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This Article is From Aug 31, 2016

महिलाओं के विरुद्ध अपराध... जारी है कहानी...

Sachin Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 31, 2016 07:31 am IST
    • Published On अगस्त 31, 2016 06:42 am IST
    • Last Updated On अगस्त 31, 2016 07:31 am IST
राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो की नवीनतम जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 में भारत में महिलाओं के साथ अपराध के कुल 327394 मामले दर्ज किए गए. महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा अपराध उत्तरप्रदेश में (35527) दर्ज हुए. इसके बाद पश्चिम बंगाल (33218), महाराष्ट्र (31126), राजस्थान (28165), मध्यप्रदेश (24135) का स्थान आया है. बड़े राज्यों में तमिलनाडु में सबसे कम मामले (5847) मामले दर्ज हुए.

जिस तरह के अपराध महिलाओं के साथ दर्ज हो रहे हैं, वे इस बात का संकेत हैं कि भारतीय समाज में लैंगिक भेदभाव की जड़ें अब तक हिल नहीं पा रही हैं. इन आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध की श्रेणियों में बलात्कार, शादी के लिए अपहरण और पति/पति के रिश्तेदारों के द्वारा की गई हिंसा सबसे बड़ा हिस्सा बनते हैं.

यह भी तय है कि महज़ पुलिस की भूमिका को केंद्र में रखकर महिलाओं के लिए समाज को सुरक्षित नहीं बनाया जा सकता है. हमें लैंगिक रूप से संवेदनशील सामाजिक और कानूनी न्याय व्यवस्था की जरूरत है. भारत जिस तरह की शिक्षा और सामाजिक व्यवहार का शिकार है, उसमें लैंगिक भेदभाव के चरित्र को बदलने की ठोस पहल करने की जद्दोजहद में जुटना जरूरी है.  

पति या उनके रिश्तेदारों द्वारा की गई हिंसा
सात प्रतिशत की वृद्धि दर से विकास कर रहे भारत देश में महिलाओं के साथ होने वाले तमाम अपराधों में से एक तिहाई (113403) मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए यानी पति या उनके रिश्तेदारों द्वारा की गई हिंसा के बिंदु के तहत दर्ज किए गए हैं. इस श्रेणी में सबसे ज्यादा 20163 मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए हैं. दूसरे स्थान पर राजस्थान (14383) आता है. देवियों के देश में दहेज प्रताड़ना के 9894 मामले दर्ज हुए. उत्तरप्रदेश में 2766, बिहार में 1867, झारखंड में 1552 और कर्नाटक में 1541 मामले दर्ज हुए.

महिलाओं का अपहरण
अपहरण के दर्ज मामलों की कुल संख्या 59277 रही है. महिलाओं के अपहरण के सबसे ज्यादा मामले उत्तरप्रदेश में (10135) दर्ज हुए हैं. इसके बाद बिहार में 5158, महाराष्ट्र में 5096, असम में 5039 और मध्यप्रदेश में 4547 मामले दर्ज हुए. उल्लेखनीय है कि महिलाओं के अपहरण का सबसे बड़ा कारण उन्हें शादी के मजबूर करना पाया गया. अपहरण के 31715 (53.60 प्रतिशत) मामलों में महिलाओं का अपहरण ही शादी के लिए किया गया. वर्ष 2014 में ऐसे मामलों की संख्या 30874 थी, यानी इस कारण से किए गए अपहरणों की संख्या में वृद्धि हुई है.

बलात्कार
मध्यप्रदेश एक राज्य और एक समाज के रूप संक्रमणकाल से गुजर रहा है. एक ऐसा राज्य जो बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित रहा. जहां सुनामी और समुद्री तूफानों का खौफ नहीं होता. आदिवासी परंपरा से समृद्ध समाज, जिसके पास संसाधनों की ऐसी ताकत है, जिस पर वह गर्व कर सकता है; लेकिन राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो (एनसीआरबी) ने जब 30 अगस्त 2016 को भारत में अपराधों के आकंड़े जारी किए, तो मध्यप्रदेश का एक दुखदायी पक्ष उभरकर सामने आता है. यहां महिलाओं के साथ बलात्कार  के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए.

