भारतीय रेल की एक खूबी है. वो जैसे चाहती है यात्री उसके हिसाब से ढल जाते हैं. अगर ट्रेन 30 घंटे की देरी से चले तो यात्री उसके हिसाब से एडजस्ट हो जाते हैं. असुविधाओं से एडस्ट होना यात्री होना होता है. हम रेल के हर सवाल से इतना एडजस्ट कर चुके हैं कि तीस घंटे की देरी से पहुंच कर भी सीधा घर चले जाते हैं. क्योंकि हम अपने समय का सम्मान नहीं करते हैं. हमने शाम छह बजे railradar.railyatri.in पर जाकर देखा. इस वेबसाइट पर से आप पता कर सकते हैं कि किस वक्त कितनी ट्रेनें समय से चल रही हैं और कितनी देरी से.
हमने शाम छह बजे देखा तो पता चल रहा था कि 68 प्रतिशत रेलगाड़ियां देरी से चल रही हैं. यह देरी कुछ भी हो सकती है. एक मिनट की भी और 20 घंटे की भी. लाल निशान बता रहे हैं कि भारतीय रेलवे को समय के मामले में अभी बहुत कुछ करना है. जो भी कुछ करने का दावा किया जा रहा है इस डेटा से तो नहीं लगता कि कोई ठोस नतीजा निकला है. सिर्फ 35 प्रतिशत गाड़ियां समय से चल रही हैं. हमने जब भी इस वेबसाइट को देखा, इसी के आस पास ट्रेनें लेट रही हैं. मगर शनिवार को रेलवे ने समय पर चलने का जो आंकड़ा दिया है उसके अनुसार 2017-18 में करीब 30 प्रतिशत गाड़ियां ही देरी से चली हैं. अब इन दो आंकड़ों में अंतर है. रेलरडार के हिसाब से हमने जब भी देखा 60 से 70 फीसदी गाड़ियां लेट रही हैं. रेल मंत्रालय के हिसाब से 30 प्रतिशत गाड़ियां ही देरी से चली हैं. मगर उनका औसत साल भर का है.
शनिवार को पीटीआई की खबर थी कि रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने समय को लेकर एक बैठक की है. रेलवे का मानना है कि सुरक्षा मानकों में सुधार के काम हो रहे हैं इसलिए देरी की समस्या रहेगी. बैठक के दौरान समीक्षा में पाया गया कि कानपुर, टुंडला, आगरा और मुगलसराय से गुज़रने वाली गाड़ियां समय से नहीं चल पा रही हैं. रेलवे का कहना है कि अप्रैल में नॉर्थ सेट्रेल ज़ोन में देरी से चलने का औसत 40 प्रतिशत है. आप जानते हैं कि हमने स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस का मामला कई बार उठाया, अब यह ट्रेन ठीक ठाक समय से चल रही है. 20 घंटे 30 घंटे की देरी से चल रही थी वो अब नहीं हो रहा है. पूर्व मध्य रेलवे के जीएम ललित चंदर त्रिवेदी का कहना है कि अब 12 ऐसी ट्रेनों पर निगाह रखी जाएगी. उनके लिए अलग से रेक की व्यवस्था कर यानी नई रेलगाड़ी बनाकर समय से चलाने का प्रयास होगा.
ट्रेन देरी होने पर आपके क्या अधिकार हैं, बहुत से यात्रियों को पता भी नहीं होता. कम ही लोग हैं जो सीधा रेल मंत्री या रेल मंत्रालय के ट्विटर हैंडल पर ट्वीट कर पाते हैं. सीमांचल एक्स्प्रेस ईट्रेन इंफो के हिसाब से साल में 12 घंटे की औसत देरी से चली है. प्राय यह ट्रेन 10 घंटे, 20 घंटे और कभी कभी तो 50 घंटे की देरी से चलती ही है. हमने इस ट्रेन का मसला खूब उठाया. 1 मई से 7 मई के बीच यह ट्रेन न्यूनतम 5 घंटे की देरी से चली है और अधिकतम 38 घंटे की देरी से. लेकिन हमने इसका मसला उठाया तो इसकी टाइमिंग में कुछ खास सुधार नहीं हुआ है. नेशनल ट्रेन इन्क्वायरी सिस्टम में एक हफ्ते का ही डेटा होता है.
