हम फिलहाल दो चीजों के बारे में जानते हैं. कांग्रेस नेता और शाही परिवार से संबंधित ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने ट्विटर हैंडल से अपनी पार्टी से संबंधित सारी जानकारी हटा ली है. अब उनके ट्विटर हैंडल पर लिखा है कि वो केवल एक लोक सेवक और क्रिकेट समर्थक हैं. इससे पहले सिंधिया के ट्विटर हैंडल पर लिखा था कि वह गुना से पूर्व सांसद हैं. इसके अलावा उनके मंत्री पद से जुड़ी जानकारी भी उनके ट्विटर हैंडल पर थी.
इस पर सिंधिया का कहना है कि उन्होंने अपने परिचय को ट्विटर हैंडल पर इसलिए छोटा किया है जिससे वह सरल दिखे और इसे कांग्रेस के साथ किसी तरह के मतभेद के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'इसे एक महीने पहले अपने परिचय को छोटा और सरल करने के लिए किया गया था. मुझे इस मुद्दे पर अटकलें लगाने वालों पर दया आती है.' उन्होंने मुझसे कहा, 'मैं कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता हूं और मेरे अंदर मेरे पिता माधवराव सिंधिया का खून है. मैंने अपने 17 साल के करियर में किसी भी पद के लिए लालसा नहीं रखी है.'
किसी भी नियुक्ति से संबंधित स्पष्टीकरण नहीं आने की वजह से मध्यप्रदेश में कांग्रेस के प्रमुख के रूप में पदभार संभालने के बारे में बात बढ़ रही है. यह राज्य उन चंद राज्यों में से एक है जिसमें कांग्रेस सत्ता में है. इसके अलावा बात उन राज्यों की भी है जहां मजबूत नेताओं की तिकड़ी के बीच घुसपैठ करने से पार्टी को खतरा है.
सिंधिया के आलोचकों का कहना है कि सरकार को सीएम के रूप में कमलनाथ और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह संचालित कर रहे हैं और सिंधिया जो कमलनाथ के खिलाफ सीएम पद की उम्मीदवारी पर अपना दावा नहीं ठोक सके, वो पार्टी छोड़ने पर विचार कर रहे हैं.
यह भारतीय राजनेताओं की उदासी, गुस्से और अपने मन की बात को सोशल मीडिया और मुख्य रूप से ट्विटर के जरिए कहने के प्रति सचेत करता है. उदाहरण शरद पवार, अजित पवार और सुप्रिया सुले हैं. इसलिए सिंधिया 30 से कम करेक्टर्स में या उससे कम में कांग्रेस को टेलीग्राफ भेज रहे हैं यह अटकलें उचित हैं.
इस महीने, उपचुनाव में झाबुआ सीट जीतकर कांग्रेस मध्यप्रदेश विधानसभा में 115 के साधारण बहुमत तक पहुंचने में सफल रही. भाजपा के पास 107 सदस्य हैं. इसलिए कांग्रेस की पकड़ कुछ भी हो लेकिन वह सुरक्षित है और सिंधिया और उनके समर्थकों द्वारा किसी भी तरह का विद्रोह विपत्ति का कारण होगा.
हालांकि, मध्य प्रदेश के कई वरिष्ठ नेता जिन्होंने इस स्तंभ के लिए बात की, उन्होंने सिंधिया के समर्थकों द्वारा कमलनाथ सरकार को किसी तरह के खतरे की बात को खारिज कर दिया. सिंधिया के कम से कम 10 विधायक उनके प्रति काफी विश्वास रखते हैं.
पार्टी के एक नेता ने मजाक में कहा, "15 को भूल जाओ, महाराज (सिंधिया की शाही विरासत पर चुटकी लेते हुए) के पास दो विधायक भी नहीं होंगे. एक व्यक्ति जो अपना आधार खो चुका है, वह सिर्फ भाजपा को दोष देने का कारण ढूंढना चाहता है. मत भूलें कि उनके परिवार में से ज्यादातर बीजेपी में हैं. हम जानते हैं कि वह अमित शाह के संपर्क में हैं, जिसे दिवंगत अरुण जेटली द्वारा सुविधाजनक बनाया गया था."
