दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम ने दिल्ली में राजनीति की हवा ही नहीं बदल दी, बल्कि भारतीय राजनीति में 2011 से शुरू हुए एक राजनीतिक प्रयोग पर विराम लगा दिया. खास बात ये है कि भारतीय राजनीति के इस प्रय़ोग पर विराम लगाने का काम उसी मिडिल क्लास ने किया, जिसने इस प्रय़ोग को करने की हिम्मत औऱ ताकत अरविंद केजरीवाल को दी थी. दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से 48 सीटों पर जीत हासिल करके, 27 साल बाद भाजपा दिल्ली की सत्ता में वापसी कर रही है तो राजनीति की स्टार्टअप आम आदमी पार्टी पहली बार विपक्ष में बैठने जा रही है. लेकिन इस विपक्ष का नेतृत्व भी उस व्यक्ति के हाथ में नहीं होगा, जिसने दिल्ली में यह प्रयोग शुरू किया था क्योंकि अरविंद केजरीवाल खुद अपना चुनाव मिडिल क्लास के गढ़ नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से ही हार गए हैं. मिडिल क्लास से निकल कर राजनीति का स्टार्टअप शुरू करने वाले केजरीवाल को चुनाव से ठीक पहले सबसे ब़ड़ा झटका उस समय लगा, जब 1 फरवरी को देश का बजट पेश किया गया. दरअसल इस बजट ने केजरीवाल के पराभव में आखिरी कील ठोकने का काम किया.
अब सवाल यह है कि आखिर मिडिल क्लास ने केजरीवाल का साथ क्यों छोड़ दिया. इसे समझने के लिए आप 2011 का वो आंदोलन याद कीजिए, जब जनलोकपाल आंदोलन के रथ पर सवार होकर केजरीवाल दिल्ली में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचे थे. यहां ये समझना जरूरी है कि इस आंदोलन के पीछे सबसे बड़ी ताकत मिडिल क्लास ने ही झोंकी थी. लेकिन बीते दस सालों में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में सत्ता पर पकड़ को मजबूत बनाए रखने के लिए मुफ्त की राजनीति का रास्ता पकड़ लिया. इसके साथ ही भ्रष्टाचार औऱ कुशासन के आरोप से भी घिरते चले गए, जिससे मिडिल क्लास केजरीवाल के मॉडल में हाशिए पर चला गया. हाशिए पर धकेले गए मिडिल क्लास के गुस्से ने केजरीवाल की राजनीति को पूरी तरह से जमींदोज करने का काम किया. बड़ी बात ये है कि इस गुस्से को सबसे अधिक ताकत केन्द्र सरकार के ताजा बजट ने दी. यह वह ताकत थी, जो केजरीवाल के जनलोकपाल आंदोलन से भी मिडिल क्लास ने महसूस नहीं की थी.
बजट ने मिडिल क्लास को कैसे दी ताकत
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में 2025-26 के बजट को पेश करते हुए ये एलान किया कि 12 लाख रुपए तक सालाना कमाने वाले व्यक्ति से कोई आयकर नहीं लिया जाएगा. इसका सीधा मतलब है कि हर महीने करीब एक लाख रुपए तक कमाने वालों की पूरी कमाई टैक्स फ्री हो गई. अभी तक सात लाख रुपए तक की आय ही टैक्स फ्री थी. इस तरह से एक ही झटके में केन्द्र सरकार ने छूट वाली आय सीमा को पांच लाख रुपए और बढ़ा दिया. अरविंद केजरीवाल भी मिडिल क्लास के हाथों में पैसे की ताकत को समझते थे, इसलिए उन्होंने 22 जनवरी को मिडिल क्लास के लिए घोषणा पत्र जारी करते हुए यह मांग रखी थी कि मिडिल क्लास के लिए टैक्स फ्री आय की सीमा को दस लाख तक किया जाना चाहिए. अब यहां ये समझना जरूरी है कि पूर्व आईआरएस अधिकारी रह चुके केजरीवाल भी विपक्षी नेता के रूप में 10 लाख रुपये तक ही टैक्स फ्री करने की मांग रख पाए. लेकिन केन्द्र सरकार ने मिडिल क्लास की जरूरत और आकांक्षाओं को देखते हुए टैक्स फ्री आय की सीमा को 12 लाख रुपए तक कर दिया.
दिल्ली का “सुपर पावर”
दिल्ली की चुनावी जंग में मिडिल क्लास ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की है. मिडिल क्लास की इस भूमिका का सबसे बेहतर उदाहरण अरविंद केजरीवाल का नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र ही है. नई दिल्ली विधानसभा सीट पर आधे से भी अधिक मतदाता सरकारी नौकरी करने वाले हैं. 2020 में इस सीट पर 1,46,000 मतदाता थे, जो इस बार करीब 1,90,000 रहे. यहां पर कुछ झुग्गी बस्तियों को छोड़कर अधिकतर क्षेत्र में मिडिल क्लास औऱ अपर मिडिल क्लास के मतदाता रहते हैं. इन्हीं मतदाताओं की ताकत पर 2020 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल ने 61.10 प्रतिशत और 2015 के चुनाव में 64.34 प्रतिशत मत हासिल किए थे. 2020 में अरविंद केजरीवाल ने लगभग 46 हजार मत इस क्षेत्र पाए थे और भाजपा के उम्मीदवार को 21 हजार मतो से हराया था, लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को मात्र 25 हजार मत ही मिले और वह भाजपा के उम्मीदवार प्रवेश वर्मा से 4089 मतों से हार गए.
विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिस तरह से जबरदस्त जीत मिली है उससे साफ है कि मिडिल क्लास ने दिल्ली में पूरी तरह से आम आदमी पार्टी का साथ नहीं दिया. चुनाव आयोग के ताजा आंकडों के अनुसार दिल्ली में कुल मतदाताओं की संख्या 1.55 करोड़ है और इनमें 45 प्रतिशत मतदाता मिडिल क्लास से आते हैं. इसका सीधा मतलब है कि करीब 70 लाख मतदाता मिडिल क्लास से आते हैं. जिस तरह से केन्द्र सरकार ने 12 लाख रुपए की सालाना आय पर कोई टैक्स न लेने का एलान किया, उसका सीधा फायदा करीब 10 लाख मतदाताओं यानि चार लाख परिवारों पर मिला, जो केन्द्र और दिल्ली सरकार के कर्मचारी हैं. बजट से मिडिल क्लास के मतदाताओं को मिली ताकत का प्रभाव परिणामों में स्पष्ट देखने को मिला. दिल्ली का यह वही मिडिल क्लास है, जिसने 2011 में अरविंद केजरीवाल के जनलोकपाल आंदोलन में भ्रष्टाचार के खिलाफ बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था और 2013 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंका था. अरविंद केजरीवाल इस मिडिल क्लास की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए मुफ्त शिक्षा, मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी की योजना को लेकर आए, ताकि उनके हाथों में वह ताकत दी जा सके, जो कांग्रेस के समय भ्रष्टाचार के आरोपों ने छीन ली थी. लेकिन लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके केजरीवाल राजनीति के गुणा भाग में इतने उलझ गए कि उनकी सत्ता के अर्थशास्त्र में मिडिल क्लास हाशिए पर चला गया और धर्म, जाति और गरीब के वोट को साधने का अर्थशास्त्र हावी हो गया.
केजरीवाल ने अपनी छवि ध्वस्त की
अरविंद केजरीवाल ने जिस कट्टर ईमानदार की छवि के साथ मिडिल क्लास को उत्साहित किया था, वह छवि भी शराब घोटाले में जेल जाने से पूरी तरह दागदार हो गई. दिल्ली के मिडिल क्लास की बढ़ती नाराजगी को अरविंद केजरीवाल भी समझ चुके थे, तभी उन्होंने चुनाव से कुछ दिन पहले 22 जनवरी को मिडिल क्लास के लिए एक घोषणा पत्र जारी करते हुए मिडिल क्लास को “सुपर पवार” कहा था. उन्होंने कहा " देश के असली सुपर पावर 'मिडिल क्लास' को पहचानें और अगला बजट मिडिल क्लास को समर्पित करते हुए शिक्षा व स्वास्थ्य का बजट बढ़ाकर 10 फीसदी, निजी स्कूलों की फीस पर कंट्रोल, आयकर की छूट 10 लाख रुपए और जरूरी वस्तुओं से जीएसटी खत्म करे." वह जानते थे कि दिल्ली का मिडिल क्लास कैसे पिछले दस सालों से ठगा महसूस कर रहा है. उन्होंने इसी प्रेस कान्फ्रेंस में कहा ‘'एक के बाद दूसरी सरकार आई और सबने मिडिल क्लास को दबाकर, निचोड़कर रखा है. मिडिल क्लास के लिए कुछ किया नहीं जाता है, लेकिन जब सरकार को जरूरत पड़ती है, सरकार मिडिल क्लास पर टैक्स का हथियार, चाकू चला देती है. मिडिल क्लास सरकार के लिए एटीएम बनकर रह गया है. भारत का मिडिल क्लास टैक्स टेररिज्म का शिकार है. मिडिल क्लास के क्या सपने होते हैं, वो अपने लिए एक अच्छी नौकरी-बिजनेस, बच्चों के लिए शिक्षा और परिवार के लिए अच्छा स्वास्थ्य चाहते हैं. इसके लिए वह पूरी जिंदगी मेहनत करते हैं और सरकार से थोड़ी राहत की अपेक्षा करते हैं. लेकिन सरकारें ना उनके लिए अच्छे स्कूल बना रही हैं, ना अच्छे अस्पताल और ना रोजगार दे पा रही हैं.‘' दरअसल इस बयान के जरिए केजरीवाल दिल्ली के उस मिडिल क्लास की हकीकत बता रहे थे, जिसका प्रतिनिधित्व वो खुद पिछले तीन चुनावों से कर रहे थे. लेकिन वही मिडिल क्लास लगातार ठगा हुआ महसूस कर रहा था और अब जब चुनाव में मौका मिला तो इस मिडिल क्लास ने अरविंद केजरीवाल को हराने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी.
वैसे केन्द्र सरकार ने सिर्फ बजट के जरिए ही मिडिल क्लास को आर्थिक ताकत देने का काम नहीं किया, बल्कि बजट में छूट से कुछ दिन पहले आठवां वेतन आयोग बनाने की भी घोषणा करके अरविंद केजरीवाल की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. केन्द्र सरकार के इन दोनों एलान से मिडिल क्लास के हाथों को जो ताकत मिली, उसने दिल्ली ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति के रंग को पूरी तरह से बदल दिया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं, आर्टिकल में लिखी बातें लेखक के निजी विचार है.)