@DeShobhaa that's a tad unfair. You should be proud of your athletes perusing human excellence against the whole world.
— Abhinav Bindra (@Abhinav_Bindra) August 9, 2016
अभिनव के पिता सक्षम हैं तो उन्होंने अपने दम पर अभिनव को सब दिया, लेकिन बाकी का क्या. जरा सोचिए क्या किसी दूसरे देश में ऐसे हादसे होते हैं, जैसे साई (हरियाणा) में हुए. नरसिंह के खाने में कोई कुछ मिला गया! कौन नरसिंह, जिसके दम पर हम गोल्ड के सपने देख रहे हैं. फिर एक और गोल्ड की आस, योगेश्वर ने कहा, ‘मैं तो वहां का खाना और पानी तक नहीं पीता.’ यह सब उस सेंटर में हो रहा था, जिसका काम ही खिलाडि़यों की देखभाल है.
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उस पर किसी को शर्म नहीं आती. पता नहीं शहरी और कुलीन चिंताओं में व्यस्त रहने वाली शोभा डे को उन पर कितनी शर्म आई थी. सारा संकट बिना विषय को जाने सब री-ट्वीट कमाने का है, ट्रेंड करने का है. सुर्खियों में रहने का है. इस तरह देखेंगे तो हम समझ जाएंगे कि शोभा अपनी कलम से अधिक दरअसल ट्विटर और सोशल मीडिया की गोल्ड मेडलिस्ट हैं. बेहतर होगा कि हमारे खिलाड़ी ओलिंपिक पर ध्यान दें और ट्विटर को शोभाजी के लिए छोड़ दें, क्योंकि वह वहां की चैंपियन हैं...
दयाशंकर मिश्र khabar.ndtv.com के संपादक हैं।
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