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राम मंदिर पर ध्वजारोहण और सनातन गौरव की पुनर्स्थापना

संजीव कुमार मिश्र
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 23, 2025 19:57 pm IST
    • Published On नवंबर 23, 2025 19:57 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 23, 2025 19:57 pm IST
राम मंदिर पर ध्वजारोहण और सनातन गौरव की पुनर्स्थापना

भारतीय इतिहास के कालखंड में कुछ तिथियां केवल कैलेंडर की तारीखें नहीं होतीं, बल्कि वे सभ्यता के नए सूर्योदय की साक्षी बनती हैं। 22 जनवरी 2024 को जब रामलला नव-निर्मित मंदिर में विराजे तब पूरी दुनिया ने भारत की सांस्कृतिक चेतना का पुनरोदय देखा। अब, उसी श्रृंखला में 25 नवंबर की तिथि एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ने जा रही है। अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण कार्य अब अपने औपचारिक समापन की ओर है, और इस पूर्णता का उद्घोष मंदिर के शिखर पर फहराने वाले विशाल ध्वज के साथ होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ध्वजारोहण करेंगे, यह ध्वजारोहण मात्र एक कर्मकांड नहीं, बल्कि सदियों के संघर्ष, त्याग और तपस्या की 'पूर्णाहूति' का प्रतीक है। यह ध्वज न केवल मंदिर की ऊंचाई को स्पर्श करेगा, बल्कि भारत के आत्मसम्मान और सनातन आस्था के उस शिखर को भी छुएगा, जिसकी प्रतीक्षा पीढ़ियों ने की है। मंदिर निर्माण की यह यात्रा सुगम नहीं थी। इसमें सदियों का अभूतपूर्व धैर्य, अनगिनत बलिदान और न जाने कितने ही कारसेवकों और रामभक्तों की मूक तपस्या शामिल है। भारत के कण-कण में राम रचे-बसे हैं। राम केवल एक देवता नहीं, बल्कि भारत की पहचान हैं।

जब गत वर्ष रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भावुक हो उठे थे। उनका वह संबोधन आज भी प्रासंगिक है और इस ध्वजारोहण की पृष्ठभूमि तैयार करता है। उन्होंने कहा था कि यह मंदिर, मात्र एक देव मंदिर नहीं है। ये भारत की दृष्टि का, भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर है। ये राम के रूप में राष्ट्र चेतना का मंदिर है। यही जन-जन की भावना भी है। राम भारत के 'आधार' हैं और 'विचार' भी। राम 'विधान' हैं और 'चेतना' भी। प्रधानमंत्री ने राम के व्यक्तित्व को भारत की आत्मा से जोड़ते हुए कहा था कि राम 'प्रवाह' भी हैं और 'प्रभाव' भी। वे 'नेति' भी हैं और 'नीति' भी। राम की यह व्यापकता—जो 'विभु', 'विशद' और 'विश्वात्मा' है—अब उस ध्वज के रूप में नभ को चूमेगी जो मंदिर के शिखर पर स्थापित होगा।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो स्वयं गोरक्षपीठ के महंत हैं, इस पूरे निर्माण कार्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते रहे। उनकी लगातार अयोध्या यात्राएं और विकास कार्यों की समीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि रामकाज में कोई बाधा न आए। अब जब निर्माण कार्य पूर्णता पर है, तो यह उनके संकल्पों की भी सिद्धि है।

25 नवंबर और अभिजीत मुहूर्त का महा-संयोग

सनातन धर्म में 'काल' (समय) का विशेष महत्व है। किसी भी शुभ कार्य की सफलता ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति पर निर्भर करती है। राम मंदिर के ध्वजारोहण के लिए 25 नवंबर को जिस समय का चयन किया गया है, वह ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत दुर्लभ और फलदायी है। ध्वजारोहण का समय दोपहर 11 बजकर 52 मिनट से अपराह्न एक बजे तक निर्धारित हैं। ज्योतिष शास्त्र में अभिजीत मुहूर्त को सभी मुहूर्तों में 'सर्वश्रेष्ठ' माना गया है। यह दिन के आठवें मुहूर्त का मध्य भाग होता है। मान्यता है कि यह वह कालखंड है जिसमें भगवान श्रीहरि विष्णु ने दुष्टों का विनाश करने के लिए अवतार लिया था। इस मुहूर्त में शुरू किया गया कोई भी कार्य निश्चित रूप से सफल होता है और 'विजय' प्रदान करता है।


ध्यान देने योग्य बात यह है कि राम मंदिर का भूमि पूजन और रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा, दोनों ही इसी अभिजीत मुहूर्त में संपन्न हुए थे। अब ध्वजारोहण भी उसी नक्षत्र-योग में हो रहा है। इसका आध्यात्मिक अर्थ यह है कि भगवान राम की कृपा सम्पूर्ण राष्ट्र पर बनी रहे और जिस 'रामराज्य' की परिकल्पना हम करते हैं, उसके आदर्शों की स्थापना निर्विघ्न रूप से हो सके। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के अनुसार, यह ध्वजारोहण मंदिर के निर्माण कार्य की पूर्णता और उसकी दिव्यता का शंखनाद है।