- सीमांचल एक्सप्रेस 9 मई को आनंद विहार टर्मिनल पहुंची है 11 घंटा 25 मिनट की देरी से
- 10 मई को आनंद विहार पहुंची है 8 घंटा 17 मिनट की देरी से
- 11 मई को आनंद विहार पहुंची है 12 घंटे की देरी से
- 12 मई को आनंद विहार पहुंची है 6 घंटा 15 मिनट की देरी से
- 13 मई को आनंद विहार पहुंची है 6 घंटा 20 मिनट की देरी से
लेकिन सीमांचल 11 मई के बाद से आनंद विहार से जोगबनी के लिए हर दिन समय पर खुली है. यह एक बड़ा बदलाव है. खुलती समय पर है, हम खुश होते हैं, मगर रास्ते में लेट हो जाती है. हमारे सहयोगी अजय सिंह वाराणसी स्टेशन पर गए. स्टेशन तो काफी साफ सुथरा हो गया है. स्टेशन पर भीड़ देखकर नहीं घबराना चाहिए, क्योंकि ट्रेन समय से चले या न चले, भीड़ भारतीय रेलवे का अभिन्न हिस्सा है.
अजय सिंह दोपहर बाद चार बजे के करीब वाराणसी स्टेशन पर थे. वहां उन्होंने देखा कि लंबी दूरी की ज़्यादातर ट्रेनें देरी से चल रही थीं. 14004 आनंद विहार-पटना एक्सप्रेस 8 घंटे लेट, 13238 पटना-मथुरा 8 घंटे लेट, 12370 कुंभ एक्सप्रेस 10 घंटे लेट चल रही है. हमने नेशनल ट्रेन इंक्वायरी सिस्टम में जब वाराणसी स्टेशन डाला तो उससे पता चला कि वहां पर आठ घंटे के भीतर 26 ट्रेनें लेट से चलती हुई दिख रही थीं. गोरखपुर शालीमार एक्सप्रेस न्यूनतम 10 मिनट की देरी से चल रही थी और हरिद्वार हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस 12 घंटे 14 मिनट की देरी से चल रही थी. अजय स्टेशन पर ही थे जब गुवाहाटी से इंदौर जाने वाली 19306 10 घंटे की देरी से वाराणसी पहुंची.
अजय सिंह को वाराणसी स्टेशन पर देरी के मारे यात्री अपनी परेशानी इस उम्मीद में बताने लगे कि शायद रेल मंत्री का ध्यान जाएगा और वे देरी से मुक्ति दिलाएंगे. एक परिवार मिला जो छपरा से बीएचयू इलाज के लिए चला था, वो ट्रेन के देरी से चलने के कारण वाराणसी पहुंच कर भी इलाज नहीं करा सका. उन्होंने बताया कि जिनका संपर्क नहीं था वो अस्पताल में अपना नंबर नहीं लगा सके. उनका आना बेकार हो गया.
यही दिक्कत किसी दिन एयरपोर्ट पर हो जाए तो उस दिन चैनल भी नेताओं के बयान छोड़कर हवाई अड्डे पर पहुंच जाएंगे. कोहरे के समय रेल का कवरेज तो हो जाता है मगर आम दिनों में देरी को सामान्य मान लिया जाता है. कोई परवाह भी नहीं करता कि इस देरी से लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ता है. आज हम आपको बताना चाहते हैं कि यूरोप में अगर ट्रेन लेट होती है तो तब यात्रियों को क्या क्या मिलता है, फिर आपको बताएंगे कि भारत में आपकी ट्रेन लेट हो गई, आपका इम्तहान छूट गया तो आपको क्या मुआवज़ा मिलता है.
- सबसे पहले आप जाइये europa.eu की वेबसाइट पर.
- अगर ट्रेन कैंसिल हो गई, लेट हो गई तो आपको समय पर सूचना दी जाए, यह आपका अधिकार है.
- अगर आपको बताया जाए कि आप एक घंटे की देरी से गंतव्य स्थान पर पहुंचेंगे तो आप अपनी यात्रा रद्द कर सकते हैं.
- आपको टिकट का पूरा पैसा मिलेगा या फिर जितनी यात्रा बाकी है उतना पैसा मिलेगा.
- कहीं और से आ रहे हैं और ट्रेन लेट हुई तो मूल स्थान पर वापसी का टिकट मिलेगा.
