क्या फूलपुर और गोरखपुर की हार से बीजेपी उबरने में कामयाब हो पाएगी? क्या इन दो चुनावों की हार का बदला कैराना और नूरपुर में ले पाएगी बीजेपी? दरअसल, कैराना के बीजेपी सांसद हुकुम सिंह और नूरपुर के बीजेपी विधायक लोकेंद्र सिंह की मृत्यु के बाद इन दो सीटों पर 28 मई को चुनाव होना है. चुनावी गणित में दो और दो चार कम ही होता है क्योंकि आपस में विरोधी रही दो पार्टियां किसी तीसरी पार्टी को हराने के लिए साथ आएं तो हाथ के साथ दिल भी मिलना ज़रूरी है. जब तक ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल न हो, एक पार्टी के वोट दूसरी को ट्रांसफर नहीं होते. लेकिन गोरखपुर और फूलपुर ने इस धारणा को तोड़ दिया. वहां एसपी और बीएसपी ऐन चुनाव के वक्त साथ आईं और बीजेपी भौचक्की रह गई. बीएसपी के वोट सपा के खाते में गए और नतीजा हुआ कि बीजेपी को अपने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की सीट पर मुंह की खानी पड़ी. इसके बाद बीजेपी ने दावा किया है कि कैराना और नूरपुर के उपचुनाव में वो पूरी तैयारी से उतरेगी.
माना जा रहा है कि बीजेपी सहानुभूति के वोट लेने के लिए हुकुम सिंह की बेटी मृंगाका सिंह और लोकेंद्र सिंह की पत्नी अवनि सिंह को मैदान में उतारेगी. उधर, विपक्ष ने फूलपुर और गोरखपुर को दोहराने की तैयारी कर ली है.
सपा और राष्ट्रीय लोक दल साथ आ गए हैं. कैराना सीट से राष्ट्रीय लोक दल ने तबस्सुम बेगम को उतारा है जो दो दिन पहले तक सपा में थीं. इसी तरह से नूरपुर से सपा ने नईमुल हसन को टिकट दिया. हालांकि उनका विरोध भी शुरू हो गया है. हमेशा की तरह बीएसपी उपचुनाव नहीं लड़ेगी और इससे सपा-आरएलडी की मदद होगी. कैराना और नूरपुर का चुनावी गणित बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी करेगा.
कैराना में मोदी लहर में हुकुम सिंह को करीब पचास फीसदी वोट मिले थे. सपा को 30, बसपा को 14 और आरएलडी को 4 फीसदी वोट मिले थे. जबकि 2009 में करीब चालीस फीसदी वोट लेकर तबस्सुम बेगम चुनाव जीती थीं. तब हुकुम सिंह को 36 फीसदी और सपा के शाजान मसूद को करीब 17 फीसदी वोट मिले थे. कैराना में करीब सत्रह लाख वोटर हैं जिनमें करीब साढ़े पांच लाख मुसलमान हैं. दो लाख दलित वोटर हैं. पिछड़ी जाति जैसे जाट, सैनी, प्रजापति, कश्यप के करीब चार लाख वोट हैं. गुर्जर 1.30 लाख, 75 हजार राजपूत, 60 हजार ब्राह्मण और 55 हजार वैश्य हैं. पिछले चुनाव में हुकुम सिंह के पक्ष में पिछड़े और अगड़ों की जबर्दस्त गोलबंदी हुई और मुसलमानों के वोट बंटे. लेकिन उपचुनाव में बीएसपी और सपा का आरएलडी को समर्थन देना क्या गुल खिलाएगा, यह देखने की बात होगी.
बात यह भी हो रही है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह का एक वक्त का बेहद कामयाब अजगर यानी अहीर, जाट, गुजर और राजपूत फार्मूला क्या मुसलमानों को साथ लेकर मअजगर के रूप में एक बार फिर सामने आएगा? इसी तरह नूरपुर में लोकें सिंह करीब 39 फीसदी वोट लेकर चुनाव जीते थे. जबकि सपा को 33, बसपा को 23 और आरएलडी को सिर्फ एक फीसदी वोट मिल. 2012 में भी यह सीट लोकेंद्र सिंह के पास ही थी. तब उन्हें 27%, बसपा को 24%, सपा को 20% और आरएलडी को 6 फीसदी वोट मिले थे. इन सीटों के समीकरण भी बीजेपी के खिलाफ जा रहे हैं. नूरपुर में करीब तीन लाख वोटर हैं जिनमें एक लाख 15 हजार मुसलमान हैं. 50 हजार दलित हैं जबकि 40 हजार ठाकुर, 15 हजार जाट और 20 हजार सैनी हैं.
यानी दो और दो चार का गणित बीजेपी के लिए लड़ाई बेहद मुश्किल बना देता है. इस लिहाज़ से बीजेपी अपनी साख बचाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है. कई मंत्री इन दोनों सीटों पर दिन-रात जुटे हुए हैं. खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए यह अपनी साख बचाने का मौका है. गोरखपुर और फूलपुर की हार से बीजेपी के लिए बुरा संदेश गया क्योंकि दिल्ली का रास्ता लखनऊ हो कर जाता है. संदेश गया कि विपक्ष एक हो तो बीजेपी को धूल चटाई जा सकती है. अब कैराना और नूरपुर में इस विपक्षी एकता का भी इम्तिहान है. हालांकि यूपी में हाशिए पर पहुंच चुकी कांग्रेस क्या करेगी, यह अभी साफ नहीं है.
(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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This Article is From May 07, 2018
क्या कैराना में विपक्षी एकता के सामने बीजेपी होगी चित?
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:मई 07, 2018 20:15 pm IST
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Published On मई 07, 2018 20:15 pm IST
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Last Updated On मई 07, 2018 20:15 pm IST
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