ध्वज की भव्यता - आस्था और शिल्प का संगम

अयोध्या के आकाश में लहराने वाला यह ध्वज सामान्य नहीं है। यह धर्म, कला और विज्ञान का अद्भुत मिश्रण है।

  • अतुलनीय ऊंचाई: राम मंदिर के गर्भगृह के मुख्य शिखर की ऊंचाई 160 फीट है। इसके ऊपर लगने वाले विशाल ध्वज-दंड को मिलाने पर यह ध्वज लगभग 191 फीट की ऊंचाई पर लहराएगा। इतनी ऊंचाई से यह ध्वज मीलों दूर से भक्तों को रामलला की उपस्थिति का आभास कराएगा।
  • निर्माण प्रक्रिया: इस ध्वज को तैयार करने में 25 दिन का समय लगा है। इसे तीन परतों में बनाया गया है। सिल्क का उपयोग हुआ है और किनारों पर 'गोल्डन फैब्रिक' लगाया गया है जो सूर्य की किरणों में चमक बिखेरेगा।
  • रंग और प्रतीक: ध्वज का रंग 'केसरिया' (भगवा) है। यह रंग भारतीय संस्कृति में त्याग, वैराग्य, ज्ञान और शौर्य का प्रतीक है।

ध्वज पर अंकित चिन्ह:

•    सूर्य: ध्वज पर सूर्य देव का चिन्ह अंकित है। चूकिं भगवान राम 'सूर्यवंशी' हैं, इसलिए यह चिन्ह उनके कुल के तेज, ऊर्जा और प्रकाश का प्रतिनिधित्व करता है।
•    ॐ (ओम): केंद्र में अंकित 'ॐ' ब्रह्मांड का नाद है, जो आध्यात्मिकता और परम चेतना का प्रतीक है।
•    कोविदार वृक्ष: सबसे विशेष बात यह है कि ध्वज पर 'कोविदार वृक्ष' का चित्र अंकित है। वाल्मीकि रामायण में अयोध्या के राजवंश के प्रतीक के रूप में कोविदार वृक्ष का उल्लेख मिलता है। यह चिन्ह इस ध्वज को सीधे त्रेतायुग की अयोध्या से जोड़ता है। यह बताता है कि यह मंदिर केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि हमारी ऐतिहासिक वंशावली का जीवंत स्मारक है।

वेदों में ध्वज

भारतवर्ष में ध्वज का महत्त्व केवल एक कपड़े के टुकड़े के रूप में नहीं, बल्कि 'देवता' और 'विजय' के रूप में रहा है। वैदिक काल से ही सनातन धर्म में ध्वज (केतु) का स्थान अत्यंत ऊंचा रहा है। वेदों में ध्वज के लिए स्पष्ट प्रार्थनाएं की गई हैं। ऋग्वेद की यह उक्ति अत्यंत प्रासंगिक है:

अस्माकमिन्द्र: समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु।
अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँ उ देवा अवता हवेषु।।
अर्थ: "हे इंद्र! हमारे ध्वज (युद्ध और शांति दोनों में) फहराते रहें। हमारे बाण (प्रयास) विजय प्राप्त करें। हमारे वीर सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हों और देवता हमारी रक्षा करें।"
इस मंत्र में स्पष्ट कामना है कि धर्म का ध्वज सदैव लहराता रहना चाहिए।

भगवा रंग का वैदिक आधार

अक्सर ध्वज के 'भगवा' या 'केसरिया' रंग पर चर्चा होती है। हमारे वेदों में अग्नि-ज्वाला के आकार वाले ध्वज का वर्ण स्पष्ट रूप से 'भगवा' या सूर्य के समान बताया गया है। वैदिक मंत्रों में ध्वज के रंगों के लिए नौ विशेष शब्दों का प्रयोग मिलता है: अरुण, अरुष, रुशत्, हरित, हरी, अग्नि, रजसो भानु, रजस् और सूर्य।
•    हरित और हरी: यह शब्द हल्दी के समान पीले रंग और सूर्य की आभा का द्योतक है।
•    अरुण: यह उषाकाल (सूर्योदय) के समय आकाश के लाल रंग का प्रतीक है।
•    रजसो भानु: यह शब्द सूर्य की किरणों से चमकते हुए धूल के कणों (धूलि-धूसरित भगवा) का रंग बताता है।

वेदों में ध्वज को 'अग्नि ज्वाला', 'विद्युत' और 'उगता हुआ सूर्य' कहा गया है। इन उपमाओं का निष्कर्ष यही है कि ध्वज का रंग लाल और पीले के मिश्रण से बना 'भगवा' ही है, जो ऊर्जा और पवित्रता का सर्वश्रेष्ठ रूप है। 25 नवंबर को अयोध्या में फहराया जाने वाला ध्वज इसी वैदिक परंपरा का निर्वहन करेगा।