- अगर रेल लाइन में बाधा है तो आपको वैकल्पिक माध्यमों से पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी.
- खाना और नाश्ता भी दिया जाएगा, रात में रूकने की व्यवस्था होगी.
- अगर आप तय करते हैं कि देरी होने के बाद भी यात्रा करेंगे तो फिर आपको टिकट का 25 प्रतिशत दाम वापस मिलेगा अगर ट्रेन 1 से दो घंटे लेट हो.
- दो घंटे से ज़्यादा की देरी होने पर 50 फीसदी किराया वापस किया जाएगा.
- अगर पहले से देरी के बारे में सूचना दे दी जाएगी तो आपको कुछ नहीं मिलेगा.
17 नवंबर 2017 की एक खबर दुनिया भर में चर्चित हुई थी. जापान में सुकोवो एक्सप्रेस लाइन के प्रबंधकों ने टोक्यो और सुकोवा के बीच चलने वाली ट्रेन के लिए माफी मांगी क्योंकि वह 20 सेकेंड पहले खुल गई थी. जापान में ट्रेन लेट होती है तो हर यात्री को एक सर्टिफिकेट दिया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जापान में सालाना औसत देरी कितनी है. मात्र 0.9 मिनट. बताइये पूरे साल जापान की सारी ट्रेनों का लेट चलने का औसत एक मिनट भी नहीं है. भारत में तो 71 घंटे बाद भी पहुंच कर न तो कोई माफी मांगता है न इस पर नाराज़ होता है. भारत में क्या होता है. क्या हम अपने अधिकार जानते हैं, उसका इस्तमाल करते हैं, क्या इतने अधिकार मिले भी हैं, आखिर हम अधिकारों की बात क्यों नहीं करते हैं. यह मुद्दा क्यों नहीं है, क्यों यात्री 30 से 70 घंटे की यातना भी सहते हैं और बदले में उन्हें कुछ मिलता भी नहीं है.
हम इसके लिए गए http://www.ncr.indianrailways.gov.in पर. अगर आपकी ट्रेन तीन घंटे से ज़्यादा की देरी से चल रही हो तो आप अपना टिकट यात्रा शुरू होने के स्टेशन पर कैंसिल करा सकते हैं. इसके बदले में आपको बिना कटौती के किराया वापस मिलेगा. अगर आप दिल्ली से पटना गए और वहां से हावड़ा की ट्रेन लेनी है, देरी होने के कारण अगर हावड़ा की ट्रेन छूट जाती है तो ऐसी स्थिति में पटना से हावड़ा का किराया वापस हो जाएगा. मगर इसके लिए आपको पटना पहुंच कर तीन घंटे के भीतर टिकट वापस करना होगा.
ये नियम तो है मगर हकीकत यह है कि भारतीय रेल में कंफर्म टिकट मिलना इतना मुश्किल है कि जिसे भी टिकट मिलता है वह लेट होने पर कैंसल नहीं कराता है. रोते गाते तीस घंटे, पचास घंटे बैठकर उसी ट्रेन में जाता है. 18 अप्रैल 2018 के फाइनेंशियल एक्सप्रेस में एक और ख़बर मिली. अगर राजधानी और दुरंतों 20 घंटे के सफर के बाद दो घंटे से ज़्यादा लेट होती है तो यात्री को रेलवे की तरफ से रेल नीर का एक बोतल मुफ्त मिलेगा. बोतल के साथ कप भी होगा. वैसे भी यात्रियों को एक बोतल मुफ्त मिलता है. इस मेहरबानी पर किसका दिल न आ जाए. आम तौर पर राजधानी एक्सप्रेस समय से चलने के लिए जानी जाती है मगर अब ऐसा नहीं है. 11 मई को डिब्रूगढ़ राजधानी जो डिब्रूगढ़ से नई दिल्ली आती है 4 घंटे 38 मिनट लेट थी. etrain.info एक प्राइवेट साइट है. इस पर आप ट्रेन नंबर डालेंगे तो साल भर का रिकॉर्ड देख सकते हैं. शिवांक ने इस साइट पर रिसर्च कर बताया कि डिब्रूगढ़ राजधानी पिछले साल 9 अक्टूबर को 13 घंटे लेट थी. इसके समय से चलने का औसत देखेंगे तो यह ट्रेन 2 घंटे लेट होती है. अगरतला से आनंद विहार आने वाली राजधानी एक्सप्रेस 26 मार्च को 11 घंटे लेट आई. मार्च में तो मौसम ठीक ही होता है. 9 मई को 20501 अगरतला से आनंद विहार आने वाली राजधानी 4 घंटे 35 मिनट की देरी से पहुंची.
