बहुत छोटा था मां के साथ टीवी पर इंदिरा गांधी के अंतिम संस्कार का लाइव टेलीकास्ट देख रहा था। मौत होने का मतलब ही रोना होता है। कस्बाई शहर में रहते हुए रोने का पहला सबक यही सीख पाया था। लेकिन जब राजीव गांधी और सोनिया गांधी को काला चश्मा पहनकर उस भावुक लम्हे पर टीवी स्क्रीन पर देखा। तो उस पहले सबक में कुछ गलती दिखी, सोचा बड़े लोग शायद भावुक तो होते हैं लेकिन वो रोते दिखना नहीं चाहते हैं।
हो सकता है इससे उनकी ताकतवर नेता की छवि पर दाग पहुंचता हो। जिंदगी के बड़ेपन में रोना किसी दूध के दांत जैसे गायब हो जाते हैं। चाची का बात-बात पर रो देना, दिल्ली आते वक्त मां का रो देना। उनके रोने के जवाब में मेरे चेहरे पर भावुकता आ जाती है। लेकिन आंसू आंखों की दहलीज नहीं पार कर पाते हैं। लोग क्या सोचेंगे का संकोच रोने नहीं देता है। लेकिन दिल्ली की राजनीति ने रोने के कई मायनों से मुझे अवगत कराया।
मौत, तमाशा, राजनीति और टीवी शो के बाद अब रोना देखकर लगता है कि नई राजनीति की शुरुआत हो गई है। देश सचमुच इंदिरा और राजीव गांधी के समय काल से निकलकर नरेंद्र मोदी, गिरीराज सिंह, राखी सांवत, आशुतोष के रोने के समयकाल पर पहुंच गया है। शायद राहुल गांधी रोना अब भी नहीं सीख पाए हैं, इसलिए उनके बांह मरोड़ेने को कोई तवज्जों भी नहीं देता है। 2012 में जब बराक ओबामा जीते तो अपने कार्यकर्ताओं का धन्यवाद देते वक्त वो रो पड़े।
बाकायदा राष्ट्रपति के स्टाफ को जवाब देना पड़ा, रोना कमजोरी की निशानी है बल्कि एक राजनीतिक ताकत है। दुनिया में बीते 20 साल से रोने की राजनीति हो रही है। हार या जीत के मौके पर रोकर पश्चिमी देशों के नेताओं ने या तो समय-समय पर ताकत बटोरी है या बेचारा बनकर माफी पाने की संवेदनाएं जुटाई हैं।
अभी हाल में जापान के एक नेता नानूमूरा से जब एक साल में 109 बार विदेश यात्रा का विवरण पूछा गया
तो प्रेस कांन्फ्रेस में रोने लगे। राजनीतिक रणनीति के लिए अगर किसी नेता ने रोने को हथियार बनाया। तो इसका श्रेय अब्राहम लिंकन को जाता है। वो अपने भाषण में आंसू इस कदर लाते कि उससे सुनने वाला भावुक हो जाता था।
नेता के लिए रोना कमजोरी के झणों में एक राजनीतिक रणनीति ज्यादा रहा है। जिस नेता ने अपनी राजनीतिक मजबूती के लिए इसका फायदा उठा लिया वो महान बन गया। बाकी अभी प्रयोग की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन शुक्र है अब लोग इस रोने पर भावुक नहीं होते हैं। कैमरे के सामने रोने के कई वाकए होने के बावजूद मैंने किसी को भावुक होते तो नहीं देखा गाली देते जरूर सुना है। कृपया लोगों के भावुक होने के लिए ना तो आत्महत्या करें और ना ही राजनीति चमकाने के लिए रोएं।
शकील बंदायूनी का शेर है..
ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया
यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
This Article is From Apr 25, 2015
राजनीति की झूठी कहानी पर रोए
Ravish Ranjan Shukla, Digpal Singh
- Blogs,
-
Updated:अप्रैल 25, 2015 10:48 am IST
-
Published On अप्रैल 25, 2015 10:42 am IST
-
Last Updated On अप्रैल 25, 2015 10:48 am IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
इंदिरा गांधी, लाइव टेलीकास्ट, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, रोना, राजनीति, Crying, Politicians, Rajiv Gandhi, Ashutosh