैं जो अपनी विशिष्ट कला, संस्कृति, कौशल और सेवाभाव के अतुलनीय काम कर रहे हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के मंत्र से देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए उनके कार्यों में अनथक प्रयास दृष्टिगोचर होते हैं. गणतंत्र दिवस के दिन सुदूर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले अनाम नायकों को पद्म पुरस्कार देने का ऐलान हो या फिर बिहार के मुख्यमंत्री रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करना, उसी परंपरा की नई कड़ी है. पद्म पुरस्कार पाने वाली शख्सियत हों या जीवनपर्यंत सादगी के पर्याय बने रहे सामाजिक न्याय के पुरोधा कर्पूरी ठाकुर, सभी भारतीय जनमानस के बीच मिसाल हैं या रहे. यही वजह है कि जब भारत सरकार ने किसी को पद्म पुरस्कार या भारत रत्न देने का ऐलान किया, तो बड़े से बड़ा विरोधी दल भी उसकी आलोचना नहीं कर पाया.

पुरस्कृत अनाम व्यक्तित्व की लंबी फेहरिस्त 
75वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर जिन 132 विभूतियों के लिए पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई, वो हर किसी को उत्साहित और रोमांचित करने वाली है. भारत सरकार ने पुरस्कारों को लेकर जिस प्रकार से पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई है, उससे करीब एक दशक में ये पुरस्कार ऐसे कई अनाम व्यक्तित्व को भी मिला है; जिनके बारे में हम बहुत ही कम देख-सुन पाते थे. इसी साल के पद्म पुरस्कार विजेताओं को ले लीजिए. वह चाहे झारखंड की पर्यावरणविद् और महिला सशक्तीकरण की प्रतीक चामी मुर्मू हों, या फिर ‘दिव्यांगों की आशा' बने बाल गोपाल धाम चलाने वाले सिरसा के दिव्यांग गुरविंदर सिंह हों. 

वह चाहे असम की पहली महिला महावत पारबती बरुआ हों, या फिर आदिवासियों के नाम अपना जीवन समर्पित करने वाले छत्तीसगढ़ के जागेश्वर यादव हों. वह चाहे चावल की 650 किस्मों को संरक्षित करने वाले केरल के किसान सत्य नारायण बलेरी हों, या फिर अंडमान और निकोबार में ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने वाले किसान के. चेलम्मा हों. वह चाहे मिजोरम का सबसे बड़ा अनाथालय चलाने वाले और व्यसनों से दूर रहने की जागरूकता फैलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता संगथंकिमा आइजोल हों, या फिर चार दशक से जेनु कुरूबा जनजाति के उत्थान के काम करने वाले कर्नाटक के सोमन्ना हों. 

जाहिर है ऐसे लोगों के कार्य और परिवेश की ‘मन की बात' में चर्चा कर खुद पीएम भी उत्साहित होते हैं. रविवार को प्रसारित ‘मन की बात' में पीएम मोदी ने कहा, “इस बार भी ऐसे अनेकों देशवासियों को पद्म सम्मान दिया गया है, जिन्होंने, जमीन से जुड़कर समाज में बड़े-बड़े बदलाव लाने का काम किया है. इन inspiring लोगों की जीवन-यात्रा के बारे में जानने को लेकर देश-भर में बहुत उत्सुकता दिखी है. मीडिया की headlinesसे दूर, अखबारों के front page से दूर, ये लोग बिना किसी lime-light के समाज सेवा में जुटे थे. हमें इन लोगों के बारे में पहले शायद ही कुछ देखने-सुनने को मिला है, लेकिन अब मुझे खुशी है कि पद्म सम्मान घोषित होने के बाद ऐसे लोगों की हर तरफ चर्चा हो रही है, लोग उनके बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानने के लिए उत्सुक हैं. पद्म पुरस्कार पाने वाले ये अधिकतर लोग, अपने-अपने क्षेत्र में काफी अनूठे काम कर रहे हैं.”

एक दशक में सिर्फ 6 हस्तियों को सर्वोच्च सम्मान
पद्म पुरस्कारों के अलावा अगर 'भारत रत्न' की बात करें, तो भारत सरकार ने पिछले 10 सालों में सिर्फ 6 हस्तियों को देश का यह सर्वोच्च सम्मान दिया है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर यह सम्मान पाने वाले छठे व्यक्ति हैं. पहले कार्यकाल में 2015 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय और देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी बाजपेयी को 'भारत रत्न' दिया गया था. इसके बाद 2019 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, नानाजी देशमुख और प्रख्यात गायक और संगीतकार भूपेन हजारिका को 'भारत रत्न' से नवाजा गया. 