एक्सप्रेस ट्रेन लेट है, पैसेंजर ट्रेन लेट है, लोकल ट्रेन का वही हाल है, राजधानी भी कुछ को छोड़ समय पर नहीं पहुंच रही है. राजधानी और दुरंतों के यात्रियों को लेट होने पर एक बोतल पानी फ्री मिल रहा है, लेकिन पेसैजेंर, सुपरफास्ट तो 20-30 घंटे की देरी से चलती है, उनके यात्रियों के लिए पानी का बोलत फ्री क्यों नहीं है.
पटना स्टेशन पर मां अपने बच्चे को जिस नल से पानी पिला रही है, नल से कितना कम पानी आता है. वह एक और नल पर जाती है जहां कुछ लोग पानी भर रहे हैं. नल पिंजरे में बंद है. जब हबीब का कैमरा करीब से देखता है तो पानी की बूंदें टपक रही होती हैं. यह जनाब तो मुश्किल से पानी भर पाए, उसी से गला तर कर लिया. आम लोगों के लिए पानी भी कितनी मुश्किल से टपकता है.
जब आप स्टेशन पर 30 घंटे ट्रेन का इंतज़ार करते हैं तो पानी पर ही कितना खर्च हो जाता होगा. खाने पर कितना खर्च होता होगा. इन सब का हिसाब जोड़ा जाना चाहिए. सिर्फ चिनिया बादाम का खर्चा नहीं जोड़ा जाएगा.
स्टेशन पर एक वेडिंग मशीन लगी है जिससे लोग पानी खरीद रहे हैं. पानी का रेट आप देख लीजिए. 300 एमएल 1 रुपया, अगर बोतल के साथ लेंगे तो 2 रुपया देना होगा. 500 एमल पानी के लिए 3 रुपया, बोतल के साथ 5 रुपया. 2 लीटर के लिए 8 रुपये देने होंगे और अगर बोतल भी लेंगे तो 12 रुपये. ये आईआरसीटीसी का वाटर वेंडिंग मशीन है.
अब सोचिए अगर आप अमृतसर-दरंभगा जननायक एक्सप्रेस से यात्रा कर रहे हों तो आपकी क्या हालत होगी. स्टेशनों से मुफ्त पानी का सिस्टम खत्म होता जा रहा है या कम होता जा रहा है, इतनी भीड़ होती है कि भरते भरते ट्रेन चलने लगती है.
national train enquiry system की वेबसाइट पर आप ट्रेन 15212 जननायक एक्सप्रेस का नंबर डालिए. इसमें औसत देरी का भी एक कॉलम है. उसे क्लिक करेंगे तो पता चलेगा कि अमृतसर दरभंगा जननायक एक्सप्रेस दरभंगा स्टेशन पर पहुंचने की औसत देरी 21 घंटा 38 मिनट है. यह औसत 2 नवंबर 2017 से है. बताइये पिछले छह महीने से यह ट्रेन 21 घंटे 38 मिनट की देरी से दरभंगा पहुंच रही है. हमने अपनी रेल सीरीज़ में इस ट्रेन पर काफी ज़ोर दिया है मगर कोई सुधार नहीं है. 1 मई से 7 मई के बीच इस ट्रेन के दरभंगा पहुंचने का औसत है 20 घंटे 37 मिनट. ये न्यूनतम देरी बता रहे हैं. अधिकतम देरी का समय है 58 घंटे 58 मिनट. ये वाली जानकारी etrain.info की वेबसाइट से निकाली है. 4 मई को कौन सी ट्रेन 58 घंटे 58 मिनट की देरी से पहुंची है, आप इस तरह के सवाल रेल मंत्री से उनके ट्विटर हैंडल पर न करें.
