साल: 1995
जगह: मेरठ
सिनेमाहाल: निशात
इस साल अक्टूबर के करीब तीसरे हफ्ते और सर्दियों की शुरुआत में एक तूफान आया और यह पूरे देश को ही नहीं, समूची दुनिया को अपने साथ बहा कर ले ले गया! इस महीने में भारत के अलग-अलग शहरों की तरह मेरठ शहर का भी मानो हर रास्ता अपनी मंजिल (बेगमपुल) की तरफ जा रहा था! बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों की भीड़ सुबह से शाम तक एक ही ट्रैक पर होती थी! और यह रास्ता एक जगह जाकर बंद हो जाता था! निशात सिनेमा! तूफान का नाम था "दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे."
उस साल मैं 11वीं कक्षा में था और क्रिकेट किटबैग में एक जोड़ी कपड़े अलग से रखे होते थे. जाना होता था स्टेडियम, लेकिन प्रैक्टिस कई बार दिल वाले दुल्हनिया की पिच पर होती थी! फिजा और माहौल में सुबह-शाम एक अलग ही खुमारी तैरती रहती थी. "तुझे देखा तो ये जाना सनम", "मेहंदी लगा के रखना", "जरा सा झूम लू मैं"...और हर शख्स कोई इस खुमारी में बह गया! यह फिल्म भारतीय सिनेमा सहित कई लोगों मतलब यशराज बैनर, निर्देशक आदित्य चोपड़ा और शाहरुख खान के करियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुई! अमिताभ बच्चन के बाद भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सुपरस्टार शाहरुख खान का करियर इस फिल्म की सफलता से 360 के कोण पर घूम गया! मंगलवार (20 अक्टूबर) को 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की रिलीज को पूरे 25 साल हो जाएंगे, लेकिन आज भी यह फिल्म किसी ताजे हवा के झोंके की तरह है. और किसी भी दौर में ताजे हवा के झोंके की तरह रहेगी! ठीक सर विव रिचर्ड्स और सचिन तेंदुलकर की बैटिंग की तरह. जब-जब किसी भी दौर की युवा पीढ़ी इस फिल्म को देखेगी, तो इसकी खुशबू में तर-बतर हो जाएगी! फिल्म से जुड़े अनगित तमाम किस्से और कहानियां हैं!
1. लीड हीरो की कास्टिंग को लेकर पिता-पुत्र में मतभेद: पिता यशराज चोपड़ा और बेटे आदित्य के बीच लीड रोल की कास्टिंग को लेकर शुरुआत से ही मतभेद रहे. स्व. यश चोपड़ा फिल्म में सैफ अली खान को लेना चाहते थे, लेकिन आदित्य चोपड़ा की पसंद शाहरुख खान थे. सैफ अली खान का नाम लगभग फाइनल हो गया था. प्रोडक्शन हाउस के भीतर सैफ के ट्रायल पोस्टर भी काम हुआ, लेकिन सैफ ने फिल्म से जुड़ने से भी इनकार कर दिया. बहरहाल, स्लॉग ओवरों (आखिरी दौर) में आदित्य चोपड़ा पिता को शाहरुख के लिए राजी करने में कामयाब रहे.
2. चौथी मीटिंग में शाहरुख राजी हुए: आदित्य चोपड़ा को शाहरुख खान को लीड रोल के लिए मनाने में महीनों लग गए. कारण यह था कि किंग खान की गाड़ी निगेटिव रोल पर दौड़ रही रही थी. 'बाजीगर', 'डर' की कामायाबी से शाहरुख पहले से ही आसमान पर उड़ रहे थे! और शाहरुख इसी ट्रैक पर दौड़ना चाहते थे. वह रोमांटिक रोल के लिए राजी नहीं हो रहे थे. तीन मुलाकातों के दौर में भी आदित्य चोपड़ा, शाहरुख खान की 'हां' नहीं नहीं ले सके, लेकिन चौथी मीटिंग में आदित्य चोपड़ा ने शाहरुख को राजी कर लिया
3. इस बात से शाहरुख ने की "हां": आदित्य चोपड़ा शाहरुख खान को तीन मीटिंग में इस भूमिका के लिए राजी करने में नाकाम रहे थे. और चौथी मीटिंग में जब आदित्य चोपड़ा ने कहा-"जब तक देश की मां-दादियों सहित हर महिला के दिल में जगह नहीं बनाओगे, तब तक सुपरस्टार नहीं बन पाओगे." यह लाइन कितनी अहम थी, यह पूरी फिल्म के दौरान इसके मिजाज में साफ झलकता है. इस बात को किंग खान ने समझा और इस चौथी मीटिंग में उन्होंने लीड रोल के लिए हां कर दी.
