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This Article is From Aug 12, 2017

गोरखपुर हादसा: ये 60 मौतें सवाल हैं, पर कहां पूछे ये सवाल...?

Deepika Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 12, 2017 15:32 pm IST
    • Published On अगस्त 12, 2017 15:10 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 12, 2017 15:32 pm IST
गोरखपुर के अस्‍पताल में 30 बच्‍चों की मौत की घटना पर चारों ओर गुस्‍सा है. इस घटना ने अचानक मुझे मुंबई के केईएम अस्‍पताल की वह घटना याद दिला दी, जहां एक बच्‍चे की मौत होने पर पूरे अस्‍पताल में बवाल पैदा हो गया था. छुट्टियों के सीजन में जब एक परिवार अपने बीमार बच्‍चे को लेकर अस्‍पताल पहुंचा तो रात में आए इस 'इमरजेंसी केस' को अस्‍पताल में मौजूद रेसिडेंट डॉक्‍टरों ने वैसे ही ट्रीट किया जैसे रात के 'इमरजेंसी केस' हैंडल किए जाते हैं. सुबह तक इस बच्‍चे की मौत हो गई. गुस्‍साए परिजनों ने ऑन ड्यूटी डॉक्‍टर और स्‍टाफ की पिटाई कर दी. ऐसे में अस्‍पताल के रेसिडेंट डॉक्‍टरों ने सुबह से ही अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल घोषित कर दी. सुबह हम पत्रकारों की बिरादरी का हर प्राणी वहां पहुंच चुका था और हर कोई घटना के सच की अपनी छानबीन कर र‍हा था.

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इस घटना में हर किसी का अपना सच था. जैसे परिजनों का.. कि उन्‍हें सही इलाज नहीं मिला. डॉक्‍टरों का.. कि वह अस्‍पताल में सुरक्षित नहीं हैं. और एक सच उन मरीजों का भी था जो इस घटना के बाद हुई हड़ताल में अब अस्‍पतालों की इस अव्‍यवस्‍था का भाजन बनने लगे हैं. इस घटना को पढ़ते हुए अगर आप मुंबई को भूल जाएं और इस वाकये में अपने शहर के अस्‍पताल की पिक्‍चर फिट करें तो सरकारी अस्‍पतालों की हालत लगभग हर राज्‍य, जिले, या तहसील में ऐसी ही है. हां, गांवों की बात इसलिए नहीं कर रही, क्‍यों‍कि वहां तक तो अभी अस्‍पताल ही नहीं पहुंचे.
 
hospital generic file
(प्रतीकात्मक फोटो)

नवंबर 2014 में छत्तीसगढ़ में बिलासपुर के सरकारी नसबंदी शिविर में 137 महिलाओं का ऑपरेशन हुआ. इसमें 13 महिलाओं सहित 18 लोगों की मौत हो गई थी. कुछ साल पहले कोलकाता के बी सी रॉय बच्‍चों के अस्‍पताल में 5 दिन में 35 बच्‍चों की मौत की खबर सामने आई. महाराष्‍ट्र का मेलघाट तो कुपोषण से जूझते बच्‍चों और मांओं की मौत का गढ़ बन चुका है. देश के लगभग हर हिस्‍से से ऐसी ही घटनाएं गाहे-बगाहे आती रहती हैं और इन पर हम सिर्फ शोक जताते रहे हैं.

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बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जान गंवाने वाले बच्चों में ज्यादातर इन्सेफेलाइटिस (जापानी बुखार) से पीड़ित थे. इन्सेफेलाइटिस से पूर्वांचल में हर साल 100 से ज्‍यादा बच्चों की मौत होती है. यानी ये मौतें कम से कम उस इलाके के लिए तो 'ब्रेकिंग न्‍यूज' नहीं है. इस बीमारी की चपेट में 1 से 14 साल और 65 साल से ऊपर की उम्र के लोग चपेट में आते हैं और यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस बीमारी का कोपभाजन बनने वाली सबसे बड़ी आबादी (1 से 14 साल के बच्‍चे) मतदाता नहीं है, इसलिए किसी भी चुनाव में उनका मरना 'चुनावी मुद्दा' नहीं बन पाता. 'जापानी बुखार' का सबसे ज्‍यादा प्रकोप इस इलाके में अगस्‍त, सितंबर और अक्‍टूबर महीनों में ही होता है.
 
gorakhpur hospital child pti

(प्रतीकात्मक फोटो)

गोरखपुर के अस्पतालों में ऑक्‍सीजन की कमी के चलते 5 दिन में हुई 60 बच्‍चों की मौत की घटना पर देश खौल उठा है. हर कोई सरकार से सवाल पूछना चाहता है. इस लचर व्‍यवस्‍था में आमूल-चूल परिवर्तन चाहता है. सवालों, अरोप, गुस्‍से और उद्वेलित होती भावनाओं के बीच असलियत यह है कि इन बच्‍चों की मौत में मेरा, आपका, हम सबका हाथ है. हमने अपने आप से, एक दूसरे से सवाल पूछने के सबसे अहम अधिकार को छीन लिया है. कभी 'गाय', तो कभी 'सहिष्णु-असहिष्णुता' की बहस तो कभी पाकिस्‍तान से युद्ध करने की तैयारी में हम इतने बिजी हो गए हैं कि देश में जरूरी और मूलभूत सवालों की जगह सिर्फ हाशिए पर बची है.

हम सब 'चलने वाली खबर' और आप सब 'पढ़ने वाली खबर' के इस बाजार में ऐसे फंसते जा रहे हैं कि असली सवालों के लिए किसी के पास कोई जगह नहीं बची है. अब यह किया जा सकता है कि एक पक्ष ऑक्‍सीजन की इस कमी के लिए वर्तमान केंद्र सरकार या राज्‍य सरकार को कोस ले, और अगर आप उस वर्ग का हिस्‍सा हैं, जो सरकार की आलोचना को ही 'देशद्रोह' की श्रेणी में रखता है, तो ऐसे में 'सोशल मीडियाई मौन' धारण कर लेना बहुत अच्‍छा है. लेकिन व्‍यवस्‍थाओं के बीच ऑक्‍सीजन की कमी सिर्फ गोरखपुर में नहीं है, देश के हर महकमे में है और आम लोग इस ऑक्‍सीजन की कमी से हर दिन तड़प रहे हैं... बस मर नहीं रहे. क्‍योंकि मरने के लिए तो हम युद्ध चुनते हैं.

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अब इस घटना के बाद जांच कमेटी बैठेगी, कुछ डॉक्‍टर निलंबित होंगे, कुछ मंत्रियों को फटकार लगेगी और ऐसे ही 'जरूरी कार्रवाई ' को अंजाम दे दिया जाएगा. लेकिन फिर कुछ घंटों बाद हम #Sarahah, 'ढिंचेक पूजा', 'ब्‍लू वेल', 'पॉकेमोन', 'पाकिस्‍तान', 'चीन' जैसे 'राष्‍ट्रीय मुद्दों' में बिजी हो जाएंगे और भूल जाएंगे कि मर गए कुछ बच्‍चे, जिन्‍होंने पूछे नहीं अभी तक कोई सवाल, वे भी दफन हो जाएंगे. सारे सवाल भी उन्‍हीं के साथ दफन हो जाएंगे, जैसे इससे पहले हुए हैं हर बार... शायद बार बार.


दीपिका शर्मा एनडीटीवी खबर में चीफ सब एडिटर के पद पर कार्यरत हैं...

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