जननायक एक्सप्रेस का उदाहरण इसलिए दिया क्योंकि इस ट्रेन में एक भी एसी कोच नहीं है. सभी जनरल हैं. ज़ाहिर है जब कोई ट्रेन 20 घंटे से लेकर 58 घंटे तक लेट होगी तो मज़दूरों को प्यास भी लगती होगी. क्या रेलवे को राजधानी और दुरंतों की तरह इन्हें पानी की बोतल और खाना नहीं देना चाहिए. अब हम एक ट्रेन का हाल बताते हैं. एक यात्री ने ट्रेन के बारे में सूचना दी और मोबाइल से वीडियो रिकॉर्ड कर भेजा है. यह ट्रेन गोरखपुर से सिवान के बीच चलती है. कुशीनगर तमकूही रोड से होकर गुज़रती है. यात्री ने जो वीडियो भेजा है उससे कोच की हालत तो ठीक दिखती है मगर भीड़ बहुत है.
यह वीडियो दो तीन दिन पहले का है. यात्री ने बताया कि गोरखपुर से खुलने का समय है 5 बजकर 10 मिनट पर, मगर कई घंटे की देरी से खुलती है. इसकी सीट बहुत छोटी है. यात्री खड़े होकर ही चलते हैं. प्राइम टाइम के लिए रिसर्च में मदद कर रहे शिवांक ने ईट्रेन इंफो से बताया कि यह ट्रेन 166 किमी की दूरी 5 घंटे में पूरा करती है. अगर इसके लेट होने का औसत निकालें और फिर रफ्तार का हिसाब करें तो यह ट्रेन औसतन 24 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है यानी की मालगाड़ी के बराबर. 31 मई 2017 को यह ट्रेन 11 किसी प्रति घंटे की रफ्तार से चली है. एक साल में 294 बार लेट हुई है. 12 बार रद्द हुई है. अधिकतम देरी 10 घंटे और औसत देरी 1 घंटा 42 मिनट है. इस ट्रेन में साधारण लोग सफर करते हैं. यात्री भीड़ से भी परेशान हैं. प्राइम टाइम के ज़रिए यात्री चाहते हैं कि रेल मंत्री इसे देखें और कुछ करें. भीड़ कम करने के लिए एक और रेल चला दें या फिर कोच बढ़ा दें.
क्या आप जानते हैं कि रेल गाड़ी चलाने वाले लोको पायलट 14 मई, 15 मई और 16 मई को काला दिवस मना रहे हैं. इनके प्रदर्शन का नाम है मुण्डी गरम प्रदर्शन. ये लोग चाहते हैं कि इंजन में एसी की व्यवस्था हो क्योंकि तेज़ गर्मी में हालत खराब हो जाती है.
इनकी कुछ मांगें हमारी समझ से बाहर हैं क्योंकि हम लोको पायलट की व्यवस्था को नहीं जानते हैं. ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ संघ के उत्तरी क्षेत्र के अध्यक्ष परमजीत सिंह ने कहा कि 7वें वेतन आयोग के हिसाब 100 किमी पर 848 रुपया भत्ता मिलना चाहिए जबकि मिलता है 250 रुपया. इनका दावा है कि लोको पायलट के लिए मंज़ूर पदों की संख्या एक लाख है मगर इस वक्त 85,000 लोको पायलट हैं. 15000 की कमी के कारण इन्हें 10 घंटे से ज़्यादा काम करना पड़ा है. गाड़ी चलाने के लिए ठीक नहीं है. 6-7 दिनों की नाईट ड्यूटी दी जाती है. कई बार हफ्ते की छुट्टी भी नहीं मिलती है. इन्होंने एक पर्चा निकाला है. इसमें लिखा है कि अधिकारी के मुंडी का तापमान 19 डिग्री सेल्सियस होता है यानी वे एसी में काम करते हैं और रेल इंजन के पायलट की मुंडी का तापमान 58 डिग्री सेल्सियस होता है क्योंकि वे बिना एसी के काम करते हैं. जबकि रेल बजट में इंजन में एसी लगाने का प्रावधान किया गया है. धरना प्रदर्शन का नाम ही विचित्र है. मुण्डी गरम. प्रदर्शन का ऐसा नाम तो मैंने भी कभी नहीं सुना था.
This Article is From May 14, 2018
क्या रेलयात्री अपने अधिकारों पर ज़ोर देते हैं?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मई 14, 2018 23:28 pm IST
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Published On मई 14, 2018 23:28 pm IST
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Last Updated On मई 14, 2018 23:28 pm IST
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