एनसीआरबी के मुताबिक भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार के कुल 34651 मामले दर्ज हुए. यानी देश में हर घंटे बलात्कार के कहीं न कही चार मामले दर्ज होते हैं. इनमें से सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले मध्यप्रदेश (4391) में दर्ज हुए हैं. इसके बाद महाराष्ट्र (4144), राजस्थान (3644) और फिर उत्तरप्रदेश (3025) का स्थान आता है. ओडिशा में बलात्कार के 2251 मामले दर्ज हुए हैं.

देश में ऐसे सबसे कम मामले छोटे राज्यों सिक्किम (5), नागालेंड (35), मणिपुर (46), मिजोरम (58) दर्ज हुए हैं.
पिछले साल (यानी एनसीआरबी की 2014 की रिपोर्ट) भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार के 36735 मामले दर्ज हुए थे. इस मान से एक साल में 2084 मामलों की कमी दिखाई गई है. मध्यप्रदेश में वर्ष 2014 (5076) की तुलना में कम मामले दर्ज हुए हैं. देश में सामूहिक बलात्कार के दर्ज मामलों की संख्या 2016 थी. इनमें से सबसे ज्यादा 458 मामले उत्तरप्रदेश में और 411 मामले राजस्थान में दर्ज हुए.

आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार
आज जाति-सामाजिक अस्मिता का सवाल बिलकुल खुले रूप में सामने है. आर्थिक विकास का आभामंडल छुआछूत और गैर-बराबरी के सच को छिपा नहीं पाया. अपने समाज में दलितों और आदिवासियों के साथ अमानवीय दुर्व्यवहार का चलन बदस्तूर जारी है.

भारत में दर्ज हुए बलात्कार के कुल मामलों (34651) में से 952 अनुसूचित जनजाति की महिलाओं और 2326 अनुसूचित जाति की महिलाओं के साथ होने की बात सामने आई है. इन दोनों ही मामलों में यह दिखाई देता है कि दलितों और आदिवासी महिलाओं के सम्मान की सुरक्षा के लिए एक सभ्य राज्य समाज के रूप में मध्यप्रदेश को अभी अच्छी नज़र से नहीं देखा जा सकता है. देश में इन वर्गों की महिलाओं के साथ हुए बलात्कार के दर्ज मामलों में से सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश में ही दर्ज हुए हैं. मध्यप्रदेश में आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार के सबसे ज्यादा 359 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि छत्तीसगढ़ में 138, महाराष्ट्र में 99, ओडिशा में 94  और राजस्थान में 80 मामले दर्ज किए गए.
उत्तरपूर्व के राज्यों – आसाम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में आदिवासी महिला के साथ बलात्कार का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ.    

दलित महिलाओं के साथ बलात्कार
देश में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के 2326 मामले दर्ज हुए. इनमें से सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश (461) में दर्ज हुए हैं. उत्तरप्रदेश में 444, राजस्थान में 318, महाराष्ट्र में 242 और ओडिशा में 130 मामले दर्ज हुए हैं.

बलात्कार के आरोपी कौन?
अक्सर सिद्धांतों में यह बात कही जाती है कि नुकसान तो अपने ही पहुंचाते हैं. एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में हुई बलात्कार की 34651 घटनाओं में से 33098 घटनाओं (95.4 प्रतिशत) आरोपी और अपराधी परिचित या जाना पहचाना व्यक्ति ही है. यानी समाज में विश्वास का संकट बहुत गहरा है. यह रिपोर्ट बताती है कि 7394 मामलों में किसी व्यक्ति ने महिला से शादी का वादा करके उसका शारीरिक शोषण किया. जबकि 8788 मामलों में बलात्कार करने वाले के रूप में किसी पड़ोसी का ही नाम आया.     

अन्याय व्यवस्था
राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 की शुरुआत में ही 982582 मामले परीक्षण के लिए मौजूद थे. यह वे मामले थे, जिनका निराकरण वर्ष 2014 के खत्म होते तक नहीं हुआ. नए साल में इसमें 245341 मामले और जुड़ गए. इस तरह वर्ष 2015 में 12.27 लाख मामले परीक्षण के लिए उपलब्ध थे. यह मामले केवल महिलाओं के विरुद्ध अपराध से जुड़े हुए थे.

