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This Article is From Jul 19, 2021

सिद्धू के ज़रिए खोया हुआ वर्चस्व पाना चाहता है गांधी परिवार...

Aadesh Rawal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 19, 2021 20:48 pm IST
    • Published On जुलाई 19, 2021 20:41 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 19, 2021 20:48 pm IST

एक महीने की लम्बी मशक़्क़त के बाद रविवार रात को नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया. महीने पहले किसी ने नहीं सोचा होगा कि गांधी परिवार अपने सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस तरह चुनौती देगा. नवजोत सिंह सिद्धू को तो कैप्टन के विरोध के कारण प्रदेश अध्यक्ष बनाया ही, साथ में चार कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किए गए जिनमें से एक भी नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह के कैम्प से नहीं आता. 

जब से नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस में आए हैं तभी से वह यह बोलना कभी नहीं भूलते थे कि उनपर उत्तर प्रदेश की महासचिव प्रियंका गांधी की कृपा है. सिद्धू हमेशा कहते थे मुझे तो प्रियंका गांधी ही कांग्रेस मे लेकर आयी हैं. 

नवजोत सिंह सिद्धू की नियुक्ति का असर पंजाब में तो होगा ही लेकिन इसके परिणाम काफ़ी दूरगामी होने वाले हैं. दराअसल 2014  और 2019 की हार के बाद गांधी परिवार पर यह आरोप लगते रहे कि वह कड़े फ़ैसले करने में असमर्थ है. दूसरी पीढ़ी के नेताओं को पार्टी में जगह नहीं मिल रही है. प्रियंका गांधी ने नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर यह बता दिया है कि भले ही कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार कमजोर हो लेकिन उनपर कोई दबाव नहीं बना सकता. नवजोत सिंह सिद्धू के ज़रिए गांधी परिवार अपना खोया हुआ वर्चस्व एक बार फिर कांग्रेस पार्टी पर स्थापित करना चाहता है जो कि सिर्फ़ पंजाब तक ही सीमित नहीं रहेगा. राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा, गुजरात और बाक़ी राज्य में भी ऐसे ही बड़े फ़ैसले देखने को मिलेंगे.

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इसका असर कांग्रेस के हर उस राज्य पर पड़ेगा जहां पार्टी दो हिस्सों में बटी हुई है. इससे सम्बंधित हर राज्य में ऐसे ही आश्चर्यचकित करने वाले फ़ैसले होंगे.

प्रियंका गांधी का नवजोत सिंह सिद्धू के साथ खड़ा होना और राहुल गांधी का यह कहना कि, जो लोग संघ और बीजेपी से डरते हैं वह कांग्रेस छोड़कर जा सकते हैं. यह इस बात के संकेत हैं कि गांधी परिवार दस जनपद को मज़बूत करने की हर सम्भव कोशिश कर रहा है.

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर साफ़ कर दिया था कि, पंजाब के नेताओं और कार्यकर्ताओं को नवजोत सिंह सिद्धू का नेतृत्व मंज़ूर नहीं है. पंजाब के सांसदों की बैठक में यह तय किया गया कि नवजोत सिंह सिद्धू के अध्यक्ष बनने पर कोई भी सांसद अपने क्षेत्र में उनका स्वागत नहीं करेगा और इस फ़ैसले में सभी की सहमती थी. इसके अलावा दस विधायकों ने पत्र लिखकर कहा कि, कैप्टन अमरिंदर सिंह का कोई विकल्प नहीं है. वह एक मात्र पंजाब कांग्रेस की आवाज हैं. बावजूद इस विरोध के गांधी परिवार ने किसी की परवाह किए बग़ैर रविवार रात को नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का “कैप्टन” नियुक्त कर दिया.

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एक वक़्त था जब नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट के मंत्री हुआ करते थे. सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को कहा, मेरी सरकारी वाली कार अच्छी नहीं है. उसी वक़्त कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी लैंड क्रूज़र गाड़ी, जिसमें खुद मुख्यमंत्री चलते थे, वह कार नवजोत सिंह सिद्धू को सौंप दी. आज देखिए कैसे देखते देखते नवजोत सिंह सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह से पंजाब की कमान ही छीन ली.

नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब की कमान सौंपने का सिलसिला लगभग दो साल पहले शुरू हुआ था. उस वक़्त पंजाब की प्रभारी आशा कुमारी हुआ करती थीं. प्रियंका गांधी ने जब यह संदेश कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के ज़रिए आशा कुमारी तक भिजवाया तो आशा कुमारी ने कहा कि इन्हें कैम्पन कमेटी के अध्यक्ष से ज़्यादा कुछ नहीं दिया जा सकता. प्रियंका गांधी चाहती थी कि आशा कुमारी प्रभारी के तौर पर नवजोत सिंह सिद्धू को अध्यक्ष बनाया जाए, ऐसा एक प्रस्ताव बनाकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास भेजें. आशा कुमारी ने ऐसा करने से मना कर दिया और जब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में फेरबदल हुआ तो आशा कुमारी को पंजाब के प्रभारी पद से हटा दिया गया. हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती थीं कि आशा कुमारी को किसी दूसरे प्रदेश की ज़िम्मेदारी दी जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 

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इस फेरबदल के बाद पंजाब की ज़िम्मेदारी उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को दी गई. हरीश रावत पंजाब के महासचिव नियुक्त किये गए और हरीश रावत ने उन सभी फ़ैसलों को करवाया जो गांधी परिवार और ख़ासतौर पर प्रियंका गांधी पंजाब मे करना चाहते थे. गांधी परिवार ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ अपने पुराने रिश्तों की भी चिंता नहीं की और विरोध के बावजूद एक ऐसा फ़ैसला हुआ जिससे यह संदेश गया कि परिवार अपना खोया हुआ वर्चस्व पाना चाहता है. इस तरह का कठोर फ़ैसला गांधी परिवार की तरफ़ से लम्बे समय के बाद देखने को मिला है.

(आदेश रावल वरिष्ठ पत्रकार हैं. आप ट्विटर पर @AadeshRawal पर अपनी प्रतिक्रिया भेज सकते हैं)

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