अगर ध्यान से देखें तो इन सभी 6 हस्तियों ने अपने-अपने क्षेत्र में नया प्रतिमान स्थापित किया है. यह देश के इस सर्वोच्च सम्मान की गरिमा बढ़ाने की शानदार कोशिश है.

पिछड़ों को संबल देकर कर्पूरी बने थे जननायक 
जननायक कर्पूरी ठाकुर की सादगी और ईमानदारी को लोग बहुत शिद्दत से याद करते हैं. उनकी कई मिसालें आज भी दी जाती हैं. इतना ही नहीं उन्होंने जीवित रहते न कोई संपत्ति अर्जित की और न ही परिवार के किसी व्यक्ति को राजनीति में आने दिया. उनके सुपुत्र रामनाथ ठाकुर अगर राजनीति में आए भी तो उनके निधन के बाद. कर्पूरी ठाकुर अगर जीवित रहते तो शायद ही बेटे को राजनीति में आने देते. क्योंकि वे राजनीति में परिवारवाद और भ्रष्टाचार के शुरू से ही विरोधी रहे. 

मुख्यमंत्री रहते कर्पूरी ठाकुर ने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था. वंचित समुदायों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने ही भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर भी अमिट छाप छोड़ी. बिहार समेत देश की राजनीति में हाशिए पर डाल दिए गए ऐसे राजनीतिज्ञ को सरकार ने 'भारत रत्न' से नवाजा है.

भारत सरकार ने पुरस्कारों को लोकोन्मुख बनाया
'भारत रत्न' देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. पिछले 75 सालों में यह सर्वोच्च सम्मान हासिल करने का सौभाग्य 49 लोगों को मिला है. अब कर्पूरी ठाकुर बिहार के चौथे व्यक्ति बन गए हैं, जिन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. भारतीयों के अलावा फ्रंटियर गांधी अब्दुल गफ्फार खान और साउथ अफ्रीका के नेल्सन मंडेला को भी 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जा चुका है. 

एक दशक पहले तक 'भारत रत्न' और 'पद्म पुरस्कार' सिर्फ नामी-गिरामी शख्सियत को ही मिल पाते थे. 'पद्म पुरस्कारों' में ऐतिहासिक परिवर्तन 2016 में आया, जब भारत सरकार ने इसके नामांकन की प्रक्रिया को आम लोगों के हाथ सौंप दिया. कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी आम आदमी का नाम इन पुरस्कारों के लिए सामान्य तरीके से ऑनलाइन नामांकित कर सकता है. इससे पुरस्कारों में न सिर्फ पारदर्शिता आई है, बल्कि दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले ‘अनाम हीरोज' को पहचानने में भी मदद मिल रही है. 

इस बार के पद्म पुरस्कारों की चर्चा करते हुए खुद पीएम मोदी ने मन की बात में बताया. उन्होंने कहा, “मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि पिछले एक दशक में पद्म सम्मान का system पूरी तरह से बदल चुका है. अब ये पीपल्स पद्म बन चुका है. पद्म सम्मान देने की व्यवस्था में कई बदलाव भी हुए हैं. अब इसमें लोगों के पास ख़ुद को भी Nominate करने का मौका रहता है. यही वजह है कि इस बार 2014 की तुलना में 28 गुना ज्यादा Nominations प्राप्त हुए हैं. इससे पता चलता है कि पद्म सम्मान की प्रतिष्ठा, उसकी विश्वसनीयता, उसके प्रति सम्मान, हर वर्ष बढ़ता जा रहा है.”

राष्ट्र सेवा को मिली सर्वोच्च वरीयता
इससे साफ है कि पिछले एक दशक में ऐसे कितने ही ‘अनाम व्यक्तित्व' रहे हैं, जिन्हें पद्म अवॉर्ड देकर पुरस्कार का भी सम्मान बढ़ा है. इन पुरस्कारों के लिए सर्वोच्च वरीयता राष्ट्र सेवा को मिली है. पिछले दशक में देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' उन्हीं विभूतियों को दिया गया है, जिनसे 'भारत रत्न' की गरिमा बढ़ी है. वरना देश ने उस दौर को भी देखा है, जब दो-दो प्रधानमंत्रियों ने खुद को जीते जी 'भारत रत्न' सम्मान दे दिया.

आज जिस लिबरल अंदाज में पुरस्कार देने की परंपरा चल पड़ी है, वो इस बात का भी प्रतीक है कि वर्तमान सरकार समाज के हर वर्ग को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहती है, जिसके मूल में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत' की भावना समाहित है, जो नए भारत के लिए शुभ संकेत है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं. उनसे इनके ईमेल के जरिए संपर्क किया जा सकता है) (hcburnwal@gmail.com, twitter - https://twitter.com/hcburnwal)


 

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