पुरस्कार और पैसों के लिहाज़ से ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों के 64 पदकों की रेस में दीपा करमाकर के कारनामे का वज़न बहुत भारी नहीं पड़ा, लेकिन जिमनास्टिक्स की दुनिया में त्रिपुरा की दीपा करमाकर स्टार बन गई हैं, और उनके प्रोदुनोवा वॉल्ट (हैंडस्प्रिंग डबल फ्रंट वॉल्ट) को लेकर दुनियाभर के जानकार हैरान हैं व इसीलिए इंचियन एशियाई खेलों में उन्हें एक बेहद मजबूत प्रतियोगी माना जा रहा है।
भारतीय टीम के अमेरिकी कोच जिम हॉल्ट दीपा की तारीफ करते नहीं थकते, और कहते हैं कि वह दुनिया में सिर्फ पांचवीं महिला है, जिन्होंने प्रोदुनोवा वॉल्ट की कोशिश की और सिर्फ दूसरी ऐसी एथलीट है, जिन्होंने इसे सही तरीके से पूरा किया, इसलिए यह एक आकर्षक, शानदार और ऐतिहासिक कामयाबी है।
एशियाई और कॉमनवेल्थ खेलों के पदक विजेता जिमनास्ट आशीष कुमार कहते हैं, यह बहुत डिफिकल्ट एलिमेंट है। दुनिया में दीपा के अलावा सिर्फ दो ही लड़कियां फिलहाल इसे कर पा रही हैं। यह बहुत हाई-डिग्री डिफिकल्ट वॉल्ट है, जिसकी वजह से दीपा को मेडल मिला।
दरअसल वर्ष 2010 में आशीष के कॉमनवेल्थ और एशियाई खेलों में हासिल मेडलों ने भारतीय जिमनास्टों के हौसले बुलंद कर दिए हैं और दीपा इसे मानने से इनकार नहीं करतीं। दीपा कहती हैं कि वर्ष 2010 के बाद मेरा टारगेट हो गया था कि मैं कॉमनवेल्थ, एशियाड और ओलिम्पिक्स में पहुंचूं और वहां पदक जीतूं। इन एथलीटों को फॉरेन एक्सपोज़र, वीडियो एनालिस्ट, टॉप क्लास डॉक्टर और ऐसी ही कई ज़रूरतों के लिए लगातार जूझना पड़ता है, लेकिन इसके बावजूद एथलीट विश्वस्तर पर कामयाबी का सपना संजोए हुए हैं।
दीपा के कोच बीएस नन्दी कहते हैं वर्ल्ड लेवल पर जाने के लिए हमें बहुत मेहनत करने की ज़रूरत होगी। उसके लिए फॉरेन लेवल पर एक्सपोज़र की ज़रूरत होगी, लड़कों और लड़कियां दोनों को विदेश में ट्रेनिंग की ज़रूरत होगी, क्योंकि बगैर बहुत ज़्यादा मेहनत के वर्ल्ड लेवल पर पहुंचना मुमकिन नहीं।
जल्दी ही दीपा का इम्तिहान इंचियन एशियाड में होगा, जहां दीपा खुद से बड़ी उम्मीदें लगा रही हैं। दीपा करमाकर कहती हैं, पूरे देश को मेरे मेडल से जितनी खुशी मिली, उतनी मुझे नहीं है। मेरे पांव में चोट लगी है, लेकिन इंचियन में मैं जान लगा दूंगी, ताकि मेरा पदक बेहतर एहसास दे सके।
ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में दीपा और उससे पहले आशीष की कामयाबी से साफ है कि भारतीय जिमनास्टिक्स की अच्छी टीम तैयार हो रही है, लेकिन यहां भी बुनियादी सुविधाओं की कमी साफ नज़र आती है। वैसे, यह तय है कि अगर इन्हें सुविधाएं मिलें तो इनसे बड़े स्तर पर बेहतर नतीजों की उम्मीदें की जा सकती हैं।