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This Article is From Dec 21, 2023

संसद की सुरक्षा में सेंध : सबको पिछली घटनाओं से सबक लेने की जरूरत है

Harish Chandra Burnwal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 16, 2024 11:01 am IST
    • Published On दिसंबर 21, 2023 18:18 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 16, 2024 11:01 am IST

संसद की सुरक्षा में सेंध को लेकर कांग्रेस और विपक्ष खुद किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में हैं! इस मामले में जैसे-जैसे जांच का दायरा और दिशा बदल रही है, वैसे-वैसे कांग्रेस का गोल पोस्ट भी बदलता नजर आ रहा है. इतिहास को भूलकर कभी वह इसे संसद पर बड़ा हमला करार देती है तो कभी इसके लिए भाजपा नेताओं को कठघरे में खड़ा करती है. कभी प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक का इस्तीफा मांगती है तो कभी इसे बेरोजगारी के दंश से उपजी साजिश करार देती है और यही वजह है कि वो इस मुद्दे पर सरकार को कठघरे में खड़ा करने की जगह खुद उलझ गई है और उसी का नतीजा है कि लोकसभा और राज्यसभा में रिकॉर्ड संख्या में सांसद सस्पेंड किए गए हैं. 

जेपी आंदोलन को बदनाम करने की रची गई थी साजिश
कांग्रेस के इस भ्रमजाल के इतर हम संसद में ही हुई कुछ पुरानी घटनाओं की रोशनी में इस सारे मामले को समझने-समझाने का प्रयास करते हैं. दरअसल, कांग्रेस के राज में ऐसी एक नहीं, कई घटनाएं हो चुकी हैं. टाइम मशीन को पीछे घुमाकर आपको इंदिरा-इरा में लिए चलते हैं. अभी जो लोग स्मोक बम पर ही हायतौबा मचा रहे हैं, उन्हें 11 अप्रैल, 1974 की घटना की याद दिलाना बेहद जरूरी है. तब इंदिरा गांधी पीएम हुआ करती थीं. उस समय संसद के भीतर हमला करके बाकायदा जेपी आंदोलन को बदनाम करने की साजिश रची गई थी. बता दें कि 18, मार्च 1974 को जेपी आंदोलन की नींव पड़ी थी और 5 जून को जेपी ने इंदिरा गांधी के खिलाफ संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था.

संसद में रिवॉल्वर से गोली चली, फिर भी मामला रफा-दफा
इंदिरा गांधी के जमाने में तब लोकसभा में रतन गुप्ता नाम का व्यक्ति रिवॉल्वर और विस्फोटक लेकर पहुंच गया था. उसने गोली भी चलाई, लेकिन एक माह की सजा देकर कांग्रेस ने मामला रफा-दफा कर दिया था. आश्चर्य की बात है कि इस व्यक्ति का पास भी तत्कालीन कांग्रेस सांसद हरि किशोर सिंह ने ही बनाया था. इतना सब होने के बावजूद तब बीजेपी के पूर्ववर्ती जनसंघ और विपक्ष ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष का भी इस्तीफा नहीं मांगा था. प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की तो बहुत दूर की बात है, क्योंकि संसद भवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी लोकसभा सचिवालय की होती है. आज की तरह राजनीतिक मुद्दा तक नहीं बनाया था. यही नहीं, उस दौरान आरोपी रतन गुप्ता पर जो प्रस्ताव पेश किया गया और जो बयान दिया गया, वो प्रधानमंत्री या गृहमंत्री की तरफ से नहीं, बल्कि संसदीय कार्यमंत्री के रघु रमैया ही थे. 

इंदिरा गांधी की रिहाई के लिए किया विमान हाइजैक
देश में आपातकाल लगाने वाली इंदिरा गांधी से जुड़ी एक और घटना के बारे में यहां जानना समीचीन होगा. यह घटना दिसंबर 1978 की है और इंदिरा गांधी को जेल जाना पड़ा था. तब इंडियन एयरलाइंस की एक घरेलू उड़ान को हाइजैक कर लिया गया. हाइजैकर देवेंद्र पांडे और भोलानाथ पांडे कांग्रेस समर्थक थे, जो इंदिरा के लिए कुछ भी कर सकते थे. इंदिरा गांधी की रिहाई के लिए दोनों ने विमान को हाइजैक कर लिया और उसे वाराणसी ले गए. उस वक्त प्लेन में 132 यात्री सवार थे.

इन दोनों हाइजैकर ने यात्रियों को छोड़ने के लिए तीन शर्तें रखी थीं– पहली, इंदिरा को रिहा किया जाए. दूसरी, इंदिरा और संजय गांधी के खिलाफ लगे सारे आरोप खत्म किए जाएं और तीसरी इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने वाली केंद्र की जनता पार्टी की सरकार इस्तीफा दे. काफी हंगामा और देशभर में बवाल मचने के बाद दोनों ने वाराणसी उतरने पर आत्मसमर्पण कर दिया. वे पकड़े गए और सजा हुई. लेकिन देश में जब फिर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी, तो इन्हें गांधी परिवार की भक्ति का इनाम मिला और इन पर लगे मुकदमों को वापस ले लिया गया. इतना ही नहीं, विमान अपहरण जैसे संगीन केस के दोनों ‘आरोपी' कांग्रेस के टिकट पर विधायक और सांसद भी बने.

राव के समय भी बीजेपी ने पीएम-एचएम का इस्तीफा नहीं मांगा
लोकसभा में एक बार फिर 5 मई 1994 को घटना घटित हुई. तब लोकसभा की दर्शक दीर्घा से कूदकर प्रेम पाल सिंह सम्राट नाम का व्यक्ति तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के करीब पहुंच गया था. उसने नारेबाजी की तो सुरक्षा कर्मियों ने उसे कस्टडी में ले लिया था. तब लोकसभा में उपाध्यक्ष भाजपा के एस. मल्लिकार्जुन थे. इसके बावजूद भाजपा ने प्रधानमंत्री या गृह मंत्री का इस्तीफा नहीं मांगा, क्योंकि संसद की सुरक्षा लोकसभा सचिवालय का अधिकार है. लेकिन कांग्रेस अपने दामन के दागों की ओर से आंखें मूंदकर केवल दूसरों पर उंगलियां उठाने, नए-नए नैरेटिव बनाने के बहाने तलाशती रहती है.

कांग्रेसी इको सिस्टम की नए-नए नैरेटिव गढ़ने की राजनीति
अपने इतिहास को भूलकर आज कांग्रेसी इको सिस्टम जिस तरह का नैरेटिव बनाने की कोशिश कर रहा है, वह देश के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है. येन-केन प्रकारेण कांग्रेसी इको सिस्टम तरह-तरह के नैरेटिव गढ़कर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ना चाहता है. लेकिन सच्चाई ये है कि बार-बार उसका खुद का इतिहास ही उसकी राह में आकर खड़ा हो जाता है. इसलिए कांग्रेस और इंडी एलायंस के इको सिस्टम को इस बात से सबक लेना चाहिए कि जनता अब इन मुद्दों को न केवल परख रही है, बल्कि उसके पीछे के मोटिव को भली-भांति समझकर ही चुनाव में अपने फैसले कर रही है. 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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