फेयर एंड लवली : गोरे रंग के दीवाने हैं हम?

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

गोरा बनाने की एक क्रीम है नाम है 'फ़ेयर एंड लवली'। ये नाम बस एक प्रोडक्ट का नहीं हमारी सोच का भी है। फ़ेयर यानी गोरी ही लवली यानी प्यारी है, नौजवानों के ज़ेहन में यहीं रंगभेदी सोच गहराई तक घुस गई है।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के उस बयान को आड़े हाथों लिया गया, जिसमें वह कहते नज़र आए कि अगर राजीव गांधी ने किसी नाइजीरियन से शादी की होती तो क्या कांग्रेस के कार्यकर्ता उसका नेतृत्व स्वीकार करते।

जेएनयू के समाजशास्त्री प्रोफेसर सुरेंदर सिंह जोधका का कहना है कि रंगभेदी टिप्पणी पर कार्रवाई के लिए सख्त काननू होना चाहिए, लेकिन वह ये भी बताते हैं कि अमेरिका और दूसरे राज्यों की तरह हिंदुस्तान में काले-गोरे में फ़र्क़ बेहद जटिल है, क्योंकि हमारे 'बेसिक कलर' ब्राउन के इतने सारे शेड्स हैं कि उन्हें किसी कैटेगरी में रखना मुश्किल होगा। हिंदुस्तान में तो भाई बहन में से भी एक गोरा और दूसरा सांवला या फिर गहरा सांवला यानी काले रंग का हो सकता है।

वहीं फिल्म जगत में मज़बूती से अपना नाम दर्ज कराने की कोशिश कर रहीं एक्ट्रेस खुशबू कमल कहती हैं कि मैं गोरी और लंबी होती तो और कामयाब होती। बक़ौल खुशबू फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिंग आए न आए, रंग गोरा हो और क़द लंबा तो सफलता मिल ही जाती है। वह बिना डरे कैटरीना और जैकलिन का नाम भी ले लेती है।

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ की महासचिव कविता कृष्णन मर्दों को गोरा बनाने वाली क्रीम का विज्ञापन करने के लिए शाहरुख खान को आड़े हाथ लेती हैं। कविता का कहना है कि उनमें इतनी ग़ैरत तो होनी चाहिए कि आत्मविश्वास को गोरेपन से जोड़ने वाले विज्ञापन न करें। वह कहती हैं कि रंगों को लेकर पूर्वाग्रह इतने गहरे हैं कि पूछा जाए कि बुरी औरत कैसी होती है, तो तुरंत जवाब आता है काली होती है।

एनडीटीवी के कार्यक्रम 'हम लोग' में जब यह सवाल उठा तो एक दर्शक ने कहा दादी जब कहानी सुनाती थीं तो कहानी के किरदार का राजकुमार गोरा चिट्‌टा होता था और राक्षस काला...

दिल्ली में मैट्रिमोनियल सर्विस चला रहे पंकज शास्त्री बताते हैं कि सांवले या काले लड़के को भी गोरी लड़की ही चाहिए, क्योंकि बच्चा गोरा पैदा होगा और आने वाली पीढ़ियां संवर जाएंगी। बक़ौल पंकज शास्त्री, वक्त बदला है लेकिन सोच नहीं।

वहीं इमेज गुरु दिलीप चेरियन बताते हैं कि लोग भले ही सांवले हों लेकिन गोरी और बेहद गोरी हीरोइनों को देखने सिनेमाघर जाते हैं। मॉडलिंग के लिए भी विदेशी लड़कियों की मांग होती है क्योंकि वहां बोलने का कुछ काम नहीं है।

हालांकि बंगाली फिल्मों की अभिनेत्री और हिंदी फिल्मों में भी काम कर चुकी ऋतुपर्णा सेनगुप्ता रंग और क़ाबिलियत को अलग कर देखने की दलील देती हैं। वह याद दिलाती हैं कि स्मिता पाटिल और रेखा का अभिनय ज़ेहन में ज़िंदा रहता है। उनका रंग गहरा है तो क्या हुआ, उनका अभिनय कमाल का है। हर दौर में सांवली हिरोइन ने अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। ये अलग बात है कि रेखा का रंग भी वक़्त के साथ माइकल जैकसन की तरह गोरा होता चला गया है।

रंगभेदी सोच को लेकर बहस बेवजह नहीं है। हमारे यहां गोरा बनाने का दावा करने वाली क्रीम अरबों का कारोबार करती हैं। कमाई के मामले में कोका कोला भी फ़ेयर एंड लवली से पीछे है। यहां हम कोका-कोला का समर्थन नहीं कर रहे।


हमारे देश में उम्मीद का बाज़ार, सबसे बड़े बाज़ारों में से एक है, यह उम्मीद कि हम गोरे हो जाएंगे। क्या गहरा रंग और आत्मविश्वास एक साथ नहीं चल सकते... कम से कम गोरा बनाने का दावा करने वाले विज्ञापनों से तो यहीं तस्वीर लोगों के मन में आती है।

कुछ सर्वे रंग को लेकर पूर्वाग्रहों और सोच पर मुहर भी लगाते रहे हैं कि आप गोरे हैं तो नौकरी मिलने और तरक्की में मदद मिलती है। ऐसे में ये सवाल ज़रूर पूछना चाहिए कि हुनर, क़ाबिलियत और मेहनत, गहरे या हल्के रंग के फ़र्क़ से हल्के हो जाते हैं। क्या सांवला या गहरे रंग का होना या फिर काला होना, लोगों का आपके लिए नज़रिया बदल देता है।

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लोगों की सोच बदले इससे पहले हमें खुद को बदलना होगा, जब रंग और आत्मविश्वास हमारी सोच में एक दूसरे के पूरक हो जाएंगे तो समस्या बढ़ जाएगी। मन न माने तो महात्मा गांधी, ए आर रहमान, नंदिता दास, हॉलीवुड एक्टर विल स्मिथ, बॉक्सर मोहम्मद अली, बॉस्केट बॉल के महान खिलाड़ी माइकल जॉर्डन का चेहरा याद करें। यक़ीन हो जाएगा कि रंग बदलने की नहीं सोच बदलने की ज़रूरत है। हमको भी और रंग की वजह से हमारे बारे में रंगभेदी सोच रखने वालों को भी। चमन की शोभा रंग-बिरंगे फूलों से बढ़ती है तो इंसान की क्यों नहीं। बक़ौल ग़ालिब - शम्मा हर रंग में जलती है सहर होने तक।