कांग्रेस में वर्तमान में अधिकांश चीजों के साथ स्थिति बेहद जटिल है. मैंने पहले सिंधिया को एक कॉलम में यहां खोए हुए लड़कों में से एक के रूप में वर्णित किया था, जो पीटर पैन का अनुयायी था, वह लड़का जिसने बड़े होने से इनकार कर दिया था. राहुल गांधी, पूर्व-कांग्रेस अध्यक्ष पीटर पैन हैं, और खोए हुए लड़के ऐसे नेता हैं जिनके स्वयं के करियर आरजी के आधे-अधूरे नेतृत्व के परिणामस्वरूप रुक गए हैं.
सिंधिया गांधी के करीबी मित्र हैं, फिर भी पिछले साल दिसंबर में कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने पर वह नाराज थे. वह कई बार अपनी नाराजगी के साथ सार्वजनिक हो चुके हैं, जिसमें कश्मीर में धारा 370 को हटाने के मामले पर राहुल गांधी के साथ सार्वजनिक रूप से मतभेद हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें बड़े पैमाने पर अनदेखा किया.
हालांकि उन्होंने कांग्रेस के साथ अपने संबंधों को पूरी तरह से जलाया नहीं है, सिंधिया ने स्पष्ट रूप से पूर्व में जाहिर किया था कि वह स्थानीय कांग्रेस प्रमुख बनना चाहते हैं, एक पद अभी भी कमलनाथ के पास है, साथ ही साथ राज्यसभा सीट भी है ताकि वे संसद में अपना रास्ता बना सकें.
कमलनाथ, जो एमपी के पावर समीकरण में अपने पूर्ण ग्रहण पर सिंधिया के लिए राज़ी हैं, ने पहले कांग्रेस अध्यक्ष, सोनिया गांधी से मुलाकात की, जो एमपी के कांग्रेस प्रमुख के पद के लिए थी. लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बताते हैं, कभी-कभी कांग्रेस में कोई निर्णय नहीं होता है. यह भी एक निर्णय है.
उलझन में? मत हो. कांग्रेस के बीजान्टिन दरबार की राजनीति में, सिंधिया की पूर्व दिग्विजय सिंह के साथ काफी प्रतिद्वंद्विता है, जो अभी भी पार्टी तंत्र पर एक बड़ी कमान रखते हैं और जिन्होंने राज्य प्रमुख के लिए सिंधिया पर वीटो लगाया.
गांधी सिर्फ त्रिकोणीय लड़ाई को संतुलित करने की कोशिश कर रहे हैं. सिंधिया के समर्थकों का कहना है कि उन्हें अपने शिविर की सुरक्षा के लिए राज्य प्रमुख बनाया जाना चाहिए. यह भी एक प्रतिक्रिया है क्योंकि सिंह ने सिंधिया को ग्वालियर के गढ़ से बाहर निकाल दिया है. सिंह कमलनाथ के बहुत बड़े समर्थक हैं और उन्हें भोपाल में "सुपर सीएम" कहा जाता है.
सिंधिया का संघर्ष कांग्रेस के पुराने संरक्षक बनाम यंग तुर्कों के अधिकांश सत्ता संघर्ष को दर्शाता है. राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच बार-बार झड़प के साथ एक ऐसी ही कहानी सामने आ रही है. राहुल गांधी, जो अभी-अभी विदेश से एक '' ध्यान '' से लौटे हैं, अभी भी रुठे हुए हैं. पुराने कांग्रेसी पहरेदार, युवा नेताओं को आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं.
यदि कांग्रेस अंततः महाराष्ट्र में शिवसेना और शरद पवार के साथ गठबंधन करने में सरकार बनाती है, तो पुराने दिग्गज अपने काम को जारी रखेंगे. इसके बावजूद सोशल मीडिया पर तमाम बातें हो रही हैं.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...)
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