4. यशराज ने किया गाना देखने से इनकार: सबसे पहले फिल्म केपहले गाने शूट किए गए और स्विट्जरलैंड में फिल्म का पहला गाना शूट किया गया-जरा सा झूम लू मैं, ना-रे, ना-रे, ना. जब गाना शूट होने के बाद आदित्य ने पिता से गाना देखने के लिए कहा, तो उन्होंने देखने से इनकार कर दिया. यशराज ने कहा-"अब शो-रील पर तुम्हारा सहायक निर्देशक का नाम नहीं रहेगा, बल्कि अब तुम पूर्ण निर्देशक के रूप में काम करोगे. अब तुम अपनी रचनात्मकता के हिसाब से फिल्म बनाओ. मैं बाद में पूरी फिल्म देखूंगा" कहते हुए पिता ने पूरी फिल्म बेटे आदित्य के हवाले कर दी.
5. सरोज खान ने आदित्य का लोहा माना: दिवंगत नृत्य निर्देशक सरोज खान फिल्म निर्माण के ज्यादातर हिस्से तक फिल्म से जुड़ी रहीं, लेकिन आदित्य चोपड़ा से रचनात्मकता टकराव के कारण फिल्म के आखिरी हिस्से में फराह खान ने सरोज खान की जगह ले ली. फिल्म के सुपर-डुपर हिट होने के बाद सरोज खान ने आदित्य चोपड़ा से माफी मांगते हुए कहा, "आदित्य की सोच उनसे कहीं आगे की थी और वह सही थे." बहरहाल, सरोज खान ने फिर कभी यशराज बैनर के साथ काम नहीं किया.
6. ड्रेस को लेकर मनीष मल्होत्रा से विवाद: 'मेंहदी लगा के रखना गाने' के फिल्मांकन पर काजोल की ड्रेस को लेकर आदित्य चोपड़ा और ड्रेस डिजायर मनीष मल्होत्रा के बीच विवाद हुआ. मनीष काजोल के अलग रंग का लहंगा और ड्रेस पहने के पक्षधर थे, लेकिन आदित्य चाहते थे कि पूरे गाने में ड्रेस का रंग सिर्फ हरा ही हो. वजह थी गाने के शब्द मेहंदी. आखिर में "बॉस" आदित्य की ही चली और काजोल पर यह गाना हरे रंग की ड्रेस में ही फिल्माया गया.
7. पहली बार फिल्म की मेकिंग का दूरदर्शन पर शो: निर्देशक आदित्य चोपड़ा ने शूटिंग खत्म होने के बाद हॉलीवुड की तर्ज पर आधे घंटे की डॉक्युमेंट्री बनाने का फैसला किया. पहले भारतीय सिनेमा में ऐसा कभी नहीं हुआ था. करण जौहर और उदय चोपड़ा को इसकी जिम्मेदारी दी गई क्योंकि ये दोनों काफी बारीकी और गहराई से फिल्म निर्माण की प्रक्रिया से जुड़े हुए थे. फिल्म रिलीज होने से दो दिन पहले (18 अक्टूबर, 1995) को इस फिल्म निर्माण डॉक्युमेंट्री को दूरदर्शन पर दिखाया गया.
8. अकूत कमाई और शाहरुख बन गए 'किंग': उस दौर में इस फिल्म के निर्णाण पर करीब चार करोड़ रुपये का खर्चा आया था. और अभी तक यह फिल्म दुनिया भर में करीब 122 करोड़ रुपये की कमाई कर चुकी है. मतलब लागत से कई गुना. पैसे और कद के लिहाज से इसका सबसे बड़ा फायदा शाहरुख खान को हुआ. फिल्म की कामयाबी ने शाहरुख को सुपरस्टार के रूप में पूरी तरह स्थापित कर दिया. निगेटिव से उनका जोन रोमांस में तब्दील हो गया और फिल्म की कामयाबी ने उनके 'रोमांटिक किंग' बनने की दिशा में अग्रसर कर दिया. साथ ही, एक बड़ा असर यह रहा कि उदारीकरण और वैश्वीकरण के आगे बढ़ने के दौर में देश-विदेश की तमाम बड़ी कंपनियां शाहरुख के दरवाजे पर उन्हें अपना ब्रांड एंबेसडर बनाने के लिए कतार में खड़ी थीं. आदित्य चोपड़ा की बात दो सौ फीसदी सही साबित हुयी. शाहरुख भारत की मां-दादियों सहित महिलाओं के दिल में बस चुके थे! एक इंटरव्यू में शाहरुख कहते हैं- "उम्मीद थी कि पैसा आएगा, पर इतना आएगा, यह कभी नहीं सोचा था. यह तो कुछ जरूरत से ज्यादा ही हो गया."
मनीष शर्मा Khabar.Ndtv.com में बतौर डिप्टी न्यूज एडिटर कार्यरत हैं
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.