जब साल 2015 खत्म हुआ, तब 1080144 मामले विचाराधीन/लंबित थे. यानी वर्ष 2016 के पहले दिन ही न्याय व्यवस्था ने 10.80 लाख मामलों के साथ नए साल का सूरज देखा. यह कल्पना कर पाना भी ज्यादा कठिन नहीं है कि हमारी न्याय व्यवस्था महिलाओं के नज़रिए से वास्तव में अन्याय व्यवस्था ही है. वर्ष 2015 में बलात्कार के कुल 137458 मामले परीक्षण के लिए थे, जिनमें से केवल 14 प्रतिशत (18764) का परीक्षण पूरा हुआ और 86.2 प्रतिशत मामले अपूर्ण रहे. अपहरण के 124051 मामलों में से केवल 12879 के परीक्षण पूरे हुए और 89.2 प्रतिशत मामलों में परीक्षण ही पूरे नहीं हुए.

ताजा जानकारी के मुताबिक महिलाओं के विरुद्ध पूरे मामलों में से 88 प्रतिशत मामलों में तो प्रकरण का परीक्षण ही पूरा नहीं हुआ. क्या न्याय व्यवस्था का यह व्यवहार महिलाओं के विश्वास को तोड़ देने के लिए पर्याप्त नहीं है? वर्ष 2015 में महिलाओं के विरुद्ध अपराध के जिन 128240 मामलों का परीक्षण पूरा हुआ, उनमें से केवल 27844 मामलों में ही आरोपी को सजा हुई और बाकी के एक लाख मामलों में किसी को सजा नहीं हुई या आरोपी को बरी कर दिया गया. भारत में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामले में केवल 21.7 प्रतिशत प्रकरणों में ही किसी को सजा होती है; यानी 78.3 प्रतिशत तो बरी ही हो जाते हैं. क्या इसका यही आशय निकाला जाए कि महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध झूठे होते हैं?      

अब दो सवाल है – लंबित 10.80 लाख मामलों में महिलाओं को न्याय कब तक मिलेगा? और क्या समाज अपनी कोई ऐसी न्याय व्यवस्था बनाएगा, जिसमें महिलाएं सुरक्षित और सम्मानित हों? महिलाओं की अस्मिता के मुद्दे पर अब राजनीतिक व्यवस्था सक्रिय है, किन्तु फिर भी चरित्र में बदलाव का नहीं आना चिंता का विषय है.  

  श्रेणी/विषय                                       संख्या         सबसे ज्यादा
महिलाओं के विरुद्ध कुल अपराध         327394     उत्तरप्रदेश  35527
पश्चिम बंगाल                                        33218
महाराष्ट्र                                              31126
राजस्थान                                            28165
मध्यप्रदेश                                           24135
बलात्कार                                            34651    मध्यप्रदेश   4391
महाराष्ट्र                                                4144
राजस्थान                                             3644
उत्तरप्रदेश                                           3025
ओड़ीसा                                              2251
अपहरण                                             59277    उत्तरप्रदेश  10135
बिहार                                                 5158
महाराष्ट्र                                               5096
असम                                                  5039
मध्यप्रदेश                                             4547  
  • वर्ष 2014 के मामले, जिनमें परीक्षण पूरा नहीं हुआ                        982582
  • वर्ष 2015 में परीक्षण के लिए जुड़े नए मामले                                245341
  • वर्ष 2015 में जिन मामलों का परीक्षण पूर्ण हुआ (सभी मामले)         128240 (12 प्रतिशत)
  • वर्ष 2015 के अंत में परीक्षण न होने वाले मामले  (सभी मामले)       1080144 (88 प्रतिशत)
  • वर्ष 2015 के अंत में परीक्षण के बाद सजा हुई (सभी मामले)            27844 (21.7 प्रतिशत)
  • वर्ष 2015 में परीक्षण के लिए बलात्कार के कुल मामले                    137458
  • वर्ष 2015 के आखिर में पूर्ण परीक्षण न होने वाले बलात्कार के मामले  118520
  • बलात्कार के मामलों में सजा दिए जाने का प्रतिशत         29.4 प्रतिशत
  • अपहरण के मामलों में सजा दिए जाने का प्रतिशत         24.5 प्रतिशत

सचिन जैन, शोधार्थी-लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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