शोभा डे आप ट्विटर की गोल्‍ड मेडलिस्‍ट हैं, ओलिंपिक को छोड़ दें...

शोभा डे आप ट्विटर की गोल्‍ड मेडलिस्‍ट हैं, ओलिंपिक को छोड़ दें...

रियो ओलिंपिक गए खिलाड़ियों पर शोभा डे के ट्वीट से बवाल (फाइल फोटो)

हम ओलिंपिक में खराब प्रदर्शन इसलिए नहीं करते, क्‍योंकि हमारे खिलाड़ियों में दमखम की कमी है. बल्कि इसलिए क्‍योंकि हम उन्‍हें वह माहौल और प्रशिक्षण ही नहीं दे पाते जो मिलना चाहिए. सोमवार को ही NDTV की एक रिपोर्ट में यह दिखाया गया था कि झारखंड में निशानेबाज कैसे ट्रेनिंग हासिल करते हैं. अभिनव बिंद्रा और उनके पिता से मेरी एक छोटी सी मुलाकात है. तब जब उन्‍होंने ताजा-ताजा गोल्‍ड जीता था. अभिनव बेहद ही सौम्‍य और शांत स्‍वभाव के हैं. गोल्‍ड जैसी कामयाबी भी उन्‍हें उत्‍तेजित नहीं करती, लेकिन उनके पिता मुखर हैं. अच्‍छा होता कि वह शोभा डे को जवाब देते. जैसे उस वक्‍त उन्‍होंने हमें दिए थे. ...कि खिलाड़ी सरकार नहीं अपने दम पर बनते हैं. सरकार तो बस अपनी टकसाल का टैग उन पर चस्‍पा कर देती है... उन्‍होंने कहा था ‘हमने कभी सरकार की ओर नहीं देखा, मैं बस अपने बेटे के सपने की ओर देखता था. यह गोल्‍ड बेटे की अथक मेहनत और करोड़ों रुपए से आया था. शूटिंग कितनी महंगी है, आप लोग जानते हैं?’   
 


अभिनव के पिता सक्षम हैं तो उन्‍होंने अपने दम पर अभिनव को सब दिया, लेकिन बाकी का क्‍या. जरा सोचिए क्‍या किसी दूसरे देश में ऐसे हादसे होते हैं, जैसे साई (हरियाणा) में हुए. नरसिंह के खाने में कोई कुछ मिला गया! कौन नरसिंह, जिसके दम पर हम गोल्‍ड के सपने देख रहे हैं. फि‍र एक और गोल्‍ड की आस, योगेश्‍वर ने कहा, ‘मैं तो वहां का खाना और पानी तक नहीं पीता.’ यह सब उस सेंटर में हो रहा था, जिसका काम ही खिलाडि़यों की देखभाल है.

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उस पर किसी को शर्म नहीं आती. पता नहीं शहरी और कुलीन चिंताओं में व्‍यस्‍त रहने वाली शोभा डे को उन पर कितनी शर्म आई थी. सारा संकट बिना विषय को जाने सब री-ट्वीट कमाने का है, ट्रेंड करने का है. सुर्खियों में रहने का है. इस तरह देखेंगे तो हम समझ जाएंगे कि शोभा अपनी कलम से अधिक दरअसल ट्विटर और सोशल मीडिया की गोल्‍ड मेडलिस्‍ट हैं. बेहतर होगा कि हमारे खिलाड़ी ओलिंपिक पर ध्‍यान दें और ट्विटर को शोभाजी के लिए छोड़ दें, क्‍योंकि वह वहां की चैंपियन हैं...

दयाशंकर मिश्र khabar.ndtv.com के संपादक हैं।

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