विरासत और विकास की नई दृष्टि

राम मंदिर निर्माण और अब ध्वजारोहण भारतीय अध्यात्म और सांस्कृति की गौरवशाली यात्रा का मीलस्तंभ है। इससे वर्तमान सरकार की नीतियां और दूरदर्शिता भी परिलक्षित होती है। आजादी के बाद के कई दशकों तक भारत में एक अजीबोगरीब विडंबना रही। पूर्व की सरकारों और नीति-नियंताओं ने 'विरासत' और 'विकास' को दो अलग-अलग ध्रुवों के रूप में देखा। एक अघोषित मानसिकता थी कि यदि आपको विकास चाहिए, सड़कें चाहिए, तकनीक चाहिए, तो आपको अपनी पुरानी मान्यताओं, मंदिरों और सांस्कृतिक प्रतीकों को हाशिये पर रखना होगा।

विरासत को अक्सर 'पिछड़ेपन' का प्रतीक मान लिया गया और विकास को केवल 'पश्चिमीकरण' के चश्मे से देखा गया। लेकिन, 2014 के बाद से भारत ने एक बड़ा वैचारिक बदलाव देखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने इस पुराने ढांचे को पूरी तरह नकार दिया। उन्होंने "विकास भी, विरासत भी" का मंत्र दिया। क्या कभी किसी ने सोचा था? क्या आज से 10-15 साल पहले किसी ने कल्पना की थी कि अयोध्या जैसा प्राचीन धार्मिक नगर एक तरफ तो अपनी पौराणिकता को जीएगा और दूसरी तरफ वहां एक अत्याधुनिक 'महर्षि वाल्मीकि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा' होगा? क्या किसी ने सोचा था कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में शिव की भक्ति के साथ-साथ आधुनिक सुगम व्यवस्था का संगम होगा?

यह मोदी सरकार की दूरदृष्टि है जिसने सिद्ध किया कि:

  1. आर्थिक इंजन के रूप में आस्था: धार्मिक केंद्र केवल पूजा के स्थल नहीं हैं, बल्कि वे पर्यटन और अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े इंजन हैं। राम मंदिर के कारण अयोध्या में होटल, परिवहन और स्थानीय व्यापार में जो उछाल आया है, वह 'विकास' का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
  2. गौरव का मनोविज्ञान: जब एक राष्ट्र अपनी संस्कृति पर गर्व करता है, तो उसके नागरिक अधिक आत्मविश्वास के साथ काम करते हैं। गुलामी की मानसिकता से मुक्ति और अपनी विरासत पर गर्व—यही वह नींव है जिस पर विकसित भारत का निर्माण हो रहा है।

योगी आदित्यनाथ – संकल्प और समर्पण का दूसरा नाम

इस महायज्ञ में यदि प्रधानमंत्री मोदी 'यजमान' और विजनरी की भूमिका में हैं, तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उस 'तपस्वी' की भूमिका में हैं, जिन्होंने इस संकल्प को धरातल पर उतारा है। राम मंदिर आंदोलन से गोरक्षपीठ का नाता पीढ़ियों पुराना है। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ ने जिस सपने को देखा था, उसे उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ ने अपनी आँखों के सामने साकार होते देखा है। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के विकास को अपनी व्यक्तिगत निगरानी में रखा।
•समीक्षा और संवाद: योगी आदित्यनाथ लगातार अयोध्या का दौरा करते हैं। चाहे दीपोत्सव की भव्यता हो, सड़कों का चौड़ीकरण (राम पथ, भक्ति पथ) हो, या फिर मंदिर निर्माण की गुणवत्ता—सीएम योगी की पैनी नज़र हर पहलू पर रहती है।
•कानून और व्यवस्था: इतने बड़े निर्माण कार्य और लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करना आसान नहीं था। योगी आदित्यनाथ के कुशल प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया कि अयोध्या न केवल 'दिव्य' बने, बल्कि 'सुरक्षित' भी हो।
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और उस पर ध्वजारोहण, 'भारत के दर्शन' की पूर्णता है। जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है कि ‘राम विग्रहवान धर्म:' अर्थात राम धर्म के साक्षात स्वरूप हैं। अब जब उनके मंदिर पर कोविदार वृक्ष और सूर्य के चिन्ह वाला भगवा ध्वज लहराएगा, तो यह विश्व को संदेश देगा कि भारत अपनी जड़ों से जुड़कर ही विकास के आकाश को छू सकता है।
25 नवंबर का दिन अभिजीत मुहूर्त की सार्थकता को सिद्ध करते हुए, रामराज्य के उन आदर्शों की पुनर्स्थापना का दिन होगा, जहाँ प्रजा सुखी हो, धर्म सुरक्षित हो और राष्ट्र का मस्तक गर्व से ऊंचा हो। यह ध्वजारोहण, भारत के "अमृत काल" में आध्यात्मिक विजय का जयघोष है।

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