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This Article is From Jul 18, 2023

एनडीए के सामने चुनौतियां, आसान नहीं होगा सीटों का बंटवारा

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 18, 2023 17:04 pm IST
    • Published On जुलाई 18, 2023 13:24 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 18, 2023 17:04 pm IST

एनडीए आज अपनी बढ़ी हुई ताकत दिखाने जा रहा है. जहां अटल बिहारी वाजपेयी के समय एनडीए में 24 दल हुआ करते थे, वहीं आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए में 38 दल शामिल हुए हैं. आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ सकती है, लेकिन आने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए इन सहयोगी दलों में सीटों का बंटवारा करना आसान नहीं होगा. खासतौर से बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में.  

बिहार 
2019 में बीजेपी ने जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था. समझौते के तहत बीजेपी और जेडीयू ने 17-17 और लोक जनशक्ति पार्टी ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लोक जनशक्ति पार्टी को एक राज्य सभा सीट भी दी गई थी, जिससे रामविलास पासवान संसद में पहुंचे थे. तब एनडीए ने राज्य की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी. इनमें बीजेपी 17, जेडीयू 16 और एलजेपी 6 सीटों पर जीती. बाद में जेडीयू के दबाव पर लोक जनशक्ति पार्टी में विभाजन हुआ और चिराग पासवान अलग कर दिए गए. अब बीजेपी चाहती है कि पशुपति पारस और चिराग विलय कर दें, लेकिन पशुपति इसके लिए तैयार नहीं. उधर चिराग चाहते हैं कि 2019 के फार्मूले के तहत उनकी पार्टी को छह लोक सभा सीटें और एक राज्य सभा सीट दी जाए. इस विवाद को सुलझाना बीजेपी की बड़ी चुनौती होगी. उधर, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी भी चाहेंगे कि उनकी पार्टियों को अधिक संख्या में लोक सभा सीटें दी जाएं, जबकि बीजेपी चाहेगी कि इस बार वह पिछली बार से अधिक संख्या में सीटों पर चुनाव लड़े क्योंकि जेडीयू उसके साथ नहीं है.  

महाराष्ट्र 
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी, शिवसेना गठबंधन था. राज्य की 48 में से 25 पर बीजेपी ने और 23 पर शिवसेना ने चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने 23 और शिवसेना ने 18 सीटों पर जीत हासिल की थी. अब शिवसेना विभाजित हो गई है. एकनाथ शिंदे का गुट उन सभी 18 सीटों पर दावेदारी कर रहा है, जो 2019 में शिवसेना ने लड़ी थीं. इस बीच, एनसीपी में विभाजन हुआ है और अजीत पवार का गुट बीजेपी के साथ आ गया. 2019 में एनसीपी ने चार सीटें जीती थीं. बीजेपी के सामने इन 48 सीटों के बंटवारे की चुनौती रहेगी. 

उत्तर प्रदेश 
2019 में बीजेपी ने अपना दल के साथ मिल कर लोक सभा चुनाव लड़ा था. तब अपना दल को दो सीटें दी गईं थीं जो उसने जीत लीं. इस बार ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी भी बीजेपी के साथ है. बीजेपी को सीट बंटवारे में भी उन्हें भी साथ रखना होगा. गाजीपुर लोक सभा सीट पर उपचुनाव में राजभर के बेटे खड़े हो सकते हैं. इसके अलावा जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल से भी बीजेपी की बातचीत हुई है. बीजेपी चाहती है कि आरएलडी का बीजेपी में विलय हो जाए जिसके लिए जयंत तैयार नहीं. अगर भविष्य में आरएलडी साथ आए तो बीजेपी को उसे भी सीटें देनी होगी. इस बीच, राजभर और दारा सिंह चौहान के साथ आने से योगी मंत्रिपरिषद में विस्तार की संभावना भी बढ़ गई है. उत्तर प्रदेश में राज्य सभा की एक सीट पर उपचुनाव भी होना है. 

तमिलनाडु 
यहां बीजेपी और एआईएडीएमके के बीच 2024 चुनाव मिल कर लड़ने पर सहमति है. कुछ अन्य सहयोगी दल भी साथ लड़ेंगे. 2019 में भी इन दलों ने मिल कर चुनाव लड़ा था. राज्य की 39 लोक सभा सीटों में एआईएडीएमके ने 20, पीएमके ने सात, बीजेपी 5, डीएमडीके 4, पीटी एक, तामिल मनीला कांग्रेस एक और पीएनके 1 सीट पर लड़ी थी. इस बार कुछ नई पार्टियां भी साथ आईं हैं और बीजेपी तमिलनाडु पर खासतौर से ध्यान दे रही है. पीएम मोदी के भी यहां से लोक सभा चुनाव लड़ने की चर्चा है. ऐसे में सीटों के बंटवारे पर सबकी नजरें रहेंगी.

हरियाणा 
बीजेपी और दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी राज्य में मिल कर सरकार चला रहे हैं, लेकिन बीजेपी साफ कर चुकी है कि वह सभी दस लोक सभा सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी और जेजीपी के साथ समझौता नहीं होगा. अटकल यह भी है कि लोक सभा चुनाव से पहले बीजेपी और जेजीपी का गठबंधन टूट जाए और दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ें. 

झारखंड 
बीजेपी ने 2019 में पहली बार आजसू के साथ लोक सभा चुनाव गठबंधन में लड़ा था. राज्य की 14 में से 11 सीटें बीजेपी और एक सीट आजसू ने जीती थी. इस बार भी दोनों पार्टियों के मिल कर चुनाव लड़ने की संभावना है.

असम 
2019 में बीजेपी ने एजीपी और बीपीएफ के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने राज्य की 14 में से 10 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि एजीपी को 3 और बीपीएफ को एक सीट दी थी. तब बीजेपी ने 10 में से नौ सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि एजीपी और बीपीएफ कोई सीट नहीं जीत सके थे. बदली परिस्थितियों में बीजेपी अधिक सीटों पर लड़ना चाहेगी. 

अन्य राज्यों जैसे केरल और पूर्वोत्तर में सहयोगी दलों की जमीनी ताकत इतनी अधिक नहीं कि वे लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मोल-भाव कर सकें. इसलिए बीजेपी को वहां अपनी शर्तों के हिसाब से चुनाव लड़ने में परेशानी नहीं आएगी.

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के एग्जीक्यूटिव एडिटर (पॉलिटिकल) हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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