'प्रेम की गंगा' बनाम कंगना-ऋतिक की 'तू-तू, मैं-मैं...'

'प्रेम की गंगा' बनाम कंगना-ऋतिक की 'तू-तू, मैं-मैं...'

जब हमारे कानों से 'फिल्मी दुनिया' शब्द टकराते हैं, हमारे दिमाग में एक साथ दो तस्वीरें उभरती हैं। पहली एक कोलाज के रूप में होती है, जिसमें फिल्म से जुड़े लोगों की तस्वीरें होती हैं - खासकर हीरो और हीरोइनों की तस्वीरें। दूसरी तस्वीर में वह दुनिया उभरती है, जिसे सभी फिल्मवाले मिलकर पर्दे पर रचते हैं, लेकिन पर्दे की यह रुपहली दुनिया कल्पना में तो रहती है, धरती पर नहीं।

आज यहां फिल्मी दुनिया के जिस रंग-रूप की बात की जा रही है, वह मुख्यतः कंगना रनौत और ऋतिक रोशन की दुनिया, यानी कोलाज वाली इमेज की दुनिया के बारे में है। सच यह है कि इन दोनों के माध्यम से उस नई दुनिया के बारे में है, जो धीरे-धीरे बन रही है - परदे पर ही नहीं, पृथ्वी पर भी। कंगना रनौत और ऋतिक रोशन के तथाकथित प्रतिशोधात्मक प्रेम की 'तू-तू, मैं-मैं' फिलहाल अखबारों और चैनलों में छाई हुई है। इसमें अब ऋतिक से पिछले दो सालों से अलग रह रहीं उनकी पत्नी सुज़ैन भी शामिल हो गई हैं। अच्छी बात यह है कि इस सारे मामले में वह ऋतिक के ही साथ खड़ी हैं। इस पूरे प्रकरण ने अब अच्छा-खासा ऐसा रोमांचक जासूसी रूप ले लिया है कि कोई ताज्जुब नहीं कि बहुत जल्द कोई प्रोड्यूसर इस पर फिल्म बनाने की घोषणा भी कर दे, इस डिस्क्लेमर के साथ कि 'इस फिल्म का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ कोई संबंध नहीं है...'

अभी-अभी शाहरुख खान की भी एक फिल्म आई है 'फैन'। वैसे है तो यह एक स्टार। उस स्टार को पागलों की तरह चाहने वाले उसके एक फैन के बीच के संबंधों की कहानी। लेकिन इस कहानी को कंगना और ऋतिक के विवादास्पद तथाकथित एकतरफा प्रेम-प्रसंग एवं ऐसे ही कुछ अन्य फिल्मी प्रेमों पर लागू किया जा सकता है। फैन का अपने स्टार के प्रति लगाव पूरी तरह भावात्मक है, जबकि स्टार का फैन के प्रति तर्कपूर्ण। फलस्वरूप दोनों एक-दूसरे को समझ ही नहीं सके हैं। स्टार कहता है, ''मैं आज जो कुछ भी हूं, जहां भी हूं, अपने फैन्स की वजह से हू...'' और यही स्टार अपने फैन के द्वारा पांच मिनट चाहे जाने पर उससे पूछता है, ''यह मेरी अपनी ज़िन्दगी है... पांच मिनट तो क्या, मैं पांच सेकंड भी तुम्हें क्यों दूं...?'' बस, यहीं से 'अभिमान' की लड़ाई शुरू हो जाती है। प्रेमी फैन अपने स्टार को बर्बाद करने में जुट जाता है, फिर चाहे वह खुद भी बर्बाद क्यों न हो जाए... और स्टार का अहम् इतना ऊंचा है कि वह अपने फैन के इस छोटे से विनम्र अनुरोध को मान नहीं पाता कि 'एक बार सॉरी भर बोल दो...'

चाहे फैन हो या प्रेम, दोनों दो तत्वों की मांग करते हैं। एक है विश्वास, दूसरा है समर्पण। वैसे व्यवहार में ये दोनों एक ही हैं, क्योंकि समर्पण वहीं हो सकता है, जहां विश्वास होगा। इसके अभाव में प्रेम मात्र उद्वेग है, आवेश है। एक छलावा है, खुद के साथ और उसके साथ भी, जिससे प्रेम किया जा रहा है। ऐसे प्रेम के केंद्र में होता है स्वार्थ, जिसके लिए फिल्मी दुनिया काफी मशहूर है। एक-दूसरे की गतिविधियों पर लगातार नज़र गड़ाए रखना, फोन टैप करना, जासूस छोड़ना, मेल हैक करना आजकल के प्रेम के सुरक्षा गार्ड बन गए हैं। यहां बताने की ज़रूरत नहीं कि मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूं।

सोचता हूं कि यदि यही कंगना और ऋतिक टाइम ट्रेवल करके आज से 50 साल पीछे चले जाएं, तो वे एक-दूसरे से किस प्रकार का व्यवहार कर रहे होते...? राजकपूर विवाहित थे, और नरगिस के दीवाने थे, लेकिन सब कुछ कैसे गुज़रा...? दिलीप कुमार मधुबाला के तथा मधुबाला दिलीप जी की दीवानी थीं, लेकिन दोनों ने पूरी शालीनता से अपने-अपने रास्ते पकड़ लिए। देवानंद और सुरैया की एक-दूसरे के लिए चाहत जगज़ाहिर थी, लेकिन देवानंद ने किसी और से शादी कर ली, और सुरैया ज़िन्दगीभर अविवाहित रहीं, लेकिन प्रतिशोध की आग तनिक भी नहीं भड़की।

प्रेमी ही नहीं, उस समय के फैन्स भी ऐसे ही होते थे, लेकिन यह 50 साल पहले की बात है। तब से अब तक तो न केवल गंगा से बहुत सारा पानी बह चुका है, बल्कि वह गंदी भी हो चुकी है। कहीं-कहीं तो उसके सूख जाने तक के समाचार मिलने लगे हैं। अब बहुत मुश्किल हो गया है, इस गीत को गुनगनाना - ''प्रेम की गंगा बहाते चलो...''

डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...

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